प्रेमचंद ने ₹22 में शुरू की थी BSE, आज 96000 करोड़ की हैसियत, रोज 5000 से ज्यादा कंपनियों की तय होती है किस्मत
19वीं सदी के एक दलाल ने 22 रुपये से जो शुरुआत की थी, वह आज भारत की सबसे बड़ी स्टॉक कंपनियों में से एक है. लेकिन इस कहानी में सिर्फ पैसा नहीं, चालें हैं, उतार-चढ़ाव है और एक ऐसा नाम है जो भारतीय बाजार के इतिहास में पहली बार ‘बिग बुल’ कहलाया.

मुंबई के हॉर्निमन सर्कल में कभी एक बरगद का पेड़ था, शहर की शोरगुल से दूर, लेकिन उस वक्त की आर्थिक धड़कनों के बिलकुल पास. वहीं, कुछ 22 दलाल एक रुपये की हिस्सेदारी से एक ‘एसोसिएशन’ खड़ा करते हैं. कोई नहीं जानता था कि यही कोशिश एक दिन एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज में तब्दील हो जाएगी- Bombay Stock Exchange, जिसे आज हम BSE के नाम से जानते हैं.
लेकिन BSE की ये जो चमचमाती इमारत है, इसके पीछे एक ऐसा शख्स है जिसकी कहानी में सूझबूझ, जोखिम, गिरावट और समाज के लिए कुछ कर जाने का इरादा- सब कुछ मौजूद है. नाम था प्रेमचंद रॉयचंद.
BSE आज किस मुकाम पर?
आज बीएसई पर 5,671 कंपनियां लिस्टेड हैं और इनका कुल बाजार पूंजीकरण 462 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. इसके अलावा अगर सिर्फ बीएसई के मार्केट कैप की बात करें तो मौजूदा वक्त में कंपनी की कीमत 96,297 करोड़ रुपये हैं. शुक्रवार को कंपनी के शेयर 4 फीसदी की बड़ी गिरावट के साथ 2,371 रुपये पर लिस्ट हुए. ये गिरावट कंपनी के शेयरों में जेन स्ट्रीट को बैन करने के बाद देखी गईं. अगर रिटर्न की बात करें तो पांच साल में कंपनी मल्टीबैगर साबित होते हुए अपने निवेशकों को 4,124 फीसदी का रिटर्न दे चुकी है.
रेवेन्यू देखें तो कंपनी ने इन चार वर्षों में साल दर साल केवल ग्राफ बढ़ाया है. 2020 में कंपनी का रेवेन्यू 630 करोड़ रुपये था जो 2024 में 1618 करोड़ रुपये पहुंच गया. यानी करीब 157 फीसदी की बढ़ोतरी. इसी चाल पर चलते हुए कंपनी ने एक साल में प्रॉफिट में भी धमाकेदार 274.76 फीसदी की बढ़त की. 2023 में कंपनी ने 206 करोड़ मुनाफा दर्ज किया जो 2024 में बढ़कर 772 करोड़ रुपये पहुंच गया.
“बॉम्बे का बिग बुल” थे “कॉटन किंग” भी
1831 में सूरत में जन्मे प्रेमचंद को उनके पिता बॉम्बे इसलिए लाए ताकि वे बेहतर शिक्षा ले सकें. उनके पिता रायचंद दीपचंद लकड़ी का व्यापार करते थे . वे चाहते थे कि बेटा पढ़-लिखकर कुछ बड़ा करे, इसलिए उसे एल्फिंस्टन कॉलेज (तब का एल्फिंस्टन इंस्टिट्यूशन) में दाखिल करवाया. प्रेमचंद ने 1849 में महज 18 साल की उम्र में शेयर बाजार की दुनिया में कदम रखा. शुरुआत एक सहायक के तौर पर की एक ऐसे ब्रोकरेज में जहां उनके अंग्रेजी बोलने के हुनर ने उन्हें बाकी दलालों से अलग पहचान दी. वो उस दौर के पहले भारतीय ब्रोकर माने जाते हैं जो अंग्रेजी पढ़, लिख और बोल सकते थे. यही कौशल उन्हें यूरोपीय बैंकरों और व्यापारियों के बीच एक विश्वसनीय चेहरा बनाता गया.
लेकिन बॉम्बे का बिग बुल कहे जाने वाले प्रेमचंद को असली पहचान मिली 1860 के दशक में, जब दुनिया की राजनीति ने बॉम्बे के बाजार को हिला कर रख दिया. अप्रैल 1861 में अमेरिका में सिविल वॉर छिड़ा. नतीजा ये हुआ कि ब्रिटेन की कपास मिलों को अमेरिका से कच्चा माल मिलना बंद हो गया. ब्रिटेन ने भारत की तरफ रुख किया. यहां से कपास की मांग अचानक तेज हो गई और कीमतें आसमान छूने लगीं. प्रेमचंद ने इस मौके को तुरंत पहचाना.
उन्होंने न केवल किसानों और व्यापारियों से सीधा संपर्क बढ़ाया, बल्कि अपने एजेंटों के जरिए गुजरात और काठियावाड़ के कपास उत्पादक इलाकों में एडवांस बुकिंग करवाई. वो एक समय पर कपास की खरीद करते और जब कीमतें लिवरपूल में बढ़तीं, तो मुनाफा बटोरते.
अंग्रेजी अखबारों में होने लगी प्रेमचंद की स्ट्रैटजी की चर्चा
लेकिन उनका खेल सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं था. उन्होंने बैंकों, व्यापारिक कंपनियों और प्रेस के साथ एक ऐसा तंत्र खड़ा किया जिसमें पूंजी प्रवाह को अपनी योजना के मुताबिक मोड़ पाना उनके लिए मुमकिन हो गया. Bank of Bombay और Asiatic Bank जैसे संस्थानों में वो डायरेक्टर बन बैठे. उन्होंने बैंकों के जरिए कंपनियों को फंड दिलवाए, उन्हीं कंपनियों के शेयर लिस्ट करवाए, और फिर अपने नेटवर्क और बाजार की नब्ज से उनकी कीमतें ऊपर चढ़ाईं.
बॉम्बे में शेयरों की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ीं कि एक वक्त Victoria Land Reclamation (जो उनकी लिस्टेंड करवाई कंपनियों में से एक थी) कंपनी के शेयर की कीमत 50,000 रुपये तक जा पहुंची. यह उस दौर में एक असंभव-सी लगने वाली बात थी. अंग्रेज अखबारों में प्रेमचंद की चालें, उनका नेटवर्क और उनकी व्यवसायिक समझ सुर्खियों में रहने लगी. इस तेजी के दौर को इतिहास में ‘बॉम्बे बूम’ कहा गया और प्रेमचंद रॉयचंद इस बूम के आर्किटेक्ट माने गए.
सफलता से तेज, मंदी ने पकड़ी कलाई
लेकिन तेजी जितनी तेज थी, मंदी उससे भी ज्यादा गहरी साबित हुई. 1865 में जब अमेरिका का सिविल वॉर खत्म हुआ तो ब्रिटेन को फिर से अमेरिका से सस्ती कपास मिलने लगी. भारत से कपास की मांग घट गई और दामों में गिरावट शुरू हो गई. बॉम्बे के शेयर बाजार में अफरा-तफरी मच गई. जिन कंपनियों के शेयर ऊंचाइयों पर थे, वे धड़ाम से गिरने लगे. कई संस्थाएं दिवालिया हो गईं. बैंकों की पूंजी डूब गई. प्रेमचंद रॉयचंद की छवि पर भी गहरा धक्का लगा.
1868 में एक विशेष जांच समिति बनी. Bank of Bombay की गिरावट की वजहों को समझने के लिए इस समिति ने पाया कि उधार देने में अनुशासन की कमी, और प्रेमचंद जैसे व्यापारियों की गहरी पकड़ इस संकट की एक बड़ी वजह बनी. हालांकि प्रेमचंद पर कोई आपराधिक आरोप सिद्ध नहीं हुआ, लेकिन उनकी छवि धूमिल हुई.
Philanthropist बनने की राह
यहां से प्रेमचंद ने खुद को एक बार फिर से खड़ा किया, लेकिन इस बार एक नए रूप में, एक परोपकारी नागरिक के तौर पर. उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा समाज सेवा में लगाया. University of Mumbai में आज जो राजाबाई टावर खड़ा है वह उनकी मां राजाबाई की याद में उनके दान से ही बन सका. उन्होंने University of Calcutta में ‘Premchand Roychand Scholarship’ की शुरुआत की, जो आज भी छात्रों को सम्मानित करती है. सूरत में लड़कियों के लिए स्कूल खुलवाया. मुंबई की कई स्कूलों और कॉलेजों में उनके योगदान की इबारतें आज भी मौजूद हैं.
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आज जब हम Bombay Stock Exchange के 150 वर्षों के सफर को देखते हैं- उसकी टावर की ऊंचाई को, Sensex की रफ्तार को और मार्केट कैप के आंकड़ों को तो इस बरगद के नीचे बैठे उस नौजवान को याद करना जरूरी है जिसने कभी सिर्फ अंग्रेजी सीखी थी और उसे अपनी सबसे बड़ी पूंजी बना लिया.
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