Hybrid Balance Advantage Fund: करेक्शन से पैसा बनाने का जरिया या कुछ और, जानें क्या करें निवेशक?

पिछले कुछ महीनों में शेयर बाजार में जोरदार उतार-चढ़ाव का दौर रहा है. सितंबर 2024 में ऑल टाइम हाई पर पहुंचने के बाद करीब छह महीने के भीतर इस साल मार्च में शेयर बाजार 20 फीसदी करेक्शन के अब मई में फिर से ऊपर बढ़ रहा है. ऐसे दौर में Hybrid Balance Advantage Fund पर एक्सपर्ट की क्या राय है जानें.

म्यूचुअल फंड Image Credit: money9live.com

Hybrid Balance Advantage Fund को गिरते बाजार में पैसा बनाने का जरिया माना जाता है. हालांकि, कई बार निवेशकों के मन में यह संदेह भी होता है कि आखिर गिरते हुए बाजार में फंड मैनेजर इक्विटी में एक्सपोजर बढ़ाकर रिस्क क्यों ले रह हैं. इस सवाल का सीधा जवाब यही है कि फंड मैनेजर हवा में कोई दांव नहीं खेलते हैं. बल्कि, बहुत सोच-समझकर इक्विटी निवेश को बढ़ाते हैं.

पिछले दिनों शेयर बाजार में करीब 20 फीसदी का करेक्शन आया. अब बाजार फिर से पॉजिटिव ट्रेजेक्टरी में मूव कर रहा है. इस दौरान तमाम फंड मैनेजर्स ने BAFs यानी बैलेंस्ड एडवांटेज फंड्स में एक्सपोजर बढ़ाया है. जाहिर तौर पर एक निवेशक के दिमाग में यह सवाल उठ सकता है कि इतनी वोलेटिलिटी के दौर में आखिर इक्विटी में निवेश क्यों बढ़ाया जा रहा है. इसके लिए यहां सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि BAFs कैसे काम करते हैं.

इस तरह काम करते हैं BAFs

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड बाजार की स्थितियों के आधार पर अपने इक्विटी और डेट आवंटन को समायोजित करते हैं. इनका लक्ष्य सरल होता है. जब बाजार नीचे हो, यानी शेयरों का वैल्यूएशन सस्ता हो, इक्विटी एक्सपोजर बढ़ाएं और जब वैल्यूएशन महंगा हो जाए, तो इक्विटी में हिस्सेदारी घटाएं.

सोच-समझकर लगाया जाता है दावं

फंड मैनेजर जब इक्विटी में हिस्सेदारी बढ़ाते हैं, तो यह भावनाओं या आवेश में आकर किया गया फैसला नहीं होता है. बल्कि, इक्विटी मार्केट के बारे में सोच समझकर दांव लगाया जाता है. खासतौर पर 4 पहलुओं के स्टॉक्स को परखा जाता है, इसके बाद ही उनमें एक्सपोजर बढ़ाया जाता है.

  1. प्राइस टू अर्निंग रेश्यो यानी P/E : जब बाजार शीर्ष पर होता है, तो पी/ई अनुपात अधिक होता है. जब बाजार में करेक्शन आता है, तो यह अनुपात गिर जाता है, जो किसी भी स्टॉक को अच्छे वैल्यूएशन पर खरीदने का मौका होता है.
  2. मार्केट सेंटिमेंट इंडिकेटर: बाजार में निवेशकों के बीच भय और लालच शेयरों की कीमतों को प्रभावित करते हैं. आम तौर पर बाजार तब चरम पर होता है, तब निवेशक ज्यादा आशावादी होते हैं और तब नीचे होता है जब भय शीर्ष पर होता है. भय के दौरान ज्यादातर निवेशक बिकवाली करते हैं.
  3. कंपनी की आय में वृद्धि: जब कोई फंड मैनेजर किसी स्टॉक में निवेश करता है, तो यह जरूर देखता है कि बाजार गिरावट के दौर में भी कंपनी की कॉर्पोरेट आय में बढ़ोतरी हुई है या नहीं. यह दर्शाता है कि गिरावट स्टॉक में फंडामेंटल कमजोरी की वजह से नहीं, बल्कि बाजार में भय बढ़ने से हुई. यह निवेश के लिए अच्छा मौका होता है, क्योंकि स्टॉक अच्छे वैल्यूएशन पर मिलता है.
  4. प्राइस टू बुक रेश्यो P/B: इससे पता चलता है कि कोई स्टॉक इसकी वास्तविक कीमत की तुलना में ओवरवैल्यूड है या अंडरवैल्यूड है. इन सभी पैमानों पर परखने के बाद ही कोई फंड मैनेजर किसी स्टॉक में निवेश बढ़ाता है.

इतिहास गवाह गिरावट लंबी नहीं चलती

शेयर बाजार के हिस्टोरिकल ट्रेंड से यह पता चलता है कि गिरावट का दौर लंबा नहीं चलता है. लिहाजा, करेक्शन के दौरान इक्विटी में निवेश बढ़ाना एक स्मार्ट रणनीति है. पिछले कुछ वर्षों में, बाजारों में कई बार करेक्शन आया. इसके बाद हर बार बाजार उम्मीद से पहले और ज्यादा तेजी से ऊपर चढ़ा है.

  • 2018: वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं के चलते NIFTY 50 में लगभग 15% की गिरावट आई, लेकिन 2019 में यह तेजी से उबर गया और नए उच्च स्तर पर पहुंच गया.
  • 2020: मार्च 2020 में कोविड की वजह से बाजार 30% से अधिक गिर गया, लेकिन 2020 के अंत तक, NIFTY 50 पूरी रिकवरी के बाद नए हाई पर पहुंच गया.
  • 2022: रूस-यूक्रेन के बीच जंग शुरू होते ही बाजार में तेज गिरावट का दौर आया. लेकिन, कुछ ही दिनों के भीतर बाजार संभल गया और एक नए शीर्ष की तरफ बढ़ गया.

इस तरह ये उदाहरण बताते हैं कि बाजार में करेक्शन अस्थायी होते हैं, और रिकवरी अक्सर अपेक्षा से ज्यादा तेज होती है. फंड मैनेजर ऐसे मौकों को पहचानते हैं. करेक्शन का इस्तेमाल अगली रैली से पहले कम कीमतों पर अच्छे गुणवत्ता वाले स्टॉक को अच्छे वैल्यूएशन पर खरीदने के लिए करते हैं.

किन फंड्स ने बढ़ाया इक्विटी में हिस्सा

सितंबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच कई बड़े फंडों ने इक्विटी में हिस्सेदारी बढ़ाई है. इससे यह पुष्टि होती है कि फंड मैनेजर सस्ते मूल्यांकन का लाभ उठाने के लिए बाजार में गिरावट के दौरान इक्विटी में जोखिम को रणनीतिक रूप से बढ़ाते हैं. यह एक सफल निवेश रणनीति है, जिसमें कम कीमत पर खरीदना और ज्यादा कीमत पर बेचना शामिल है.

क्यों चिंतित नहीं हों निवेशक?

एक निवेशक के तौर पर आपके लिए यह जानना जरूरी है कि इक्विटी बाजार में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को अच्छा रिटर्न मिलता है. इसके अलावा शॉर्ट टर्म वोलेटिलिटी खेल का हिस्सा है. हिस्टोरिकल ट्रेंड इस बात का सबूत है कि करेक्शन के बाद बाजार रिकवरी के साथ नई ऊंचाई पर पहुंच जाता है. फंड मैनेजर डाटा-ड्रिवन रणनीतियों का इस्तेमाल करते हैं. वे भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि एसेसमेंट मॉडल के आधार पर इक्विटी में हिस्सेदारी बढ़ाते या घटाते हैं. निवेशकों को इन फंड में निवेश के लिए बाजार की टाइमिंग का तनाव लेने की जरूरत नहीं होती है. घबराने के बजाय, निवेशकों को इन फंड में निवेश जारी रखना चाहिए.

Disclaimer: प्रकाशित विचार लेखक के निजी हैं. म्यूचुअल फंड और अन्य जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं. कृपया निवेश करने से पहले किसी निवेश पेशेवर से सलाह लें.