GDP 8%, मार्केट रिकॉर्ड हाई पर… फिर भी क्यों भाग रहे हैं विदेशी निवेशक? FIIs की बिकवाली के पीछे 4 बड़े कारण
FPI निवेशक अभी भी फ्यूचर्स मार्केट में 85% नेट शॉर्ट पोजिशन में हैं और कैश मार्केट में भी बिकवाली कर रहे हैं. टैक्स नियम सख्त होने, भारतीय बाजारों के महंगे होने, कम कमाई की उम्मीद, रुपये की कमजोरी और अमेरिका-भारत व्यापार अनिश्चितता ने विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर किया है.
FIIs are selling stocks: भारतीय शेयर बाजार एक बार फिर नए रिकॉर्ड हाई पर पहुंच चुका है. देश की GDP भी छह तिमाही के हाई यानी 8% से ऊपर है. इसके बावजूद विदेशी निवेशक (FII) लगातार बिकवाली कर रहे हैं. दिसंबर की शुरुआत में भी FIIs ने करीब 1,171 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं. इससे पहले नवंबर में भी वे नेट सेलर रहे थे. यह लगातार पांचवां महीना है जब विदेशी निवेशकों ने बिक्री की है. पूरे 2025 में अब तक FIIs लगभग 2.96 लाख करोड़ रुपये बाजार से निकाल चुके हैं.
FPI निवेशक अभी भी फ्यूचर्स मार्केट में 85% नेट शॉर्ट पोजिशन में हैं और कैश मार्केट में भी बिकवाली कर रहे हैं. टैक्स नियम सख्त होने, भारतीय बाजारों के महंगे होने, कम कमाई की उम्मीद, रुपये की कमजोरी और अमेरिका-भारत व्यापार अनिश्चितता ने विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर किया है. आइए समझते हैं वह 4 बड़ी वजहें, जिनकी वजह से FIIs भारतीय शेयरों से दूरी बना रहे हैं.
1. भारतीय शेयरों का महंगा होना (हाई वैल्यूएशन)
भारतीय शेयर बाजार कई उभरते बाजारों (EMs) की तुलना में काफी महंगे हैं. बड़ी कंपनियों के शेयरों के वैल्यूएशन कोविड के बाद के स्तर से नीचे तो आए हैं, लेकिन फिर भी ऐतिहासिक औसत से ऊपर हैं. स्मॉलकैप शेयरों में तो वैल्यूएशन और भी ज्यादा बढ़ा हुआ है. जब बाजार बहुत महंगा दिखता है, तो विदेशी निवेशक अक्सर मुनाफा निकालने लगते हैं और सस्ते बाजारों में निवेश बढ़ाते हैं.2. कैपेक्स में सुस्ती
सरकार का Capex अक्टूबर में 28% घट गया. दूसरी ओर, सरकारी खर्च ब्याज भुगतान के कारण बढ़ गया. टैक्स कलेक्शन चाहे इनकम टैक्स हो या कॉर्पोरेट टैक्स सभी कमजोर दिखा. GST कलेक्शन भी घटा है. Goldman Sachs का मानना है कि सरकार को इस स्थिति में अपना वित्तीय घाटा लक्ष्य (4.4% of GDP) पूरा करने के लिए खर्च कम करना पड़ेगा, जिसका असर कैपेक्स पर पड़ेगा. यही सुस्ती निवेशकों को परेशान कर रही है.3. कंपनियों की कमाई में कमजोरी
दूसरी तिमाही (Q2) में उम्मीद थी कि कंपनियों के नतीजे बेहतर होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सिर्फ 17% कंपनियों की कमाई का अनुमान बढ़ा. अधिकांश ब्रोकरेज ने FY26 की कमाई (EPS) का अनुमान घटाया है. एक्सपर्ट का मानना है कि FY27–FY28 में स्थिति सुधर सकती है, लेकिन अभी आने वाली तिमाहियां बहुत अहम होंगी. कमजोर कमाई विदेशी निवेशकों के लिए बड़ा नेगेटिव संकेत है.4. रुपया नई कमजोरी पर
भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 89.54 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. डॉलर की मांग बढ़ी है. अमेरिका-भारत व्यापार बातचीत को लेकर अनिश्चितता भी बनी हुई है. डॉलर इंडेक्स भी 99 से ऊपर बना हुआ है. डॉलर मजबूत होने पर आमतौर पर FIIs उभरते बाजारों से पैसे निकालते हैं. इसके अलावा भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बातचीत लंबे समय से चल रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है.
ऐसे में आगे क्या?
एक्सपर्ट का मानना है कि विदेशी निवेशकों का रुख तभी बदलेगा जब बाजार के वैल्यूएशन आकर्षक हों, कंपनियों की कमाई मजबूत दिखने लगे और डॉलर की मजबूती कम हो. फिलहाल, भारतीय बाजारों की तुलना में कई अन्य उभरते बाजार विदेशी निवेशकों को ज्यादा आकर्षक लग रहे हैं.
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