सोने की कीमतों ने भारतीयों को किया मालामाल, घर में रखा सोना 4.5 लाख करोड़ डॉलर के पार, GDP को भी दे दी मात

भारत में एक पारंपरिक संपत्ति के मूल्य में आई हालिया तेजी ने घरेलू बचत संरचना और आर्थिक व्यवहार को लेकर नई चर्चा शुरू कर दी है. यह बदलाव केवल बाजार संकेत नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि वित्तीय अनिश्चितताओं के बीच भारतीय परिवार सुरक्षा और स्थिरता को किस रूप में देखते हैं.

भारत के घरों में कितना सोना है Image Credit: Money9 Live

India gold wealth: भारत में सोने को लेकर दीवानगी कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के आंकड़े इस रिश्ते को एक बिल्कुल नए स्तर पर ले जाते दिख रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें जब 4,500 डॉलर प्रति औंस के पार पहुंचीं, तो इसका असर सिर्फ ज्वैलरी शोरूम या निवेश पोर्टफोलियो तक सीमित नहीं रहा. इस उछाल ने भारत के घर-घर में जमा सोने की कुल कीमत को करीब 5 ट्रिलियन डॉलर (4.5 लाख करोड़ डॉलर) तक पहुंचा दिया है. यह आंकड़ा इसलिए चौंकाने वाला है, क्योंकि यह भारत की पूरी अर्थव्यवस्था यानी जीडीपी से भी ज्यादा बैठता है. दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारत के लिए यह स्थिति एक साथ गर्व का कारण बनती है.

भारत के घरों में कितना सोना है

अक्तूबर में आई मॉर्गन स्टेनली की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय घरों के पास करीब 34,600 टन सोना है. अगर पिछले हफ्ते की रिकॉर्ड कीमत 4,550 डॉलर प्रति औंस के हिसाब से इसका मूल्य निकाला जाए, तो यह रकम 5 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर पहुंच जाती है.

दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF के अनुमान के अनुसार भारत की जीडीपी करीब 4.1 ट्रिलियन डॉलर है. यह तुलना तकनीकी रूप से पूरी तरह सही नहीं मानी जाती, क्योंकि जीडीपी एक साल में पैदा होने वाली आय को दिखाती है, जबकि सोना एक जमा संपत्ति है, जिसे वर्षों से जमा किया जाता है. फिर भी, यह आंकड़ा यह समझाने के लिए काफी है कि भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में सोने की जड़ें कितनी गहरी हैं.

भारत में सोने की सांस्कृतिक महत्ता

सोना भारत में केवल निवेश का साधन नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक और मानसिक सुरक्षा का भी प्रतीक है. शादी-ब्याह, त्योहार, मुश्किल समय या सामाजिक प्रतिष्ठा, हर जगह सोना किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है. यही वजह है कि आर्थिक हालात बदलने के बावजूद सोने के प्रति भरोसा कमजोर नहीं पड़ा.

मॉर्गन स्टेनली की एक पुरानी रिपोर्ट में यह तर्क दिया गया था कि घरों में जमा सोना एक तरह का “वेल्थ इफेक्ट” पैदा करता है. यानी जब सोने की कीमत बढ़ती है, तो लोगों को लगता है कि वे ज्यादा अमीर हो गए हैं और वे खर्च भी ज्यादा करने लगते हैं. इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि ब्याज दरों में नरमी और टैक्स कटौती से लोगों की डिस्पोजेबल इनकम बढ़ी है, जिसका फायदा भी घरेलू बैलेंस शीट को मिल रहा है.

हालांकि, इस सोच से सभी सहमत नहीं हैं. Emkay Global की रिसर्च बताती है कि पिछले 15 साल में सोने की तीन बड़ी रैलियों के बावजूद देश की खपत पर कोई बड़ा असर नहीं दिखा.

दुनिया में भारत की भूमिका

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोना उपभोक्ता है. वैश्विक मांग में भारत की हिस्सेदारी करीब 26 फीसदी है, जबकि चीन 28 फीसदी के साथ पहले नंबर पर है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच साल के औसत 23 फीसदी से बढ़कर जून 2025 तक भारत की हिस्सेदारी 26 फीसदी हो गई है.

हालांकि ज्वैलरी अब भी सोने की मांग का बड़ा हिस्सा है, लेकिन निवेश के तौर पर बार और सिक्कों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है. जून 2020 में जहां यह 23.9 फीसदी थी, वहीं जून 2025 तक यह बढ़कर 32 फीसदी पहुंच गई.

यह भी पढ़ें: सोना-चांदी की कीमतों में तेजी, ₹140750 रुपये पहुंचा गोल्ड, सिल्वर पहली बार 2.50 लाख के पार; जानें प्रमुख शहरों का हाल

आरबीआई भी पीछे नहीं

सोने की चमक सिर्फ आम लोगों को ही नहीं, बल्कि केंद्रीय बैंकों को भी आकर्षित कर रही है. भारतीय रिजर्व बैंक ने 2024 के बाद से करीब 75 टन सोना अपने भंडार में जोड़ा है. अब आरबीआई के पास कुल 880 टन सोना है, जो भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग 14 फीसदी है. यह दिखाता है कि सरकारी स्तर पर भी सोने को सुरक्षित संपत्ति के रूप में देखा जा रहा है.