Crypto vs Stablecoin: 2025 में निवेश के लिए कौन सा बेहतर, सुरक्षा और रिटर्न के मोर्चे पर किसमें ज्यादा दम?
Cryptocurrencies ने वैश्विक स्तर पर भुगतान के तौर तरीकों को बदल दिया है. इसके साथ ही निवेश की दुनिया में भी बड़े बदलाव किए हैं. अब क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में कई बड़े बदलाव आ रहे हैं, इनमें क्रिप्टोकरेंसी की एक बड़ी समस्या का समाधान स्टेबलकॉइन कर रहे हैं. जानते हैं बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी और स्टेबलकॉइन में क्या अंतर है?
ग्लोबल क्रिप्टोकरेंसी का मार्केट कैप 3 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुका है. इसमें 2 ट्रिलियन डॉलर के साथ सबसे बड़ा हिस्सेदार बिटकॉइन है. वहीं, दुनियाभर में करीब 100 स्टेबलकॉइन हैं, जिनका सामूहिक मार्केट कैप 227.96 अरब डॉलर है. स्टेबलकॉइन और बिटकॉइन दोनों ही पारंपरिक वित्तीय ढांचे से बाहर काम करते हैं. इस तरह दोनों ही पेमेंट और ट्रांजैक्शन के लिए बैंकिंग और कार्ड नेटवर्क से मुक्त हैं. बैंक ट्रांजैक्शन धीमे होते हैं, इनमें पारदर्शिता की कमी होती है. ऐसे में क्रिप्टोकॉइन हों या स्टेबलकॉइन दोनों ही पारंपरिक भुगतान तरीकों को चुनौती देते हैं. बिटकॉइन और स्टेबलकॉइन ब्लॉकचेन तकनीक पर ही काम करते हैं. लेकिन दोनों के बीच कई अंतर हैं. ये अंतर इनके उद्देश्य, प्रबंधन और अंतर संचालन से जुड़े हैं.
क्या होते हैं स्टेबलकॉइन
स्टेबलकॉइन एक तरह की क्रिप्टोकरेंसी ही है, जिसे स्थिरता के लिए डिजाइन किया गया है, ताकि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी की तरह कीमत में बेलगाम उतार-चढ़ाव न आए. आमतौर पर स्टेबलकॉइन की कीमत व आपूर्ति किसी दूसरी स्थिर संपत्ति, मसलन डॉलर या सोने से जुड़ी होती है. इनकी कीमत स्थिर रखने के लिए, ऑपरेटर अंडरलाइंग एसेट्स के भौतिक स्टॉक को बनाए रखते हैं. मोटे तौर पर स्टेबलकॉइन के चार अलग-अलग प्रकार हैं.
- फिएट-कोलैटरलाइज्ड स्टेबलकॉइन:
इन्हें ऑफ-चेन स्टेबलकॉइन भी कहा जाता है. ये कॉइन फिएट करेंसी यानी डॉलर या रुपया के भंडार से सपोर्टेट होते हैं. इन कॉइन की आपूर्ति को फिएट करेंसी के भंडार के आधार पर तय होती है. फिएट-कोलैटरलाइज्ड स्टेबलकॉइन के उदाहरणों में टीथर जिसे USDT और यूएसडीसी शामिल हैं. - कमोडिटी कोलैटराइज्ड स्टेबलकॉइन:
इन्हें सोना, चांदी या किसी ठोस कमोडिटीज के भंडार से सपोर्ट किया जाता है. इस तरह के स्टेबलकॉइन की आपूर्ति इसकी अंडरलाइन्ड कमोडिटी की मात्रा के आधार पर तय होती है. PAX गोल्ड यानी PAXG और टेथर गोल्ड xAUT कमोडिटी-कोलैटरलाइज्ड स्टेबलकॉइन के उदाहरण हैं. - क्रिप्टोकरेंसी कोलैटराइज्ड स्टेबलकॉइन:
इन्हें ऑन-चेन स्टेबलकॉइन भी कहा जाता है. ये ईथर या बिटकॉइन के रिजर्व से सपोर्टेड होते हैं. ये स्टेबलकॉइन क्रिप्टोकरंसी स्टॉक को लॉक करने के लिए स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग करते हैं. डाई और रैप्ड बिटकॉइन क्रिप्टोकरंसी-कोलैटरलाइज्ड स्टेबलकॉइन के उदाहरणों हैं. - एल्गोरिथमिक स्टेबलकॉइन:
ये नॉन-कोलैटरलाइज्ड या सिग्नोरेज-स्टाइल स्टेबलकॉइन भी कहे जाते हैं. इस तरह के स्टेबलकॉइन की आपूर्ति और मूल्य को नियंत्रित करने के लिए एल्गोरिदम और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल किया जाता है. जब स्टेबलकॉइन की कीमत उसके पेग से ऊपर होती है, तो एल्गोरिदम इसे नीचे लाने के लिए आपूर्ति बढ़ाता है. USDD एक एल्गोरिथमिक स्टेबलकॉइन है.
स्टेबलकॉइन और बिटकॉइन में अंतर
बिटकॉइन और स्टेबलकॉइन दोनों ही क्रिप्टोकरेंसी के प्रकार हैं. लेकिन, इनमें कई अंतर होते हैं. सबसे बड़े अंतर इनको बनाए जाने के मकसद, काम करने के तरीके और वोलेटिलिटी, आपूर्ति और मूल्य नियंत्रण से जुड़े हैं.
- मकसद : बिटकॉइन और स्टेबलकॉइन में सबसे बड़ा अंतर इनके बनाए जाने के मकसद का है. जहां, बिटकॉइन को एक डिसेंट्रलाइज्ड डिजिटल करेंसी के तौर पर बनाया गया है. वहीं, ज्यादातर स्टेबलकॉइन को बनाने का मकसद क्रिप्टोकरेंसी की प्राइस वोलेटिलिटी की समस्या से निजात दिलाना है.
- प्रबंधन : स्टेबलकॉइन असल में बिटकॉइन के विपरीत सेंट्रलाइज्ड क्रिप्टोकरेंसी हैं. इसका मतलब है कि कॉइन को एक संगठन की तरफ से जारी और प्रबंधित किया जाता है. मिसाल के तौर पर टेथर को टेथर लिमिटेड जारी करती है. जबकि, बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी को कोई जारी नहीं करता है, ब्लकि ब्लॉकचेन माइनिंग से नए ब्लॉक बनते हैं.
- अंतर संचालन की क्षमता: स्टेबलकॉइन एक साथ कई ब्लॉकचेन में काम करने में सक्षम हैं, जबकि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी केवल अपने नेटिव नेटकर्व पर ही काम करती है. यह इंटरऑपरेबिलिटी डिसेंट्रलाइज्ड फाइनेंस प्लेटफॉर्म और इकोसिस्टम में लिक्विडिटी और उपयोग को बढ़ावा देती है.
निवेश और सुरक्षा के लिहाज से कौन बेहतर
स्टेबलकॉइन ब्लॉकचेन तकनीक के जरिये तेजी से अलग-अलग नेटवर्क पर पेमेंट की सुविधा देते हैं. इसके साथ ही इनकी प्राइस में वोलेटिलिटी नहीं होती है. ऐसे में अगर आपको सिर्फ भुगतान के लिहाज से इस्तेमाल करना है, तो स्टेबलकॉइन बेहतर हैं. वहीं, निवेश के लिहाज से देखा जाए, तो बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी बेहतर हैं, क्योंकि इनमें अनियंत्रित वोलेटिलिटी निवेशकों को ज्यादा रिटर्न के मौके देती है. अगर नेटवर्क की सुरक्षा के लिहाज से देखा जाए, तो दोनों ही ब्लॉकचेन पर काम करते हैं, ऐसे में इस लिहाज से दोनों में खास फर्क नहीं है.