H-1B वीजा से इन प्रोफेशनल्स को मिल सकती है राहत, व्हाइट हाउस ने दिए संकेत; जानें कौन-कौन शामिल?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के लिए 100,000 (करीब 83 लाख रुपये) डॉलर की नई फीस लागू की है. हालांकि डॉक्टर और मेडिकल रेजिडेंट्स को छूट मिल सकती है, लेकिन इस फैसले से भारतीय IT कंपनियों जैसे TCS, Infosys, Wipro और Cognizant पर बड़ा असर पड़ सकता है.

H-1B Visa and Exempted Professions: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीजा के लिए नई शर्तें लागू की हैं, जिसके तहत अब इस वीजा पर आवेदन करने वालों को $100,000 (करीब 83 लाख रुपये) की भारी-भरकम फीस चुकानी होगी. इस फैसले ने दुनियाभर के प्रोफेशनल्स, खासकर भारतीय आईटी सेक्टर, में चिंता बढ़ा दी है. हालांकि, व्हाइट हाउस के अनुसार यह नियम सभी पर लागू नहीं होगा और कुछ पेशेवरों, जैसे डॉक्टर और मेडिकल रेजिडेंट्स, को इससे छूट मिल सकती है.
क्यों लगाया गया इतना भारी शुल्क?
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, व्हाइट हाउस की प्रवक्ता टेलर रोजर्स ने कहा कि, “इस प्रोक्लेमेशन में छूट का विकल्प है, जिसमें चिकित्सक और मेडिकल रेजिडेंट्स शामिल हो सकते हैं.” ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस कदम से केवल “अत्यधिक कुशल” लोग ही अमेरिका में प्रवेश कर पाएंगे और अमेरिकी नौकरियों पर विदेशी पेशेवरों का दबाव कम होगा. अमेरिका के कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि पहले की वीजा पॉलिसियों के तहत कम वेतन पाने वाले और सरकारी सहायता पर निर्भर लोग भी अमेरिका आ जाते थे.
नए नियम के जरिए अब केवल टॉप क्वालिफाइड टैलेंट को ही एंट्री मिलेगी और इसके जरिए अमेरिकी खजाने को 100 अरब डॉलर से अधिक की कमाई होगी. ट्रंप का दावा है कि इस राशि का इस्तेमाल राष्ट्रीय कर्ज कम करने और टैक्स घटाने में किया जाएगा. इससे इतर, व्हाइट हाउस ने इस फैसले के पीछे की वजह भी बताई. उनके मुताबिक, कम शुल्क के कारण दूसरे देशों के लोगों को अमेरिकी कंपनियां बड़े स्तर पर हायर करती हैं जिससे अमेरिकी नागरिकों को नौकरी से हाथ गंवानी पड़ रही है. इसीलिए वीजो को लेकर नए फैसले लाए गए.
भारत पर क्यों पड़ा बड़ा असर?
यह फैसला भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है. आंकड़ों के मुताबिक, करीब 70 फीसदी से 71 फीसदी H-1B वीजा धारक भारतीय हैं, जिनमें से ज्यादातर आईटी सेक्टर में काम करते हैं. इन्फोसिस, विप्रो, कॉग्निजेंट और टीसीएस जैसी दिग्गज भारतीय आईटी कंपनियां लंबे समय से इस प्रोग्राम के जरिए अपने इंजीनियर्स और डेवलपर्स को अमेरिकी प्रोजेक्ट्स में भेजती रही हैं. चूंकि H-1B वीजा 3 साल के लिए मान्य होता है और इसे 6 साल तक बढ़ाया जा सकता है, ऐसे में इतनी भारी फीस कंपनियों के लिए बेहद महंगी साबित होगी.
भारत का 250 अरब डॉलर का आईटी सर्विसेज इंडस्ट्री बड़े पैमाने पर अमेरिका को टैलेंट सप्लाई पर निर्भर है. अगर कंपनियां हर कर्मचारी पर हर साल 100,000 डॉलर चुकाने से पीछे हटती हैं, तो भारतीय पेशेवरों के अवसर तेजी से घट सकते हैं और भारत की ग्लोबल टेक इंडस्ट्री में पकड़ कमजोर हो सकती है.
अमेरिका के टेक सेक्टर पर भी असर
अमेरिका का टेक्नोलॉजी सेक्टर, जो H-1B वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करता है, फिलहाल अनिश्चितता में है. ट्रंप का कहना है कि “बिग टेक इस फैसले से खुश है”, लेकिन निवेशकों ने अलग प्रतिक्रिया दी है. सोमवार, 22 सितंबर को इंडियन आईटी कंपनियों के शेयरों में 2 फीसदी से 5 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई. इसी के साथ एक दिन में बड़े स्तर पर आईटी कंपनियों का मार्केट कैप कम हुआ.
कई लोगों का कहना है कि यह कदम टैलेंट की आवाजाही और इनोवेशन को कमजोर करेगा. वहीं, समर्थकों का मानना है कि इससे वेतन दबाव रुकेगा और कंपनियों को अमेरिकी युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. व्हाइट हाउस की एक मेमो में कहा गया कि, “आईटी कंपनियों ने H-1B सिस्टम का दुरुपयोग किया है, जिससे अमेरिकी कंप्यूटर प्रोफेशनल्स को भारी नुकसान हुआ है.”
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