Aggressive Hybrid Fund: रिटायरमेंट तक मिलेगा स्टेबल रिटर्न और टैक्स बेनिफिट्स, एक्सपर्ट से जानें इसके छिपे फायदे
निवेश की दुनिया में एक ऐसा विकल्प मौजूद है जो न सिर्फ इक्विटी और डेट का सही संतुलन देता है, बल्कि टैक्स बचत और बेहतर आफ्टर-टैक्स रिटर्न भी सुनिश्चित करता है. खासकर उन लोगों के लिए जो पहली बार निवेश कर रहे हैं या फिर रिटायरमेंट की स्थिर आय चाहते हैं.

म्यूचुअल फंड्स को आप वित्तीय उत्पादों के डिपार्टमेंटल स्टोर की तरह समझ सकते हैं. यहां आपको कई तरह के विकल्प मिलते हैं – शुद्ध इक्विटी (Equity) से लेकर शुद्ध डेट (Debt) तक, और इनके बीच मिश्रित अनुपात में इक्विटी और डेट वाले कई प्रोडक्ट्स भी मिलते हैं. इन्हीं में से एक है एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स, जिन्हें आम भाषा में बैलेंस्ड फंड्स भी कहा जाता है. यह कैटेगरी निवेशकों के लिए एक बेहतरीन विकल्प मानी जाती है. इस रिपोर्ट में इनके फीचर्स और निवेश के लिहाज से इसके अहमियत को समझते हैं.
एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स का काम करने का आधार क्या है?
एसेट अलोकेशन (Asset Allocation) समझदारीपूर्ण फाइनेंशियल प्लानिंग का सबसे बुनियादी सिद्धांत है. इसका मतलब है कि आपके निवेश योग्य पैसे को अलग-अलग एसेट क्लासेस जैसे इक्विटी, डेट, सोना और रियल एस्टेट में सैंटिफिक तरीके से बांटा जाए. लेकिन व्यावहारिक रूप से इसमें दो बड़े एसेट क्लास ज्यादा अहम होते हैं, जो है इक्विटी और डेट.
अब अगर कोई निवेशक केवल इक्विटी में निवेश करता है, चाहे डायरेक्ट इक्विटी में या फिर म्यूचुअल फंड्स की इक्विटी स्कीम्स में, तो उसे अपने पोर्टफोलियो में डेट का हिस्सा जोड़ने के लिए अलग से डेट प्रोडक्ट्स में निवेश करना पड़ेगा. लेकिन एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स दोनों जरूरतें एक ही प्रोडक्ट से पूरी कर देते हैं. इन फंड्स में हमेशा कम से कम 65% निवेश इक्विटी में होता है और बाकी हिस्सा डेट में लगाया जाता है, जो बाजार की स्थिति के हिसाब से थोड़ा-बहुत बदल सकता है.
एसेट अलोकेशन के अलावा रीबैलेंसिंग (Rebalancing) भी बहुत जरूरी सिद्धांत है. समय के साथ आपके पोर्टफोलियो में इक्विटी और डेट का अनुपात स्थिर नहीं रहता क्योंकि बाजार में उतार-चढ़ाव होता है. तेजी के दौर में इक्विटी का मूल्य बढ़ने से उसका अनुपात भी बढ़ जाता है. ऐसे में आपको अपने कुछ इक्विटी निवेश बेचकर डेट में लगाना चाहिए ताकि तयशुदा संतुलन बना रहे. इसी तरह, मंदी में इक्विटी का मूल्य घटने से उसका प्रतिशत भी गिरता है, तो डेट से इक्विटी में शिफ्ट करना जरूरी हो जाता है.
यानी एसेट अलोकेशन और रीबैलेंसिंग, दोनों सिद्धांत मिलकर आपके रिटर्न को ऑप्टिमाइज करते हैं. एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स में चूंकि डेट और इक्विटी दोनों होते हैं और इनमें इक्विटी 65% से कम नहीं हो सकती, इसलिए इन फंड्स में आंतरिक रूप से लगातार यह संतुलन बनाए रखा जाता है. इस वजह से निवेशक को अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश और समय-समय पर रीबैलेंसिंग की चिंता नहीं करनी पड़ती.
टैक्सेशन का पहलू
इनकम टैक्स कानूनों के मुताबिक अगर किसी म्यूचुअल फंड स्कीम में औसतन 65% से ज्यादा निवेश इक्विटी शेयरों में रहता है, तो उसे इक्विटी ओरिएंटेड स्कीम माना जाता है. इसलिए एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स को भी इक्विटी ओरिएंटेड स्कीम का टैक्स ट्रीटमेंट मिलता है.
इक्विटी ओरिएंटेड स्कीम्स और डेट स्कीम्स पर टैक्स रूल्स अलग होते हैं.
इक्विटी ओरिएंटेड स्कीम पर 12 महीने या उससे ज्यादा रखने पर मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाता है और यह 1.25 लाख रुपये सालाना से ऊपर के मुनाफे पर 12.50% टैक्स से टैक्सेबल होता है. अगर होल्डिंग पीरियड 12 महीने से कम है तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाता है और इस पर 20% टैक्स लगता है.
वहीं डेट स्कीम्स, जिनमें 65% से ज्यादा हिस्सा डेट का होता है, उन पर होल्डिंग पीरियड चाहे जितना हो, मुनाफा हमेशा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाता है और टैक्स स्लैब रेट से लगता है. चूंकि एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स में डेट का हिस्सा भी इक्विटी स्कीम के टैक्स रूल्स से कवर हो जाता है, यह उच्च टैक्स स्लैब वालों के लिए बेहतर टैक्स ऑप्टिमाइजेशन टूल है.
रिटर्न की वोलैटिलिटी घटाता है
भारत में इक्विटी में निवेश करने वालों की संख्या अब भी बहुत कम है. अधिकांश लोग बैंक और कंपनी के फिक्स्ड डिपॉजिट्स में निवेश करते हैं क्योंकि उन्हें फिक्स्ड रिटर्न का भरोसा होता है. इक्विटी निवेश को बहुत वोलैटाइल माना जाता है. लेकिन एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स इस वोलैटिलिटी को कुछ हद तक कम कर देते हैं, क्योंकि इनमें हमेशा एक हिस्सा डेट में लगा रहता है जो रिटर्न को स्थिरता देता है.
किनके लिए यह प्रोडक्ट उपयुक्त है?
एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स खासकर पहली बार इक्विटी में निवेश करने वालों के लिए सही प्रोडक्ट है. कम वोलैटिलिटी नए निवेशकों को डराती नहीं और उन्हें रिलैक्स रखती है.
बीते आंकड़ों से भी यह साफ है कि लंबे समय में एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स के रिटर्न्स बड़े कैप फंड्स से कमतर नहीं रहे. तुलना के लिए नीचे आंकड़े दिए गए हैं:
समयावधि | लार्ज कैप फंड्स | एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स | अतिरिक्त रिटर्न (हाइब्रिड बनाम लार्ज कैप) |
---|---|---|---|
1 वर्ष | 0.22 | 3.79 | 3.57 |
3 वर्ष | 14.41 | 15.34 | 0.93 |
5 वर्ष | 19.15 | 18.37 | -0.78 |
7 वर्ष | 13.23 | 13.33 | 0.10 |
10 वर्ष | 12.58 | 12.53 | -0.05 |
टेबल से साफ है कि जैसे-जैसे निवेश की अवधि लंबी होती जाती है, एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स और लार्ज कैप फंड्स के औसत रिटर्न्स में अंतर कम हो जाता है. हालांकी लंबे समय में दोनों के रिटर्न्स लगभग समान हैं, लेकिन एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स थोड़ी ज्यादा स्थिरता देते हैं.
इसलिए ये पहली बार निवेश करने वालों, सेवानिवृत्त लोगों या रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके निवेशकों के लिए आदर्श विकल्प हैं. ये उन लोगों के लिए भी सही है जो बाजार के उतार-चढ़ाव पर करीब नजर नहीं रख सकते.
यह भी पढ़ें: रिटायरमेंट की राशि कहां लगाएं ताकि हर महीने मिले गारंटीड इनकम, जानिए एक्सपर्ट से सेफ टिप्स
साथ ही, एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स पर मिलने वाले रिटर्न पर 12.50 फीसदी की रियायती दर से टैक्स लगता है. इस वजह से रिटायर लोगों के लिए यह उन्हें बेहतर आफ्टर-टैक्स रिटर्न मुहैया करता है. चूंकि रिटायरमेंट के बाद जमा की गई पूरी राशि एक साथ तुरंत इस्तेमाल करने के लिए नहीं निकाली जाती और एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स का रिटर्न अपेक्षाकृत कम वोलैटाइल होता है, इसलिए ये फंड्स खासतौर पर तब रिटायर्ड लोगों के लिए सहारा बनते हैं जब सभी डेट प्रोडक्ट्स पर ब्याज दरें नीचे जा रही हों.
कम रिस्क प्रोफाइल वाले निवेशकों के लिए भी एग्रेसिव हाइब्रिड फंड्स, शुद्ध लार्ज कैप इक्विटी फंड्स की तुलना में बेहतर विकल्प हैं. वहीं, जिन निवेशकों की रिस्क प्रोफाइल ज्यादा है, उनके लिए मिडकैप या स्मॉलकैप फंड्स ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं, हालांकि इनमें शॉर्ट टर्म वोलैटिलिटी भी ज्यादा होती है.
लेखक एक टैक्स और इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं. आप उन्हें jainbalwant@gmail.com पर या ट्विटर हैंडल @jainbalwant पर संपर्क कर सकते हैं.
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