पुतिन का आखिरी हथियार ‘डेड हैंड’, जिससे ट्रंप भी हैं डरते, जानें कब होगा इस्तेमाल और क्या होगा अंजाम?

Dead Hand system रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पास एक ऐसा हथियार है, जिससे पूरी दुनिया खौफ खाती है. यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इससे थर्राए हुए रहते हैं. क्योंकि, अगर इसका इस्तेमाल होता है, तो इसका मतलब पूरी दुनिया का अंत निश्चित है. जानते हैं, क्या है डेड हैंड और अगर इसका इस्तेमाल हुआ तो क्या अंजाम होगा?

रूस का डेड हैंड सिस्टम पूरी दुनिया को मिटा सकता है Image Credit: Money9live

Russian Doomsday Nuclear Weapons Control System: कोल्ड वार यानी 1947 से 1989 के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियार और तकनीक की जंग चली. इस दौरान अमेरिका के बॉम्बर 24 घंटे न्यूक्लियर बम लादकर रूसी एयरस्पेस के आसपास मंडराते रहते थे. वहीं, समुद्र की गहराई में रूसी पनडुब्बियां न्यूक्लियर मिसाइलों के साथ अमेरिका के चारों तरफ गश्त करती थीं. इसी दौर में सोवियत संघ ने एक ऐसा डूम्सडे न्यूक्लियर स्ट्राइक वेपन सिस्टम बनाया, जो पूरी पृथ्वी को श्मशान बना सकता है. माना जाता है कि सोवियत दौर का यह हथियार आज भी रूस इस्तेमाल कर रहा है, यही वजह है कि यूक्रेन-रूस की जंग में अमेरिका नाटो को लेकर सीधे तौर पर कूदने से कतरा रहा है.

वॉशिंगटन पोस्ट के एडिटर रहे डेविड ई हॉफमैन दुनिया के अकेले ऐसे गैर-रूसी और असैन्य व्यक्ति हैं, जिनके पास रूस के डेड हैंड सिस्टम की सबसे ज्यादा जानकारी है. हॉफमैन को 2010 में जनरल नॉन फिक्शन कैटेगरी में उनकी किताब “The Dead Hand: The Untold Story of the Cold War Arms Race and Its Dangerous Legacy” के लिए पुलित्जर प्राइज मिला है. हॉफमैन के मुताबिक डेड हैंड सिस्टम ऑटोमैटिक न्यूक्लियर वेपन कंट्रोल सिस्टम है. इसे ग्लोबल न्यूक्लियर वार की स्थिति में रीटेलिएटरी एक्शन के लिए तैयार किया गया है.

क्या है डेड हैंड?

हॉफमैन की किताब “डेड हैंड: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ द कोल्ड वार आर्म्स रेस एंड इट्स डेंजरस लेगैसी” के मुताबिक डेड हैंड सिस्टम को ‘पेरिमीटर’ भी कहा जाता है. सोवियत दौर के इस सिस्टम को रूस अब भी इस्तेमाल कर रहा है.

क्या कर सकता है?

हॉफमैन बताते हैं कि डेड हैंड को ऐसे न्यूक्लियर वार की स्थिति के लिए बनाया गया है, जब किसी हमले में रूसी कमांड और कम्युनिकेशन सिस्टम पूरी तरह खत्म हो चुका है. कमांड चेन की गैर-मौजूदगी में यह सिस्टम खुद ही जवाबी न्यूक्लियर हमला करेगा और यह ऐसा परमाणु हमला होगा, जिससे पूरे यूरोप और अमेरिका सहित करीब पूरी दुनिया तबाह हो जाएगी.

कैसे करता है काम?

जब रूसी कमांड चेन और कम्युनिकेशन सिस्टम ठप पड़ जाएगा, तो ग्राउंड बेस्ड सेंसर के आधार पर यह सिस्टम पूरे रूस में फैले ICBM साइलो और दुनियाभर में मौजूद रसियन सबमरीन को न्यूक्लियर अटैक का आदेश और कॉर्डिनेट्स मिलेगा, जिसके बाद खुद-ब-खुद रूसी मिसाइलें पहले से तय ठिकानों पर हमला कर देंगी. मोटे तौर पर यह सिस्टम रूस पर हमला करने वाले देश को पूरी तरह मिटा देगा.

कहां से आया आइडिया?

डूम्सडे न्यूक्लियर वैपन का कंसेप्ट को लेकर दावा किया जाता है कि सबसे पहले 1960 में अमेरिकी न्यूक्लियर फिजिसिस्ट हरमन काह्न ने अपनी किताब “ऑन थर्मोन्यूक्लियर वॉर” में पेश किया. लेकिन, अमेरिका ने इस कंसेप्ट पर काम नहीं किया, क्योंकि काह्न के मॉडल में न्यूक्लियर वेपन्स पर सरकार का सेना के नेतृत्व का नियंत्रण नहीं रहेगा. बाद में रूस ने इसे MAD यानी म्यूचुअली अश्योर्ड डेस्ट्रक्शन डॉक्ट्रिन नाम दिया और 1980 के दशक में डेड हैंड तैयार कर लिया.

क्यों डरता है अमेरिका?

जॉर्ज पी. शुल्ज और जेम्स ई गुडबाय की संपादित किताब ‘द वार दैट मस्ट नेवर बी फॉट: डाइलेमाज ऑफ न्यूक्लियर डेटरेंस’ में बताया गया है कि सोवियत संघ ने न्यूक्लियर डेटरेंस के नाम पर जो डेड हैंड तैयार किया है, वह उस स्थिति के लिए बना है, जिसमें रूसी राजधानी मॉस्को पर न्यूक्लियर अटैक होता है, जिसके बाद रूस की पॉलिटिकल और आर्मी की चेन ऑफ कमांड खत्म हो चुकी है, ऐसे में न्यूक्लियर रेडिएशन और ग्राउंड बेस्ड एक्टिविटीज को सेंस करने के बाद डेड हैंड सबसे पहले तमाम अमेरिकी शहरों और सैन्य ठिकानों पर परमाणु हमला करेगा.

डेड हैंड में कितनी मिसाइल?

वेब पोर्टल मिलिट्री डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में एक पूर्व सोवियत सैन्य अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि डेड हैंड, जिसे पेरिमीटर भी कहा जाता है, असल न्यूक्लियर वॉरहेड से लैस 4,000 बैलिस्टिक मिसाइलों का ऐसा नेटवर्क है, जो महज 40-45 मिनट में पूरी दुनिया को तबाह देगा. इसके अलावा जब डेड हैंड सक्रिय होगा, तो माना जाएगा कि रूस की पॉलिटिकल और मिलिट्री लीडरशिप खत्म हो चुकी है. ऐसे रूस के पूरे न्युक्लियर आर्सेनल का कंट्रोल रूस के डूम्सडे बंकर में मौजूद सैन्य टुकड़ी के हाथ में आ जाएगा, जो डेड हैंड के साथ ही बची हुई न्यूक्लियर मिसाइलों से पूरी दुनिया पर हमला कर सकते हैं.

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