अब सिंधु नदी पर शुरू होगा असली खेल, ये 6 प्रोजेक्ट खत्म करेंगे पाकिस्तान का खेल

भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला लिया है, जिससे चेनाब-झेलम धुरी पर अटकी पड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को गति मिलेगी. अब भारत को पाकिस्तान को पूर्व सूचना देने की जरूरत नहीं होगी, और 10,000 मेगावाट तक बिजली उत्पादन की संभावना बनेगी. भारत ने जल डेटा साझा करना और IWT बैठकें भी रोक दी हैं.

भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला लिया है, जिससे चेनाब-झेलम धुरी पर अटकी पड़ी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को गति मिलेगी. Image Credit:

Hydropower projects: पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को स्थगित करने का ऐलान किया है. सरकार के इस फैसले से चेनाब-झेलम-इंडस धुरी पर वर्षों से अटकी पड़ी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को तेजी से आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है. सरकार के इस फैसले से अब पाकिस्तान को इन नदियों पर बनने वाले किसी प्रोजेक्ट के बारे में 6 महीने पहले जानकारी देने की जरूरत नहीं होगी. संधि से अलग होने के बाद सरकार इन प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करने पर है.

कौन-कौन सी परियोजनाएं होंगी शुरू?

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन नदियों पर भारत सरकार ने कई प्रोजेक्ट बनाने थे लेकिन संधि की शर्तों के चलते इन्हें शुरू करने में परेशानी हो रही थी. अब जब सरकार ने इस संधि को स्थगित करने का फैसला कर लिया है तो वह कुछ अहम हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स शुरू कर सकती है. जिसमें क्वार 540 मेगावाट, पकल डुल 1000 मेगावाट, किरु 624 मेगावाट, किर्थाई-I 390 मेगावाट, किर्थाई-II 930 मेगावाट और सावलकोट 1,856 मेगावाट शामिल हैं. इनसे कुल मिलाकर 10,000 मेगावाट तक की बिजली क्षमता और 10,000 मिलियन यूनिट बिजली जम्मू-कश्मीर को मिल सकती है.

540 मेगावाट – क्वार (Kwar)

1000 मेगावाट – पकल डुल (Pakal Dul)

624 मेगावाट – किरु (Kiru)

390 मेगावाट – किर्थाई-I

930 मेगावाट – किर्थाई-II

1,856 मेगावाट – सावलकोट

अब डेटा शेयर भी नहीं करेगा भारत

भारत ने पाकिस्तान के साथ सभी IWT संबंधित बैठकों को स्थगित करने का फैसला लिया है. बाढ़ से जुड़ा हाइड्रोलॉजिकल डेटा और नदी प्रवाह की जानकारी भी साझा नहीं की जाएगी. सिंधु आयुक्तों की वार्षिक बैठक, जो पहले से ही लंबित थी, अब पूरी तरह से ठप हो सकती है.

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क्यों लिया गया ये कदम?

सिंधु जल संधि के चलते भारत को कई शर्तों का पालन करना पड़ता था. पाकिस्तान ने वर्षों से किशनगंगा, रतले, तुलबुल और बगलीहार जैसी परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है. IWT के नियमों के चलते भारत अपने बांधों की सफाई (de-silting) तक नहीं कर पा रहा था. जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने कई बार संधि की समीक्षा की मांग की थी, क्योंकि इससे बिजली उत्पादन और सिंचाई में बाधा आ रही थी.

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