IPO नियमों में बड़े बदलाव की तैयारी में सेबी, प्लेज्ड शेयरों के लॉक-इन का पेच होगा हल और डिस्क्लोजर आसान
Sebi ने IPO नियमों में बड़े बदलावों के प्रस्ताव रखे हैं. इनमें प्लेज्ड प्री-IPO शेयरों के लॉक-इन पेच को सुलझाने के लिए डिपॉजिटरी को शेयरों को नॉन ट्रांसफरेबल मार्क करने की अनुमति दी जाएगी. इसके अलावा एब्रिज्ड प्रॉस्पेक्टस की जगह नई ऑफर डॉक्यूमेंट समरी दी जाएगी, जिसमें बिजनेस ओवरव्यू, रिस्क फैक्टर्स और फाइनेंशियल हाइलाइट्स जैसे डिस्क्लोजर शामिल होंगे.
IPO बाजार को अधिक पारदर्शी और रिटेल फ्रेंडली बनाने के लिए बाजार नियामक सेबी ने दो बड़े सुधारों का प्रस्ताव रखा है.पहला, प्लेज्ड प्री-IPO शेयरों के लॉक-इन से जुड़ी तकनीकी समस्याओं का समाधान और दूसरा, एब्रिज्ड प्रॉस्पेक्टस की जगह एक सरल ऑफर डॉक्यूमेंट समरी की शुरुआत का प्रस्ताव रखा है.
सेबी का कहना है कि इन बदलावों से रिटेल निवेशकों के लिए किसी भी आईपीओ में निवेश से पहले फैसला लेने में मदद मिलेगी और फैसला कर पाना आसान हो जाएगा. आईपीओ को रिटेल फ्रेंडली बनाने में ये बदलाव अहम कदम माने जा रहे हैं. इन दोनों प्रस्तावों को लेकर सेबी ने नए कंसल्टेशन पेपर में जारी किए हैं. इसके लिए सभी हितधारकों से राय ली गई है. इन दबलावों के लिए सेबी को ICDR Regulations, 2018 में संशोधन करने होंगे.
प्लेज्ड शेयरों में लॉक-इन का पेच
मौजूदा ICDR नियमों के तहत, प्रमोटर के अलावा सभी प्री-इश्यू शेयरहोल्डिंग को IPO के बाद कम से कम छह महीने तक लॉक-इन रखना अनिवार्य है. लेकिन, जब शेयर प्लेज्ड होते हैं, तब डिपॉजिटरी उन्हें लॉक-इन मार्क नहीं कर पाती. इससे IPO से पहले कंपनियों को लास्ट-मिनट कंप्लायंस चुनौतियां झेलनी पड़ती हैं. खासकर तब जब शेरहोल्डर्स की संख्या बहुत अधिक हो या उनमें से कुछ ट्रेस न हो पा रहे हों.
क्या है सेबी का समाधान
सेबी ने इस जटिलता को दूर करने के लिए डिपॉजिटरी को यह अधिकार देने का सुझाव दिया है कि वह ऐसे शेयरों को सीधे नॉन ट्रांसफरेबल के रूप में मार्क करें. यह मार्किंग पूरे लॉक-इन अवधि तक लागू रहेगी. इश्यूअर इसके लिए डिपॉजिटरी को निर्देश देगा. इससे वास्तविक लॉक-इन इफेक्ट सुनिश्चित होगा, भले ही शेयर किसी बैंक, NBFC या अन्य लेंडर के पास प्लेज्ड क्यों न हों.
AoA में संशोधन भी होगा अनिवार्य
कंपनियों को अपने Articles of Association (AoA) में संशोधन करना होगा ताकि, प्लेज इनवोक या रिलीज हो, तो भी शेयर नए होल्डर के अकाउंट में उसी लॉक-इन अवधि के तहत बने रहें. सेबी का कहना है कि अनलिस्टेड शेयरों के बदले लोन देने वाली कई NBFCs ने इस प्रस्तावित ढांचे पर सहमति दी है. यह बदलाव IPO प्रोसेस को आसान करने के साथ-साथ प्री-IPO शेयरों की ट्रैकिंग और नियंत्रण को भी मजबूत करेगा.
IPO डिस्क्लोजर होंगे आसान
सेबी ने निवेशकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए IPO दस्तावेजों में बड़ा बदलाव प्रस्तावित किया है. अभी तक हर IPO एप्लिकेशन के साथ एब्रिज्ड प्रॉस्पेक्टस (Abridged Prospectus) देना अनिवार्य है. लेकिन यह भी इतना लंबा और टेक्निकल होता है कि रिटेल निवेशकों के लिए इसे पढ़ना और समझना मुश्किल हो जाता है.
क्या होगा इसका समाधान?
नए प्रस्ताव के तहत, Abridged Prospectus को हटाकर एक स्टैंडर्ड फॉरमेट में ऑफर डॉक्यूमेंट समरी पेश किए जाने का प्रस्ताव रखा है. यह डॉक्यूमेंट अधिक संक्षिप्त, केंद्रित और रिटेल-फ्रेंडली होगा. सेबी के प्रस्ताव के मुताबिक यह डॉक्यूमेंट सेबी की वेबसाइट, स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट, इश्यूअर कंपनी और लीड मैनेजर्स की वेबसाइट पर उपलब्ध होगा.
इसमें क्या होगा शामिल?
सेबी के प्रस्ताव के मुताबिक इस डॉक्यूमेंट में इश्यूअर कंपनी के बिजनेस और इंडस्ट्री का ओवरव्यू होगा. मुख्य रिस्क फैक्टर्स होंगे. इसके अलावा प्रमुख फाइनेंशियल हाइलाइट्स, अगर कोई कानूनी कार्यवाही चल रही है, तो उसकी जानकारी होगी. इसके साथ ही प्रमोटर और ग्रुप एंटिटी की जानकारी इसमें शामिल होगी. सेबी का मानना है कि मौजूदा DRHP और RHP इतने विस्तृत होते हैं कि रिटेल निवेशक अक्सर उनकी समीक्षा नहीं करते और सोशल मीडिया, ग्रे मार्केट प्रीमियम या अधूरी जानकारी के आधार पर निर्णय लेते हैं. नया डॉक्यूमेंट इस गैप को भरने का प्रयास करेगा.
क्या होगा इसका असर?
सेबी के ये दोनों प्रस्ताव बाजार में पारदर्शिता, कंप्लायंस सुदृढ़ता और रिटेल इन्वेस्टर्स की समझदारी को बढ़ावा देंगे. IPO प्रक्रिया सरल होने से इश्यूअर्स और निवेशकों दोनों को राहत मिलेगी, जबकि लॉक-इन फिक्स से सिस्टम की विश्वसनीयता और मजबूत होगी.