बढ़ती जा रही AI की बिजली की भूख, फ्रांस सहित दुनिया के सैकड़ों देशों से ज्यादा है डाटा सेंटर की ऊर्जा खपत
AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन के हर क्षेत्र में शामिल हो रही है. AI के जरिये दुनिया की तमाम बड़ी समस्याओं के सुलझने की उम्मीद बढ़ रही है. लेकिन, फिलहाल AI की बढ़ती बिजली की भूख अपने आप में एक समस्या बन गई है.

IMF की तरफ से जारी अप्रैल 2025 की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में बताया है कि किस तरह AI की बिजली की खपत बढ़ती जा रही है. IMF का अनुमान है कि 2030 तक AI Data Center की बिजली की खपत चीन, भारत और अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा हो जाएगी. आईएमएफ का मानना है कि एआई की वजह से वार्षिक वैश्विक आर्थिक विकास की औसत गति को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि, इस आर्थिक वृद्धि की हमें कीमत चुकानी होगी. यह कीमत बढ़ी हुई बिजली खपत के तौर पर सामने आएगी.
AI मॉड्यूल की ट्रेनिंग से लेकर इसके आउटपुट को चलाने के लिए भारी-भरकम डाटा सेंटर्स की जरूरत है. ये डाटा सेंटर जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, दुनिया में बिजली ग्रिड पर पड़ने वाले दबाव भी बढ़ रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में बिजली की मांग में भारी बढ़ोतरी होना तय है.
कितनी बिजली खा रहे डाटा सेंटर?
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन के हालिया अनुमान के मुताबिक दुनिया के तमाम डाटा सेंटर 2023 में 500 टेरावाट प्रति घंटे की बिजली खपत कर रहे थे. यह 2015 से 2019 के वार्षिक स्तरों से दोगुना से भी अधिक है और 2030 तक यह तीन गुना होकर 1,500 टेरावाट प्रति घंटे हो सकती है.

आईएमएफ के ऊपर दिखाए गए चार्ट से पता चलता है कि AI डाटा सेंटर पहले से ही जर्मनी और फ्रांस जितनी बिजली इस्तेमाल कर रहे हैं. 2030 तक यह खपत भारत के बराबर हो जाएगी, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उपयोगकर्ता है. इस तरह देखा जाए, तो 2030 दुनिया के तमाम एआई डाटा सेंटर बिजली की खपत में सिर्फ चीन, अमेरिका और भारत से पीछे होंगे.
अमेरिका में हो रही सबसे ज्यादा खपत
डाटा सेंटर की बिजली खपत सबसे ज्यादा अमेरिका में सबसे बढ़ रही है. यहां दुनिया में सबसे ज्यादा सेंटर हैं. मैकिन्से एंड कंपनी के मुताबिक अमेरिकी सर्वर फार्म के लिए जरूरी बिजली 2030 तक तीन गुना से ज्यादा यानी 600 टेरावाट प्रति घंटे तक बढ़ने की संभावना है.
AI बढ़ा रहा ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग के लिए ग्रीन हाउस गैस सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. मौजूदा ऊर्जा नीतियों के तहत AI की वजह से बिजली की मांग में जो बढ़ोतरी हुई है, उसकी वजह से 2025 से 2030 के ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में 1.7 गीगाटन की वृद्धि हो सकती है.
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