Gensol Engineering अब दिवालियापन केस में घिरी, IREDA ने ठोका दावा; 18वें दिन भी लोअर सर्किट में शेयर
एक समय शेयर बाजार का चमकता सितारा रही यह कंपनी अब अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है. भारी वित्तीय दबाव, अचानक इस्तीफे और सरकारी कार्रवाई ने माहौल को और गर्मा दिया है. जानिए आखिर क्या वजह है कि निवेशक अब इससे दूर भाग रहे हैं.

कुछ वक्त पहले तक Gensol Engineering Ltd के शेयर आसमान छू रहे थे और कंपनी अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में उभरते सितारे के रूप में देखी जा रही थी. लेकिन अब वही कंपनी गहरे संकट के दौर से गुजर रही है. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) ने बुधवार को कंपनी के खिलाफ दिवालियापन की कार्रवाई शुरू कर दी है. 510 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट को लेकर यह कदम उठाया गया है, जो कंपनी के लगातार गिरते प्रदर्शन और प्रबंधन संकट की पुष्टि करता है.
IREDA ने ठोका दिवालियापन का केस
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी के मुताबिक, IREDA ने यह आवेदन इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 की धारा 7 के तहत दायर किया है. यह धारा वित्तीय ऋणदाताओं को अधिकार देती है कि वे किसी कंपनी के डिफॉल्ट करने पर NCLT में दिवालियापन प्रक्रिया शुरू कर सकें. 510 करोड़ रुपये की बकाया राशि को लेकर IREDA का यह कदम Gensol के लिए बड़ा झटका है.
18वें दिन भी लोअर सर्किट में फंसे शेयर
Gensol Engineering के शेयरों की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है. मंगलवार, 13 मई को लगातार 18वें सत्र में कंपनी के शेयर लोअर सर्किट में रहे और 5 फीसदी की गिरावट के साथ 51.25 रुपये पर बंद हुए. यह वही शेयर है जो 2024 में 1,124 रुपये के शिखर पर था, मात्र कुछ महीनों में ही कंपनी की वैल्यू का 94% हिस्सा मिट्टी में मिल चुका है.
कंपनी की इस दुर्गति के पीछे सिर्फ आर्थिक पक्ष ही नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस की भारी चूक भी जिम्मेदार है. सोमवार को मैनेजिंग डायरेक्टर अनमोल सिंह जग्गी और वाइस डायरेक्टर पुनीत सिंह जग्गी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. SEBI पहले ही दोनों को पूंजी बाजार में प्रवेश से प्रतिबंधित कर चुका है, जिससे बाजार में कंपनी की साख को और गहरी चोट पहुंची.
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निवेशकों का भरोसा टूटा, कंपनी की साख खतरे में
लगातार गिरते शेयर, भारी डिफॉल्ट और शीर्ष नेतृत्व का पलायन, Gensol आज उस मोड़ पर खड़ी है जहां से वापसी की राह बहुत कठिन दिख रही है. निवेशकों का भरोसा डगमगाया है और बाजार में कंपनी का भविष्य अब न्यायालय और नीतिगत फैसलों पर टिका है.
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