चीन का ‘सी टर्टल मॉडल’ जो बन सकता है H-1B संकट का तोड़, भारत ऐसे पलट सकता है बाजी

अमेरिका ने H-1B वीजा की फीस 10 गुना बढ़ा दी है, जिससे भारतीय IT कंपनियों और प्रोफेशन पर बोझ बढ़ गया है. रेमिटेंस पर भी खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में भारत चीन के "सी टर्टल" मॉडल से सीखकर प्रवासी टैलेंट को वापस बुलाकर ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन में बदल सकता है.

अमेरिका ने H-1B वीजा की फीस 10 गुना बढ़ा दी है. Image Credit: CANVA

Sea Turtle Model India: अमेरिका ने H-1B वीजा की फीस 10 गुना बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दी है. इस फैसले का सीधा असर भारतीय IT कंपनियों और प्रोफेशन पर पड़ रहा है. अब भारत के सामने चुनौती और अवसर दोनों हैं. क्या भारत चीन की तरह “सी टर्टल मॉडल” अपनाकर अपने प्रवासी प्रोफेशन को वापस बुला सकता है? आइये विस्तार से जानते है कि क्या है चीन का मॉडल और भारत को इसको लागू करने से क्या फायदा हो सकता है.

भारतीयों के लिए बड़ा झटका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नया आदेश जारी किया है जिसके तहत अब H-1B वीजा पाने के लिए 1 लाख डॉलर फीस देनी होगी. पहले यह फीस केवल 6.6 लाख से 8.8 लाख रुपये तक थी, लेकिन अब इसमें भारी बढ़ोतरी कर दी गई है. इसका सीधा असर भारतीय IT दिग्गज कंपनियों जैसे Infosys, TCS, HCLTech, Wipro और Tech Mahindra पर पड़ेगा. इन कंपनियों को अब हर साल 1,300 करोड़ रुपये से लेकर 4,800 करोड़ रुपये तक अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ेगा.

कंपनियों पर पड़ेगा भार

अमेरिका में H-1B वीजा फीस बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ रहा है. TCS के 5,505 कर्मचारी H-1B वीजा पर हैं, जिससे उसे सालाना 550 मिलियन डॉलर (4,852 करोड़ रुपये) का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा. Infosys के 2,004 कर्मचारी इस वीजा पर काम कर रहे हैं और कंपनी को 200 मिलियन डॉलर (1,764 करोड़ रुपये) का अतिरिक्त खर्च झेलना पड़ेगा. HCL America को 1,728 कर्मचारियों के कारण 173 मिलियन डॉलर (1,526 करोड़ रुपये) का खर्च उठाना होगा. वहीं Wipro को 1,523 कर्मचारियों के लिए 152 मिलियन डॉलर (1,341 करोड़ रुपये), Tech Mahindra को 951 कर्मचारियों के लिए 95 मिलियन डॉलर (838 करोड़ रुपये) और LTI Mindtree को 1,807 कर्मचारियों के लिए 181 मिलियन डॉलर (1,596 करोड़ रुपये) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा.

रेमिटेंस पर खतरा

भारत हर साल विदेशों से करीब 125 अरब डॉलर रेमिटेंस प्राप्त करता है, जिसमें से लगभग 35 अरब डॉलर यानी 28 फीसदी हिस्सा सिर्फ अमेरिका से आता है. लेकिन अगर H-1B वीजा पर भारतीयों का नई इंट्री रुक जाती है, तो भारत को हर साल करीब 400 मिलियन डॉलर (लगभग 3,300 करोड़ रुपये) का नुकसान झेलना पड़ सकता है. इसका असर भारतीय रुपये पर भी पहले से दिखाई दे रहा है, हाल ही में रुपया 0.23 फीसदी टूटकर 88.31 प्रति डॉलर तक गिर गया, जिससे उस पर अतिरिक्त दबाव बना है.

ये भी पढ़ें- मैन्युफैक्चरिंग में रफ्तार बरकरार, सर्विस सेक्टर में दिखी नरमी, फ्लैश PMI सितंबर में घटकर 61.9 पर पहुंचा

चीन का “सी टर्टल” मॉडल

चीन ने प्रवासी टैलेंट को वापस लाने के लिए “थाउजेंड टैलेंट्स प्लान” जैसी योजनाएं शुरू कीं थी. इसके तहत विदेशी पढ़ाई और अनुभव लेकर लौटे प्रोफेशन को रिसर्च के लिए पैसा, टैक्स छूट, मकान सब्सिडी और आसान वीजा जैसी सुविधाएं दी गईं थी. इन लौटे हुए “सी टर्टल्स” ने चीन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक, इंटरनेट टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. इसी प्रयास से चीन लेबर इंटेंसिव इकोनॉमी से निकलकर एक हाई-टेक मैन्युफैक्चिरिंग पावर बन सका.

भारत को क्यों चाहिए ऐसा मॉडल?

भारत आज तेजी से स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी का हब बन रहा है. यहां 100 से ज्यादा यूनिकॉर्न और 1.5 लाख से अधिक स्टार्टअप्स सक्रिय हैं. सरकार भी “मेक इन इंडिया,” “स्टार्टअप इंडिया,” और “पीएलआई” जैसी योजनाओं के जरिए इस क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में अगर भारत चीन की तरह “सी टर्टल” मॉडल अपनाता है, तो प्रवासी प्रोफेशन को आकर्षित कर सकता है और उनके वैश्विक अनुभव का लाभ भारत की प्रगति में लिया जा सकता है.

भारत क्या कर सकता है?

इसके लिए टैक्स छूट, आवास सब्सिडी और रिसर्च फंडिंग जैसे इंसेंटिव पैकेज देने की जरूरत है. साथ ही, स्टार्टअप-फ्रेंडली माहौल बनाने के लिए गवर्नेंस और नियमों को सरल करना होगा. यूनिवर्सिटी और इंडस्ट्री के बीच सहयोग बढ़ाकर विदेशी रिसर्चर्स और एनआरआई प्रोफेशन को भारतीय संस्थानों से जोड़ा जा सकता है. इसके अलावा, हाई रिस्क- हाई प्रॉफिट वाले प्रोजेक्ट्स को सपोर्ट करने के लिए वेंचर कैपिटल और नई फंडिंग स्ट्रक्चर तैयार करनी होगी.