जमीन या रेडीमेड मकान किसकी रजिस्ट्री पड़ती है महंगी, यहां जानें पूरे नियम
नियम के मुताबिक बना बनाया मकान या जमीन दोनों की ही रजिस्ट्री एक ही तरह से होती है. हालांकि रजिस्ट्री के रेट घर या जमीन के एरिया पर निर्भर करता है.

खुद के घर का सपना हर कोई देखता है. कुछ लोग जमीन खरीदकर घर बनवाते हैं, तो वहीं बहुत से लोग बने बनाएं यानी रेडीमेड मकान या फ्लैट खरीद लेते हैं. घर लेने के लिए लोन या एकमुश्त भुगतान के अलावा भी कई फॉर्मेलिटीज पूरी करनी होती हैं. इन प्रक्रियाओं में रजिस्ट्री भी एक है. इसी के जरिए आपको घर का मालिकाना हक मिलता है. चूंकि ये एक कानूनी प्रक्रिया है इसलिए इसके बदले आपको तय शुल्क भी चुकाना होता है. मगर सवाल आता है कि आखिर जमीन या बने बनाए मकान किसके लिए रजिस्ट्री पर ज्यादा पैसे देने पड़ते है और इसकी प्रक्रिया क्या है. इसे समझने के लिए इन नियमों को जानना जरूरी है.
रजिस्ट्री में नहीं होता कोई अंतर
नियम के मुताबिक बना बनाया मकान या जमीन दोनों की ही रजिस्ट्री एक ही तरह से होती है. इसकी फीस भी बराबर होती है. इतना ही नहीं दोनों प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री के लिए दफ्तर भी एक ही होता है. हालांकि रजिस्ट्री के रेट घर या जमीन के एरिया पर निर्भर करता है. साथ ही आपने घर शहर में लिया है गांव में इसका भी असर पड़ता है.
शहरों में ज्यादा होता है सर्किल रेट
मकान या जमीन की रजिस्ट्री फीस सर्किल रेट के आधार पर तय होती है. बता दें सर्किल रेट किसी संपत्ति की वो न्यूनतम कीमत है, जो राज्य सरकारें तय करती हैं और इसका उपयोग स्टांप शुल्क, पंजीकरण शुल्क और टैक्स की गणना के लिए किया जाता है. चूंकि शहरों में प्रॉपर्टी की मांग ज्यादा रहती है इसलिए गांवों के मुकाबले शहरी इलाकों में सर्किल रेट महंगा होता है. ग्रामीण क्षेत्र में जहां आपको सर्किल रेट का चार से पांच प्रतिशत रजिस्ट्री शुल्क चुकाना होता है. तो वहीं शहरी क्षेत्र में आपको यह करीब 6% चुकाना होता है. हालांकि सरकारी स्कीमों के तहत महिला आवेदक के नाम घर लेने पर रजिस्ट्री में छूट भी मिल सकती है.
कैसे पता करें सर्किल रेट?
सर्किल रेट पता करने के लिए आप राजस्व विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं. आप घर बैठे अपने मोबाइल या कंप्यूटर से एरिया का सर्किल रेट पता कर सकते है. यहां आप जमीन का नक्शा, भूलेख रिकॉर्ड समेत अन्य डिटेल भी हासिल कर सकते है. हालांकि पहले इन चीजों की जानकारी के लिए राजस्व विभाग के ऑफिस में जाना पड़ता था.
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