डायरेक्ट या रेगुलर म्यूचुअल फंड किसका करें चुनाव? किसमें मिलता है ज्यादा रिटर्न
आइए, रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के बीच के अंतर को नहीं समझते हैं. आइए आपको बताते है कि डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड में क्या अन्तर होता है.
पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड में निवेश काफी बढ़ा है. इसी के संदर्भ में डायरेक्ट प्लान के बारे में काफी चर्चा हुई है. हालांकि, बहुत से लोग रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के बीच के अंतर को नहीं समझते हैं. आइए आपको बताते है कि डायरेक्ट और रेगुलर म्यूचुअल फंड में क्या अन्तर होता है.
डायरेक्ट म्यूचुअल फंड
डायरेक्ट म्यूचुअल फंड ऐसे फंड्स होते हैं जिनमें आप सीधे म्यूचुअल फंड कंपनी या एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) से निवेश कर सकते हैं, वो भी बिना किसी ब्रोकर या एजेंट की मदद के. इसमें कोई कमीशन शुल्क नहीं लगता, जिससे इसके खर्चे कम होते हैं और आपको अधिक रिटर्न मिल सकता है.
इन फंड्स को आमतौर पर ऑनलाइन या ऑफलाइन खरीदा जा सकता है और इनके नाम में “डायरेक्ट” शब्द लगा होता है. डायरेक्ट म्यूचुअल फंड का खर्च कम होने के कारण, इसका नेट एसेट वैल्यू (NAV) आमतौर पर रेगुलर फंड्स की तुलना में अधिक होता है, जिसका मतलब है कि आपको अपने निवेश पर अधिक रिटर्न मिल सकता है. हालांकि, फंड चुनते समय केवल NAV पर ध्यान नहीं देना चाहिए. आपको फंड के पिछले प्रदर्शन, फंड मैनेजर के अनुभव और फंड के उद्देश्य को भी देखना चाहिए.
रेगुलर म्यूचुअल फंड
रेगुलर म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने के लिए आपको एक वितरक (जैसे ब्रोकर, वित्तीय सलाहकार या बैंक) की मदद लेनी होती है. ये वितरक म्यूचुअल फंड बेचने के लिए कमीशन या शुल्क लेते हैं, जो आपके म्यूचुअल फंड के खर्चे में शामिल होता है.
इन फंड्स की लागत डायरेक्ट फंड्स से अधिक होती है क्योंकि इसमें वितरकों को कमीशन देना पड़ता है. लेकिन रेगुलर म्यूचुअल फंड्स आपको एक वित्तीय सलाहकार या ब्रोकर के माध्यम से निवेश की सुविधा और सलाह भी प्रदान करते हैं. यह उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकता है जिनकी निवेश के बारे में जानकारी कम है या जो निवेश में मदद चाहते हैं.