टैरिफ पर अमेरिका में कैसे घिरे ट्रंप? भारत-चीन और रूस के गठजोड़ से क्या मिल रहे संदेश

Trump Tariff: अमेरिकी फेडरल सर्किट अपील अदालत ने शुक्रवार को फैसला सुनाया था कि ट्रंप ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करके दुनिया के लगभग हर देश पर व्यापक आयात टैक्स लगाने को उचित ठहराने से ज्यादा कर दिया. दूसरी तरफ भारत, चीन और रूस एकजुट नजर आ रहे हैं.

टैरिफ पर अमेरिका में ट्रंप की आलोचना. Image Credit: Money9live

Trump Tariff: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति के खिलाफ अमेरिका में भी आवाजें उठने लगी हैं. ट्रंप ने कांग्रेस को दरकिनार कर विदेशी उत्पादों पर व्यापक टैक्स लगाने की लगभग असीमित शक्ति का दुस्साहसपूर्वक दावा किया है. अब एक फोडरल कोर्ट ने उनके रास्ते में रोड़ा अटका दिया है. अमेरिकी फेडरल सर्किट अपील अदालत ने शुक्रवार को फैसला सुनाया था कि ट्रंप ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करके दुनिया के लगभग हर देश पर व्यापक आयात टैक्स लगाने को उचित ठहराने से ज्यादा कर दिया. इस फैसले ने न्यूयॉर्क स्थित एक स्पेशल फेडरल ट्रेड कोर्ट द्वारा मई में दिए गए फैसले को काफी हद तक बरकरार रखा. लेकिन 7-4 के बहुमत से दिए गए अपील अदालत के फैसले ने उस फैसले के एक हिस्से को तुरंत रद्द कर दिया, जिससे उनके प्रशासन को अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का समय मिल गया.

दूसरी तरफ 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक साथ गर्मजोशी के साथ एक मंच पर नजर आए हैं. जाहिर है अमेरिकी टैरिफ से लगने वाले झटके से निपटने के लिए भारत वैकल्पिक राह तलाश रहा है.

टैरिफ पर अमेरिका में क्यों घिर रहे हैं ट्रंप?

फेडरल कोर्ट का फैसला ट्रंप के लिए एक बड़ा झटका, जिनकी अनिश्चित व्यापार नीतियों ने वित्तीय बाजारों को हिलाकर रख दिया है. अनिश्चितता के कारण कारोबार की गति धीमी पड़ने लगी है, जिससे बढ़ती कीमतों और स्लो आर्थिक ग्रोथ की आशंकाओं को बढ़ा दिया है. अमेरिकी अपीलीय न्यायालय ने कहा कि ट्रंप अपने टैरिफ हथियार को सही ठहराने में बहुत आगे निकल गए हैं.

दरअसल, कांग्रेस की मंजूरी के बिना कार्रवाई करने की असाधारण शक्ति का दावा करते हुए, ट्रंप ने 1977 के अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम के तहत टैक्स को उचित ठहराया और अमेरिका के लंबे समय से चले आ रहे व्यापार घाटे को ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ घोषित कर दिया.

फरवरी में, उन्होंने कनाडा, मेक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने के लिए कानून का सहारा लिया था. उनका कहना था कि अमेरिकी सीमा पार से अप्रवासियों और ड्रग्स का अवैध प्रवाह राष्ट्रीय आपातकाल के समान है और तीनों देशों को इसे रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है.

अमेरिकी संविधान कांग्रेस को टैरिफ सहित कर निर्धारित करने का अधिकार देता है, लेकिन सांसदों ने धीरे-धीरे राष्ट्रपतियों को टैरिफ पर अधिक अधिकार दे दिए हैं और ट्रंप ने इसका भरपूर फायदा उठाया है.

अमेरिका को झेलना पड़ सकता है भारी नुकसान

शुक्रवार को फेडरल अपील कोर्ट ने अपने 7-4 के फैसले में लिखा कि ‘ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कांग्रेस का इरादा राष्ट्रपति को शुल्क लगाने का असीमित अधिकार देने का था.’ वैश्विक व्यापार युद्धों में टैरिफ को अपना पसंदीदा हथियार बनाने वाले ट्रंप ने सुप्रीम कोर्ट जाने की कसम खाई है. अगर सुप्रीम कोर्ट में फैसला ट्रंप के खिलाफ चला जाता है, तो अमेरिका को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.

न्यूयॉर्क स्थित एक स्पेशल फेडरल ट्रेड कोर्ट का फैसला ट्रंप द्वारा अप्रैल में लगभग सभी अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों पर लगाए गए टैरिफ और उससे पहले चीन, मेक्सिको और कनाडा पर लगाए गए शुल्कों पर केंद्रित था. इस बीच, न्यायालय ने ट्रंप की अपील तक टैरिफ को यथावत रहने दिया. इसका मतलब है कि व्यवसाय, उपभोक्ता और विदेशी सरकारें अभी भी उनके ट्रेड वॉर की रणनीति की अनिश्चितता में जी रही हैं. कम से कम तब तक जब तक सर्वोच्च न्यायालय इस पर विचार नहीं करता.

अमेरिकी प्रशासन को किस बात का डर

टीओआई के अनुसार, अमेरिकी प्रशासन को डर है कि अगर टैरिफ अंततः हटा दिए जाते हैं, तो ट्रेजरी को आयातकों से वसूले गए अरबों डॉलर वापस करने पड़ सकते हैं. जुलाई तक, टैरिफ रेवेन्यू बढ़कर 159 अरब डॉलर हो गया था, जो उम्मीद से कहीं ज्यादा था. न्याय विभाग ने चेतावनी दी थी कि मुकदमा हारने का मतलब अमेरिका के लिए ‘वित्तीय बर्बादी’ हो सकता है.

SCO शिखर सम्मेलन में भारत, चीन और रूस की एकजुटता

SCO शिखर सम्मेलन, जो भारत, चीन, रूस और अन्य सहभागी देशों को एकजुट करता है, एशिया भर में व्यापक रूप से अनुचित माने जाने वाले अमेरिकी शुल्कों के विरुद्ध एकजुटता और सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन करता है.

अमेरिकी बोझ को कम करने में मदद मिलेगी

भारत के लिए, यह अमेरिका से मिलने वाली रियायतों पर निर्भरता से हटकर क्षेत्रीय समाधानों की तलाश की ओर एक बदलाव को दर्शाता है. मिंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की भारत यात्रा का रद्द होना इस बदलते परिदृश्य को और पुष्ट करता है. चीन और रूस दोनों अब अपनी अर्थव्यवस्थाओं को भारत के लिए और खोल रहे हैं, जिससे व्यापार प्रवाह को रिडायरेक्ट करने और अमेरिकी शुल्कों के बोझ को कम करने में मदद मिल रही है.

पिछले तनावों के बावजूद, चीन के साथ सावधानीपूर्वक संबंध सुधारने का भारत का निर्णय, प्रतिद्वंद्विता के बजाय आर्थिक सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देने के व्यावहारिक निर्णय को दर्शाता है.

व्यापार के अलावा, यह शिखर सम्मेलन एनर्जी, इंफ्रास्ट्रक्चर और पेमेंट जैसे सेक्टर्स में व्यापक सहयोग को भी बढ़ावा देता है. हालांकि, इन पहलों से तत्काल लाभ नहीं मिल सकता है, लेकिन ये अमेरिकी प्रभुत्व वाले सिस्टम पर निर्भरता कम करके और क्षेत्रीय आत्मनिर्भरता को बढ़ाकर लॉन्ग टर्म फ्लेक्सिबिलिटी बनाने में मदद करती हैं.

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