रिकवरी एजेंट नहीं हैं कोर्ट और पुलिस, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की यह तल्ख टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल विवादों को लेकर होने वाली एफआईआर को लेकर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा कि कोर्ट और पुलिस रिकवरी एजेंट नहीं हैं. कोर्ट ने कहा, सिर्फ आर्थिक विवादों को पुलिस की ओर से आपराधिक मामला बनाना गलत है. कोर्ट ने राज्यों में नोडल अधिकारी नियुक्त करने का सुझाव दिया है. कोर्ट ने कहा कि इससे पुलिस सिविल और आपराधिक मामलों में फर्क कर सकेगी.

देश में सिविल मामले में दर्ज की जा रही FIR को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अदालत और पुलिस रिकवरी एजेंट नहीं हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के विवादों को निपटाने के लिए किसी को गिरफ्तार करने की धमकी नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी उत्तर प्रदेश के एक मामले की सुनवाई करते हुए की.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी की. दरअसल, सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया कि दो पक्षों के बीच पैसे के लेन-देन से संबंधित एक सविल मामले को उत्तर प्रदेश पुलिस ने धोखे का मामला दर्ज करते हुए इसे आपराधिक मामले में बदल दिया था. इस पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने कहा कि पुलिस को दोनों तरफ से मार पड़ती है.
पुलिस को अपराध का नेचर समझना पड़ेगा: सुप्रीम कोर्ट
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने कहा कि अगर पुलिस कोई शिकायत मिलने पर तत्काल FIR दर्ज करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं करती है, तो अदालतों द्वारा उसकी आलोचना होती है. और यदि वह FIR दर्ज कर लेती है तो उस पर यह आरोप लगता है कि उसने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया. बेंच ने पुलिस की इस ‘करो तो भी मुसीबत, न करो तो भी मुसीबत’ जैसी दुविधा को समझते हुए कहा, “FIR दर्ज होने का मतलब यह नहीं है कि हर मामले में आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. पुलिस को अपराध का नेचर समझना पड़ेगा. अदालत ने कहा कि पुलिस को यह समझना होगा कि यह मामला दीवानी का है या फौजदारी का है.”
फौजदारी कानून का ऐसा दुरुपयोग न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा: जस्टिस सूर्यकांत
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘फौजदारी कानून का ऐसा दुरुपयोग न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है. लोग यह सोचते हैं कि वे केवल दीवानी विवाद होने पर भी आपराधिक मामले दर्ज कराकर न्यायपालिका और पुलिस को रिकवरी एजेंट की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अदालतें पक्षकारों से बकाया राशि वसूलने के लिए वसूली एजेंट नहीं हैं. न्यायिक व्यवस्था में इस दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती.” शीर्ष अदालत ने नटराज को सुझाव दिया कि राज्य प्रत्येक जिले के लिए एक नोडल अधिकारी (सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश को) नियुक्त कर सकते हैं, जिनसे पुलिस परामर्श कर यह जान सकती है कि मामला दीवानी है या फौजदारी, और उसके बाद कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है.”
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