सरकार की सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम पर इस निवेशक ने साधा निशाना, बताया दुनिया का ‘डम्बेस्ट बॉरोइंग प्रोग्राम’

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) स्कीम को लेकर निवेशक और एकैडमिक संजय बक्शी ने तीखा हमला बोला है. उन्होंने एक्स पर इस योजना को "दुनिया का सबसे मूर्खतापूर्ण गवर्मेंट बॉरोइंग प्रोग्राम" बताया. बक्शी का कहना है कि SGB की इफेक्टिव बॉरोइंग कॉस्ट 19 फीसदी से ज्यादा है, जो खराब रिस्क मैनेजमेंट और गलत डिजाइन का नतीजा है.

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम Image Credit: tv9 bharatvarsh

Sovereign Gold Bond: भारत की सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) स्कीम, जिसे कभी सोने के इम्पोर्ट को कम करने के एक इनोवेटिव सल्यूशन के रूप में पेश किया गया था, अब निवेशक और एकैडमिक संजय बक्शी के निशाने पर है. एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अपने पोस्ट में, बक्शी ने इस योजना को “दुनिया के सबसे मूर्खतापूर्ण गवर्मेंट बॉरोइंग प्रोग्राम में से एक” करार दिया है. उन्होंने उधार की ज्यादा लागत और खराब रिस्क मैनेजमेंट को इसकी मुख्य कमियां बताया है, जो शुरू से ही इसकी डिजाइन में शामिल थीं. बक्शी, ‘फंडू प्रोफेसर’ के नाम से लोकप्रिय हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा कि उधार की इफेक्टिव कॉस्ट प्रति वर्ष 19 फीसदी से अधिक हो रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि “इस इंस्ट्रूमेंट को डिजाइन करने वाले व्यक्तियों को दुनिया के सबसे मूर्खतापूर्ण गवर्मेंट बॉरोइंग प्रोग्राम में से एक बनाने का पुरस्कार मिलना चाहिए.”

2008 की FCCB से तुलना

बक्शी ने इस मामले की तुलना 2008 में भारतीय कंपनियों द्वारा जारी किए गए फॉरेन करेंसी कन्वर्टिबल बॉन्ड (FCCB) से की है. उन्होंने याद दिलाया कि कैसे “रुपये के डेप्रिसिएशन और शेयरों की कीमतों में गिरावट” की स्थिति में उन कंपनियों को करेंसी रिस्क को हेज करने में असमर्थ होने के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था.

हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि SGB के मामले में डिफॉल्ट की संभावना नहीं है क्योंकि “जारीकर्ता (सरकार) पैसा छाप सकती है,” लेकिन फिर भी यह घटना “बेसिक रिस्क मैनेजमेंट की पूरी अज्ञानता का एक बेहतरीन उदाहरण” है.

योजना की शुरुआत क्यों हुई

बक्शी का यह पोस्ट पाइनट्री के संस्थापक रितेश जैन के एक अलग पोस्ट के जवाब में था, जिसमें उन्होंने बताया था कि आखिर इस योजना की कल्पना क्यों की गई थी. जैन ने याद किया कि 2015 में भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा था क्योंकि घरेलू परिवार फिजिकल गोल्ड खरीद रहे थे, जिससे रुपये पर दबाव पड़ रहा था.

जैन ने बताया कि वित्त मंत्रालय में किसी ने एक सिंथेटिक इंस्ट्रूमेंट बनाने का फैसला किया ताकि एक स्ट्रक्चर्ड प्रोडक्ट के जरिए भारतीयों की सोने की भूख को शांत किया जा सके, जो केवल भारत सरकार के विश्वास पर समर्थित था लेकिन उसके पास बॉन्ड का बैकअप लेने के लिए रियल सोना नहीं था.

19 फीसदी की बॉरोइंग कॉस्ट को कई यूजर बता रहे गलत

बक्शी के इस पोस्ट ने लोगों में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू कर दिया. एक यूजर ने इसे “FCCB 2008 डेजा वू” बताया और कहा कि “अब सरकार ने कभी गोल्ड रिस्क हेज नहीं किया. इम्पोर्ट कम करने के लिए बने एक सॉवरेन इंस्ट्रूमेंट के लिए 19 फीसदी की बॉरोइंग कॉस्ट पागलपन है.”

उन्होंने आगे कहा कि “SGB घरेलू परिवारों के लिए एक फ्री कॉल ऑप्शन और राज्य के लिए एक खून बहने वाली देनदारी में बदल गया है.” चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा, “2008 की कंपनियों के विपरीत, सरकार डिफॉल्ट नहीं करेगी, लेकिन टैक्सपेयर नुकसान झेलेंगे.”

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