13 अरब डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल करेंगी दिग्गज IT कंपनियां, AI और कास्ट कटिंग पर फोकस; मेगा डील्स से बढ़ीं उम्मीद

भारत की IT कंपनियां TCS, Infosys, HCLटेक और Wipro दिसंबर 2025 तक 13 अरब डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल की दौड़ में हैं. पिछले साल का आंकड़ा 14 अरब डॉलर था जिसे यह साल पार कर सकता है. क्लाइंट्स लागत में कटौती और AI आधारित सेवाओं की मांग कर रहे हैं. मेगा डील्स मजबूत बनी हुई हैं जबकि BPO सौदे छोटे हो रहे हैं.

भारत की IT कंपनियां 13 अरब डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल की दौड़ में हैं.

IT Contracts: भारत की बड़ी IT कंपनियां जैसे TCS, Infosys, HCL टेक और Wipro इस साल दिसंबर तक करीब 13 अरब डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल की तैयारी में हैं. यह आंकड़ा पिछले साल के 14 अरब डॉलर के लेवल को पार भी कर सकता है. ग्राहकों की ओर से लागत में बचत और AI बेस्ड सर्विस की मांग लगातार बढ़ रही है. ऐसे में कंपनियां अपने सौदे इसी आधार पर बना रही हैं. हालांकि मेगा डील्स का अट्रैक्सन बरकरार है लेकिन BPO से जुड़े सौदों का साइज घट रहा है.

IT सेक्टर में बड़ा मौका

भारत के 283 अरब डॉलर के सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट इंडस्ट्री में यह रिन्यूअल काफी अहम माना जा रहा है. बड़े सौदे 100 मिलियन डॉलर से शुरू होते हैं जबकि मेगा डील्स 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा की होती हैं. इस साल के दूसरे हिस्से में 600 से ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू होने वाले हैं जिनकी वैल्यू 20 मिलियन डॉलर से लेकर 2 अरब डॉलर तक है.

बड़ी कंपनियों के अहम कॉन्ट्रैक्ट

TCS के स्टार एलायंस और नीलसन के साथ कॉन्ट्रैक्ट, Infosys के डेमलर एजी और जीई अप्लायंसेज के साथ करार, HCLटेक के एरिक्सन और चेसनारा के साथ समझौते और Wipro के ईओएन, फोर्टम और पेट्रोब्रास के सौदे इस लिस्ट में शामिल हैं. हाल ही में TCS को डेनमार्क की इंश्योरेंस कंपनी ट्राइग से 640 मिलियन डॉलर का सात साल का करार मिला है.

मेगा डील्स में तेजी

आईएसजी के अनुसार इस साल अब तक 1.3 अरब डॉलर की मेगा डील्स रिन्यू हुई हैं जो वैश्विक IT डील एक्टिविटी का करीब 70 फीसदी हिस्सा हैं. अनुमान है कि आगे भी करीब 1.7 अरब डॉलर की मेगा डील्स होंगी. जानकार मानते हैं कि बड़ी डील्स का ट्रेंड 2025 में भी मजबूत बना रहेगा क्योंकि कंपनियां लागत कम करने पर फोकस कर रही हैं.

BPO डील्स में कमी

जहां मेगा डील्स मजबूत हो रही हैं वहीं BPO सौदों का साइज घट रहा है. पिछले दो से तीन सालों से डिस्क्रेशनरी खर्च में कमी देखी जा रही है जिससे छोटे सौदे ज्यादा दिख रहे हैं. ग्लोबल आर्थिक और राजनीतिक हालात का असर इस सेगमेंट पर साफ नजर आ रहा है.

AI का बढ़ता प्रभाव

अब कॉन्ट्रैक्ट दिलाने में AI बड़ी भूमिका निभा रहा है. पहले जहां 90 फीसदी रिन्यूअल्स मौजूदा कंपनियों को मिल जाते थे अब ग्राहक AI बेस्ड प्रॉफिट मांग रहे हैं. कई सौदों में ऑटोमेशन और AI एजेंट्स की वजह से अनिश्चितता भी बढ़ी है और यह देखना होगा कि कंपनियां डिलीवरी टारगेट को कैसे पूरा करती हैं.

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टैरिफ ने बढ़ाई टेंशन

अमेरिका की अगुवाई में टैरिफ वार और टेक डिमांड में गिरावट ने भारत की सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ाया है. ग्राहक अब छूट और AI से मिलने वाले लाभ को प्राथमिकता दे रहे हैं. ऐसे में भारतीय IT कंपनियों के लिए यह साल एक बड़ी चुनौती और अवसर दोनों लेकर आया है.