तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार की भरेगी झोली, 1.8 लाख करोड़ की होगी बचत, क्या सस्ता होगा पेट्रोल-डीजल
कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई है, अगर ये आगे भी जारी रहती है तो इसका फयदा भारत को सबसे ज्यादा मिलेगा. इससे सरकार की करोड़ों की बचत होगी. इक्रा की रिपोर्ट में इसका अनुमान लगाया गया है. तो क्या इसका फायदा आम लोगों को भी मिलेगा, चेक करें डिटेल.

Crude Oil price cut: वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का भारत को जबरदस्त फायदा मिल सकता है. रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार, तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में मौजूदा गिरावट का रुख बरकरार रहने पर भारत करोड़ों की बचत कर सकता है. भारत अपने तेल और एलएनजी आयात बिल पर 1.8 लाख करोड़ रुपये तक की भारी-भरकम बचत कर सकता है. मगर सवाल ये है कि क्या कीमतों में आई गिरावट से पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतें घटेंगी, क्या आम आदमी को राहत मिलेगी.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. मार्च 2025 तक खत्म हुए वित्तीय वर्ष में कच्चे तेल के आयात पर भारत ने 242.4 अरब डॉलर खर्च किए, जो उसकी घरेलू जरूरतों का 85% से ज्यादा है. इसके अलावा, 15.2 अरब डॉलर LNG आयात पर खर्च हुए] लेकिन हाल ही में अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में नरमी ने भारत को बड़ी राहत दी है.
चार साल के निचले स्तर पर कीमतें
इस हफ्ते की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमतें चार साल के निचले स्तर यानी 60.23 डॉलर प्रति बैरल तक लुढ़क गईं थी. इसमें इतनी बड़ी गिरावट की वजह वैश्विक आपूर्ति बढ़ने और मांग अनिश्चित रहने की चिंताएं थी. इससे बाजार में असमंजस्य का महौल था. हालांकि, कीमतें अब 62.4 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, लेकिन ये मार्च 2024 की तुलना में 20 डॉलर कम हैं. आज ब्रेंट क्रूट ऑयल की कीमत 61.11 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. आम चुनावों से पहले पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई थी.
कितनी होगी बचत?
इक्रा का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत 60-70 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहेगी. इस स्तर पर भारत कच्चे तेल के आयात पर 1.8 लाख करोड़ रुपये और एलएनजी आयात पर 6,000 करोड़ रुपये की बचत कर सकता है. हालांकि, तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों के लिए यह कीमत कम करना चुनौतीपूर्ण है, इससे उनके मुनाफे में कमी आ सकती है. इक्रा के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2026 में इन कंपनियों के टैक्स से पहले मुनाफे में 25,000 करोड़ रुपये की कमी आ सकती है. हालांकि घरेलू तेल उत्पादन कंपनियों के पूंजीगत खर्च की योजनाओं पर असर नहीं पड़ेगा.
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क्या आम लोगों का बोझ होगा कम?
ऑयल मार्केटिंग कंपनियां ऑटो ईंधन पर अच्छा मार्जिन बनाए रखेंगी, जबकि एलपीजी पर होने वाला नुकसान भी कम होगा. चूंकि सरकार एलपीजी की कीमतों को नियंत्रित करती है और ओएमसी इसे लागत से कम कीमत पर बेचती हैं, जिसकी भरपाई सब्सिडी से होती है. इक्रा का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमी से गैस की कीमतें भी कम होंगी, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इससे आम आदमी को और सस्ते में गैस मिलेगी. क्या उन पर महंगाई का बोझ कम होगा. हालांकि इस गिरावट से रिफाइनरियों को स्टॉक में रखे तेल की कीमतों में कमी से नुकसान हो सकता है.
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