त्योहारों में दिखेगा EMI का जादू, लेकिन वॉरेन बफेट ने किया अलर्ट! कर्ज नहीं, बचत को ऐसे बनाओ आदत

वॉरेन बफेट हमेशा कहते रहे हैं कि आप जितना कमाते हैं उससे अधिक खर्च करके अमीर नहीं बन सकते. उनके हिसाब से कर्ज सिर्फ पैसा नहीं खाता, दिमाग पर भी बोझ डालता है. दिवाली और दशहरा जैसे त्योहारों के चलते लोग जमकर खरीदारी करते हैं ऐसे में इस सीजन बफेट के फॉर्मूले को ध्यान रखना चाहिए.

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सितंबर और अक्टूबर का महीना शॉपिंग के लिहाज से हमेशा खास माना जाता है. दिवाली और दशहरा जैसे बड़े त्योहारों पर लोग जमकर खरीदारी करते हैं. इसी बीच iPhone 17 सीरीज लॉन्च हो चुकी है. दुकानों की विंडो में नए AirPods चमक रहे हैं और हर तरफ नो कॉस्ट EMI और ट्रेड-इन बोनस जैसे ऑफर छाए हुए हैं. कई रिटेलर्स तो iPhone 17 पर 24 महीने तक की EMI और बैंक कैशबैक तक दे रहे हैं.

ऐसे माहौल में अगर वॉरेन बफेट भारत में होते और Apple स्टोर की लाइनें देखते, तो शायद यही सलाह देते आज की चाहत को कल की जरूरत से मत मिलाओ. कर्ज के बजाय बचत को आदत बनाओ और खुद को ब्याज से आजाद रखो.

क्या है वॉरेन बफेट का फॉर्मूला?

दुनिया के सबसे बड़े निवेशक वॉरेन बफेट का कहना है कि, आप जितना कमाते हैं, उससे अधिक खर्च करके अमीर नहीं बन सकते है. उनके मुताबिक़, कर्ज सिर्फ पैसा ही नहीं खाता बल्कि दिमाग पर भी बोझ डालता है. वे कहते हैं कि,

EMI को लेकर क्या कहते हैं आंकड़ें?

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि भारत में iPhone खरीदने वाले करीब 70 फीसदी ग्राहक EMI से पेमेंट करते हैं. वहीं, ₹50,000 महीने से कम कमाने वाले 93 फीसदी सैलरी वाले लोग रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए क्रेडिट कार्ड पर निर्भर हैं. यानी EMI अब सिर्फ एक ऑप्शन नहीं, बल्कि लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है.

त्योहार की रौशनी और नए गैजेट की खुशी के बीच EMI आसान रास्ता लगता है. लेकिन जब कई EMI इकट्ठा हो जाती हैं, क्रेडिट कार्ड पर 36 से 40 फीसदी सालाना ब्याज लगने लगता है और दिखावे के लिए उधार पर जीना पड़ता है, तो असर सिर्फ पैसों तक नहीं रहता. यह तनाव, असुरक्षा और धुंधले भविष्य का कारण बनता है.

बिगड़ सकता है पूरा सिस्टम

बता दें EMI का खेल मनोविज्ञान है. सीधा ₹80,000 चुकाने की जगह सिर्फ ₹6,000 महीने देना आसान लगता है. दिवाली या लॉन्च सीजन में सब लोग जब अपग्रेड कर रहे हों, तो न खरीदना ही मुश्किल लगता है. लेकिन सच ये है कि अगर ₹50,000 का क्रेडिट कार्ड बकाया समय पर न चुकाया जाए, तो दो साल में ये दोगुना हो सकता है. बाय नाउ पे लेटर स्कीम्स में भी हर चार में से एक यूजर पेमेंट चुकाने में फँस चुका है. EMI जो कभी सिर्फ घर या गाड़ी के लिए होती थी, अब फोन, कपड़े और छुट्टियों के लिए भी आम हो चुकी है. एक-दो EMI खतरनाक नहीं, लेकिन जब इनकी संख्या बढ़ती है तो सैलरी का बड़ा हिस्सा आने से पहले ही खर्च हो जाता है. ऐसे में अचानक नौकरी जाने या इमरजेंसी आने पर पूरा सिस्टम ढह सकता है.

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