1947 से 2025 तक जानें कैसे बदला भारत? आर्थिक सुधारों की वो कहानी जिसने लिखी नई इबारत

1947 से 2025 तक भारत ने अनेक आर्थिक सुधारों के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है. बैंक राष्ट्रीयकरण (1969) से लेकर 1991 के आर्थिक उदारीकरण, 2016 की नोटबंदी, 2017 के GST और 2015 के डिजिटल इंडिया मिशन तक, हर कदम ने देश की दिशा और दशा बदली. इन सुधारों ने भारत को चौथी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती डिजिटल इकोनॉमी में शामिल किया. जानें इन ऐतिहासिक फैसलों का प्रभाव, जिन्होंने भारत को आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया और विकास की नई कहानी लिखी.

भारत आर्थिक सुधार Image Credit: money9live.com

India Economy Growth: भारत अपनी आजादी की 79वीं सालगिरह की तैयारी में जुटा है. पूरा देश इस आजादी का जश्न मना रहा है. इन 79 वर्षों में भारत ने कई चुनौतियों का सामना किया है, वहीं कई ऐसे कदम भी उठाए हैं, जिन्होंने देश की दशा और दिशा बदल दी है. आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए भारत ने कई बड़े आर्थिक सुधार किए हैं. आज हम आपको बताएंगे आजादी के बाद हुए उन बड़े आर्थिक सुधारों के बारे में, जिन्होंने देश को पूरी तरह बदल दिया और भारत को एक बड़ी महाशक्ति के रूप में स्थापित कर दिया.

बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969)

1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया. इसका उद्देश्य बैंकिंग सर्विस को ग्रामीण और छोटे-शहरी क्षेत्रों तक पहुंचाना था. इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक जैसे बैंक सरकारी नियंत्रण में आए. इससे किसानों और छोटे उद्यमियों को आसान कर्ज मिलने लगा. साथ ही बैंकिंग व्यवस्था में जनता की भागीदारी बढ़ी. इससे देश की वित्तीय संरचना मजबूत हुई और आर्थिक विकास को गति मिली.

1991 का आर्थिक उदारीकरण

1991 में भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था. विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था और देश दिवालियेपन के कगार पर था. ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों की शुरुआत की. इन सुधारों में निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण (LPG) को अपनाया गया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली.

इस दौरान विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया, लाइसेंस राज खत्म कर उद्योगों को स्वतंत्रता मिली, और आयात-निर्यात नीतियों में ढील देकर वैश्विक बाजारों तक पहुंच आसान हुई. इन सुधारों के बाद भारत की जीडीपी विकास दर तेजी से बढ़ी और देश वैश्विक अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन गया.

नोटबंदी (2016): कालाधन और भ्रष्टाचार पर प्रहार

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की. इसका मुख्य उद्देश्य काला धन, नकली नोट और भ्रष्टाचार पर रोक लगाना था. इससे डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिला, और Paytm, UPI जैसी सर्विस लोकप्रिय हुईं. हालांकि इस फैसले को लेकर कुछ आलोचनाएं भी हुईं, लेकिन इसने भारत को कैशलेस इकोनॉमी की दिशा में आगे बढ़ाया.

वस्तु एवं सेवा कर (GST) का लागू होना (2017)

1 जुलाई 2017 को भारत सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया, जिसने पूरे देश को एक समान टैक्स व्यवस्था के तहत ला दिया. इससे टैक्स चोरी पर अंकुश लगा और सरकार की आय बढ़ी. साथ ही व्यापार करने में आसानी हुई क्योंकि अलग-अलग राज्यों के अलग टैक्स सिस्टम खत्म हो गए. GST को भारत के सबसे बड़े टैक्स सुधारों में से एक माना जाता है, जिसने अर्थव्यवस्था को पारदर्शी और सुगम बनाया.

यह भी पढ़ें: राष्ट्रपति ने कहा- अच्छी स्थिति देश की इकोनॉमी, कंट्रोल में महंगाई; कश्मीर घाटी का रेल नेटवर्क से जुड़ना ऐतिहासिक

डिजिटल इंडिया: तकनीक से आर्थिक क्रांति

2015 में शुरू हुए डिजिटल इंडिया मिशन ने भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया. यूपीआई (Unified Payments Interface) दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल पेमेंट सिस्टम में से एक बन गया. वहीं आधार और डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा मिला, जिससे सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ आम लोगों तक पहुंचा. इन सभी प्रयासों का नतीजा है कि आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती डिजिटल इकोनॉमी में से एक बन चुका है.