केवल 70 लाख में खरीदा गया था जम्मू-कश्मीर, जानें गुलाब सिंह के हाथ में कैसे आया धरती का जन्नत
जम्मू-कश्मीर कभी 70 लाख रुपये में खरीदा गया था.जानें कैसे गुलाब सिंह ने इसे अंग्रेजों से खरीदा, कैसे बना डोगरा राज्य और कैसे इसका भूगोल समय के साथ भारत, पाकिस्तान और चीन में बंट गया.

Kashmir Bought For 70 Lakhs: पहलगाम हमले के बाद जम्मू-कश्मीर एक बार फिर सुर्खियों में है. भारत-पाकिस्तान के बीच आजादी के बाद से ही विवाद का मुख्य बिंदु रहा जम्मू-कश्मीर अब कई हिस्सों में बंट चुका है. इसका एक हिस्सा पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में है. इसके अलावा बचा हुआ हिस्सा भारत के पास है. लेकिन अगर जम्मू-कश्मीर के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलेगा कि आज जो कश्मीर हम देखते हैं, उसे कभी एक राजा ने मात्र 70 लाख रुपये में खरीदा था.
रणजीत सिंह की मौत के बाद हुआ बदलाव
खुशवंत सिंह के किताब सिखों का इतिहास के मुताबिक, महाराजा रणजीत सिंह के समय में जम्मू-कश्मीर सिख साम्राज्य का हिस्सा था और यहां की कमान डोगरा राजपूत गुलाब सिंह के हाथो में थी. लेकिन 1839 में उनकी मृत्यु के बाद हालात बदल गए. इसके बाद 1846 में सिखों और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध में सिखों की हार हुई. इस हार के बाद हुई संधि में अंग्रेजों ने सिखों से डेढ़ करोड़ रुपये और पंजाब का एक बड़ा हिस्सा मांगा. सिखों की ओर से गुलाब सिंह को अंग्रेजों से बातचीत के लिए नियुक्त किया गया था. अंग्रेजों की मांग पूरी करने के लिए सिखों के पास पर्याप्त धन नहीं था, इसलिए उन्होंने अंग्रेजों को ब्यास और सतलुज के बीच का इलाका देने की पेशकश की. हालांकि, अंग्रेजों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई क्योंकि यह पहाड़ी इलाका था और यहां खेती योग्य भूमि कम थी.
गुलाब सिंह ने 70 लाख में खरीदा जम्मू-कश्मीर
सिखों की ओर से बातचीत कर रहे गुलाब सिंह यह समझ गए कि अंग्रेजों की जम्मू-कश्मीर में कोई खास दिलचस्पी नहीं है.उन्होंने इस इलाके को अंग्रेजों से खरीदने की पेशकश की.16 मार्च 1846 को गुलाब सिंह ने इसे 70 लाख रुपये में अंग्रेजों से खरीदा.यह सौदा अमृतसर संधि के तहत हुआ.गुलाब सिंह ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार की और उन्हें जम्मू-कश्मीर का राजा घोषित किया गया.इसके साथ ही डोगरा राजवंश की स्थापना हुई और आधुनिक जम्मू-कश्मीर अस्तित्व में आया.तब इसमें आज के जम्मू-कश्मीर के अलावा पाक-अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान, शक्सगाम वैली, लद्दाख और अक्साई चिन शामिल थे.बाद के वर्षों में इसका विस्तार हुंजा वैली तक हुआ था.
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मैकमोहन लाइन से शुरू हुआ विवाद
अंग्रेजों ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच सीमा तय करने के लिए मैकमोहन रेखा खींची.तिब्बत ने इस रेखा को मान लिया लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया.चीन ने हुंजा वैली समेत बड़े हिस्से पर दावा ठोका.जम्मू-कश्मीर के अंतिम राजा हरि सिंह के शासनकाल में चीन ने शक्सगाम वैली पर भी दावा किया.भारत के विभाजन के बाद 1963 में पाकिस्तान ने शक्सगाम वैली चीन को सौंप दी.
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