पहले बनाया फिर डुबाया, Yes Bank फाउंडर की वो गलतियां, जिससे एक जापानी के हाथ में आ गया देसी बैंक
कभी 7% ब्याज देने वाला एक प्राइवेट बैंक लोगों की पहली पसंद बन गया था. फिर ऐसा क्या हुआ कि इसकी पूरी तस्वीर ही बदल गई? आज इसका मालिक कौन है और इसमें देश-विदेश की किस साजिश, चूक या चालाकी का हाथ रहा? पढ़िए एक बैंक की हैरान कर देने वाली दास्तान.
Yes Bank Turnaround: साल 2003 की बात है…देश में निजी बैंकों का दौर तेजी से बढ़ रहा था और उसी वक्त तीन दिग्गज बैंकर्स- अशोक कपूर, हर्कित सिंह और राणा कपूर ने मिलकर एक नई शुरुआत की. बैंक का नाम रखा गया ‘YES Bank’.
तीनों ही अनुभवी थे. अशोक कपूर पहले एबीएन एमरो बैंक के कंट्री हेड रह चुके थे, हर्कित सिंह डॉयचे बैंक से और राणा कपूर एएनजेड ग्राइंडलेज बैंक से कॉरपोरेट फाइनेंस के प्रमुख थे. इन्होंने नीदरलैंड की रैबोबैंक के साथ मिलकर एक नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी शुरू की जिसमें 75 फीसदी हिस्सेदारी रैबोबैंक की थी और 25 फीसदी भारतीय हिस्सेदारों की.
इसके बाद 2004 में यस बैंक को रिजर्व बैंक से बैंकिंग लाइसेंस मिला और 2005 में बैंक ने IPO निकाला. उसी साल बैंक ने खुद को एक अलग पहचान दी. उस वक्त जब देश के बड़े बैंक सेविंग अकाउंट पर 4 फीसदी से 5 फीसदी ब्याज दे रहे थे, यस बैंक ने 7 फीसदी ब्याज देना शुरू किया. यही बात उसे आम लोगों के बीच खास बना गई.
तेज रफ्तार में बढ़ा बैंक
राणा कपूर बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और CEO बने, जबकि अशोक कपूर चेयरमैन थे. बैंक ने रिटेल ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए मास्टरकार्ड के साथ गोल्ड और सिल्वर डेबिट कार्ड लॉन्च किए. कॉरपोरेट दुनिया में भी यस बैंक तेजी से फैल रहा था. अवॉर्ड मिलने लगे, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से फंडिंग होने लगी, और 2008 में बिजनेस टुडे-KPMG की रिपोर्ट में यस बैंक देश के सबसे बेहतरीन बैंकों में पहले स्थान पर आया.
मगर 26 नवंबर 2008 की मुंबई आतंकी हमले ने एक काला अध्याय जोड़ दिया. अशोक कपूर ताज होटल में मौजूद थे और इस हमले में उनकी जान चली गई. इसके बाद बैंक की बागडोर पूरी तरह राणा कपूर के हाथ में आ गई.
तेजी से बढ़ता लोन और पहली चेतावनी
दूसरे प्राइवेट बैंकों से आगे निकलने के होड़ में बैंक ने लोन देना तेज किया. साल 2014 में जहां बैंक ने 55,633 करोड़ रुपये का कर्ज बांटा था, वो आंकड़ा 2019 के आखिर तक बढ़कर 2.25 लाख करोड़ रुपये हो गया. दूसरी ओर डिपॉजिट 74,192 करोड़ से बढ़कर 2.41 लाख करोड़ हुए.
2015 में ही ग्लोबल फाइनेंशियल कंपनी UBS ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी कि यस बैंक बहुत ज्यादा जोखिम वाले कर्ज दे रहा है. वह ऐसे कॉरपोरेट्स को लोन दे रहा है जो भविष्य में लोन लौटाने की स्थिति में नहीं होंगे. लेकिन उस समय इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया गया.
2017 के बाद गिरावट की शुरुआत
RBI ने जब बैंक की बैलेंस शीट का अध्ययन किया तो कई अनियमितताएं सामने आईं. 2017 में बैंक के खराब ऋण (bad loans) उजागर हुए. 2018 में RBI ने राणा कपूर को CEO पद से हटाने का निर्देश दिया. नवंबर 2018 में चेयरमैन और दो स्वतंत्र निदेशकों ने इस्तीफा दे दिया.
2019 आते-आते स्थिति इतनी बिगड़ गई कि खुद राणा कपूर को अपने सारे शेयर 142 करोड़ रुपये में बेचने पड़े. डिपॉजिटर्स को बैंक पर भरोसा उठने लगा और धीरे-धीरे बैंक से पैसे निकालने की होड़ मच गई. एक तरह से bank run शुरू हो गया था.
मार्च 2020: RBI का टेकओवर और बचाव
5 मार्च 2020 को RBI ने यस बैंक पर 30 दिनों की मोरेटोरियम लगा दी. कोई भी खाताधारक 50,000 रुपये से अधिक नहीं निकाल सकता था, सिवाय मेडिकल या आपात स्थितियों के. RBI ने बैंक का नियंत्रण अपने हाथ में लिया और तत्कालीन डिप्टी एमडी (SBI) प्रशांत कुमार को एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया.
इसके बाद SBI ने सबसे बड़ी हिस्सेदारी लेकर बैंक को उबारने की योजना शुरू की. कुल मिलाकर SBI समेत सात बड़े बैंकों ने यस बैंक में पूंजी लगाई और बैंक को धीरे-धीरे स्थिरता की ओर ले जाया गया.
2022 तक बैंक ने अपने 48,000 करोड़ रुपये के खराब ऋणों को JC Flowers Asset Reconstruction Company (ARC) को बेच दिया. यह भारत के इतिहास में सबसे बड़ा NPA सौदा माना गया. इस सौदे में यस बैंक ने JC Flowers ARC में 9.9 फीसदी हिस्सेदारी भी ले ली और बाद में इसे बढ़ाकर 19.99 फीसदी करने की योजना बनाई.
इसी के साथ बैंक ने अपनी कर्ज देने की रणनीति भी बदली. पहले जहां 60 फीसदी से अधिक लोन बड़े कॉरपोरेट को दिए जाते थे, अब FY24 तक 62 फीसदी लोन रिटेल और SME सेक्टर को दिए जा रहे हैं. SME में जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है.
जापानी कंपनी बनी सबसे बड़ी हिस्सेदार
साल 2025 की पहली छमाही में एक बड़ी खबर सामने आई. 9 मई 2025 को रिपोर्ट किया गया कि जापान की सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (SMBC) ने यस बैंक में 20 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने का ऐलान किया. इस सौदे के तहत, SMBC ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से 13.19% हिस्सेदारी और अन्य सात बैंकों, जैसे कि एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, एक्सिस बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक, फेडरल बैंक और बंधन बैंक से कुल 6.81% हिस्सेदारी खरीदी है. इस लेनदेन की कुल कीमत लगभग 13,483 करोड़ रुपये है, जो प्रति शेयर 21.50 रुपये के हिसाब से तय की गई है. SMBC अब यस बैंक की सबसे बड़ी हिस्सेदार बन गई है, जबकि SBI की हिस्सेदारी 10 फीसदी से थोड़ी अधिक रह गई है.
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SMBC की पैरेंट कंपनी SMFG के पास 2 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की संपत्ति है और वह टोक्यो और न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है. मौजूदा वक्त में SMBC के प्रेसिडेंट और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अकिहिरो फुकुतोमे है. SMFG का भारत में इसका मजबूत नेटवर्क है और अब वह यस बैंक के साथ अपने अनुभव और तकनीक साझा करने की योजना बना रही है.