भारत में एक दशक बाद फिर खुल सकते हैं बैंक लाइसेंस के दरवाजे, सरकार और RBI की बातचीत शुरू

सरकार और रिजर्व बैंक देश की बैंकिंग व्यवस्था को लेकर एक बार फिर बड़े फैसले पर विचार कर रहे हैं. लंबे समय बाद इस दिशा में कोई ठोस पहल हो सकती है. शुरुआती बातचीत शुरू हो चुकी है, लेकिन यह बदलाव सिर्फ संस्थानों के लिए नहीं, आम लोगों की जिंदगी के लिए भी अहम होगा.

10 साल बाद फिर खुलने वाला है बैंकिंग लाइसेंस का पिटारा Image Credit: Canva

भारत में जल्द ही एक दशक बाद नए बैंकिंग लाइसेंस जारी किए जा सकते हैं. सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बीच इसको लेकर शुरुआती बातचीत शुरू हो चुकी है. इस योजना का मकसद है, देश के बैंकिंग सेक्टर को मजबूत बनाना ताकि आने वाले वर्षों में तेज आर्थिक विकास को जरूरी फंडिंग मिल सके. सरकार की मंशा ऐसे बड़े और मजबूत बैंक खड़े करने की है जो इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग और लॉन्ग-टर्म प्रोजेक्ट्स को फाइनेंस कर सकें. इसकी जानकारी ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में साझा की गई है.

क्यों जरूरी है अब नए बैंक?

वर्तमान में भारत की जीडीपी का सिर्फ 56 फीसदी हिस्सा ही बैंकिंग क्रेडिट के रूप में मौजूद है, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा 100 फीसदी से ऊपर रहता है. मोदी सरकार ने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है और इसके लिए बैंकिंग सिस्टम को तीन गुना बड़ा करने की जरूरत बताई जा रही है. इसके तहत बैंकिंग क्रेडिट को GDP के 130 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि नए बैंक मैदान में उतरें और मौजूदा बैंकों को भी मजबूत किया जाए.

किन प्रस्तावों पर विचार?

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन प्रस्तावों पर बातचीत हो रही है, उनमें शामिल हैं:

भारत में आखिरी बार साल 2014 में नए बैंकिंग लाइसेंस दिए गए थे. 2016 में सरकार ने बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने से रोक दिया था. अब जब इस पॉलिसी को दोबारा देखने की बात हो रही है, तो यह सरकार की सोच में आए बदलाव को दर्शाता है. हालांकि इस पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और पूरी प्रक्रिया फिलहाल शुरुआती चरण में है.

NBFCs को मिलेगा फायदा?

रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दक्षिण भारत स्थित NBFCs को फुल-सर्विस बैंक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. खासकर उन क्षेत्रों में जहां बड़ी कंपनियां जैसे Apple अपने मैन्युफैक्चरिंग ऑपरेशन फैला रही हैं. इससे स्थानीय स्तर पर बैंकिंग की पहुंच बढ़ेगी और बड़े प्रोजेक्ट्स को फाइनेंस मिल सकेगा.

वर्तमान नियमों के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में विदेशी निवेश 20 फीसदी तक सीमित है और इसके लिए सरकारी मंजूरी लेनी होती है. अब संभावना है कि इस लिमिट को कुछ हद तक बढ़ाया जा सकता है, हालांकि सरकार का इरादा बहुमत हिस्सेदारी बनाए रखने का है.

बाजार में हलचल, PSU बैंक इंडेक्स चढ़ा

हालांकि अभी सरकार और RBI की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन बाजार में इसका असर दिखा. Nifty PSU Bank Index जो सुबह 0.8% नीचे था, दिन के अंत तक 0.5% ऊपर बंद हुआ. इस इंडेक्स ने इस साल अब तक करीब 8 फीसदी की बढ़त दर्ज की है.

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फिलहाल दुनिया के टॉप 100 बैंकों में सिर्फ दो भारतीय बैंक, SBI और HDFC Bank शामिल हैं, जबकि टॉप 10 में अमेरिका और चीन के बैंक ही हैं. ऐसे में अगर भारत को वैश्विक आर्थिक ताकत बनना है तो बैंकिंग सेक्टर को बड़ा, मजबूत और प्रतिस्पर्धी बनाना होगा.

RBI ने पहले ही दिए थे संकेत

RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मई में एक इंटरव्यू में कहा था कि केंद्रीय बैंक अपने लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क की समीक्षा कर रहा है, ताकि वह देश की बदलती आर्थिक जरूरतों के अनुसार ढल सके. उन्होंने कहा था कि भारत को अब ऐसे बैंक चाहिए जो बड़े स्तर पर पूंजी जुटा सकें और जिन पर जनता को भरोसा हो.

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