टाटा ट्रस्ट्स से मेहली मिस्त्री बाहर! तीन ट्रस्टियों ने फिर से नियुक्ति के खिलाफ की वोटिंग: रिपोर्ट
Tata Trusts: तीन ट्रस्टियों द्वारा उनके कार्यकाल को रिन्यूअल के खिलाफ मतदान के साथ, मिस्त्री को हटाने का निर्णय उन दोनों प्रमुख ट्रस्टों में बहुमत से लिया गया है जिनके ट्रस्टी मिस्त्री हैं. टाटा ट्रस्ट्स में ट्रस्टियों की नियुक्ति, अन्य निर्णयों की तरह, परंपरा के अनुसार सर्वसम्मति से की जाती रही है.
Tata Trusts: टाटा ट्रस्ट्स में एक नाटकीय मोड़ आया है. कभी रतन टाटा के सबसे करीबी माने जाने वाले मेहली मिस्त्री को चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी विजय सिंह द्वारा उनके कार्यकाल के रिन्यूअल को मंजूरी देने से इनकार के बाद, उन्हें पद से हटाया जा सकता है. ईटी ने इस मामले से वाकिफ सूत्रों के हवाले से बताया कि इससे टाटा ट्रस्ट्स की टॉप धर्मार्थ संस्थाओं में उनका कार्यकाल प्रभावी रूप से समाप्त हो गया है. तीन ट्रस्टियों द्वारा उनके कार्यकाल को रिन्यूअल के खिलाफ मतदान के साथ, मिस्त्री को हटाने का निर्णय उन दोनों प्रमुख ट्रस्टों में बहुमत से लिया गया है जिनके ट्रस्टी मिस्त्री हैं. सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) की टाटा संस में 51 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि ट्रस्टों के व्यापक समूह की कुल मिलाकर 66 फीसदी हिस्सेदारी है.
ट्रस्टी में कौन-कौन है शामिल?
सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, विजय सिंह, मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी और डेरियस खंबाटा हैं. सर रतन टाटा ट्रस्ट में ट्रस्टी नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, विजय सिंह, जिमी टाटा, जहांगीर एच.सी. जहांगीर, मेहली मिस्त्री और डेरियस खंबाटा हैं. चूंकि मिस्त्री अपने रिन्यूअल पर खुद वोटिंग नहीं कर सकते, इसलिए सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट में निर्णय बहुमत से होता है. चूंकि जिमी टाटा आमतौर पर ट्रस्ट की विचार-विमर्श में भाग नहीं लेते, इसलिए SRTT में भी यह प्रभावी रूप से बहुमत का निर्णय होता है.
समूह के लिए एक विडंबना यह है कि मिस्त्री को अक्टूबर में हटाया गया, यह वही महीना है जब 2016 में उनके दिवंगत चचेरे भाई साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था.
टाटा समूह में उथल-पुथल
सूत्रों ने बताया कि तीनों ट्रस्टियों ने गुरुवार देर रात और शुक्रवार सुबह अपने फैसले की जानकारी दी. मिस्त्री का कार्यकाल तीन साल बाद बढ़ाने का प्रस्ताव पिछले शुक्रवार को टाटा ट्रस्ट्स के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने पेश किया था. हालांकि, ट्रस्टी डेरियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर जहांगीर पहले ही अपनी सहमति दे चुके थे, लेकिन सर्वसम्मति न बन पाने के कारण मिस्त्री को बाहर होना पड़ा. इससे अक्टूबर में टाटा समूह के लिए एक और उथल-पुथल मच गई है.
सर्वसम्मति से होती रही है नियुक्ति
टाटा ट्रस्ट्स में ट्रस्टियों की नियुक्ति, अन्य निर्णयों की तरह, परंपरा के अनुसार सर्वसम्मति से की जाती रही है. ट्रस्टियों ने परंपरा को तोड़ते हुए, लंबे समय से सेवारत संरक्षक रतन टाटा के निधन के लगभग एक साल बाद, 11 सितंबर को पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड में नामित निदेशक के पद से हटाने के लिए बहुमत से मतदान किया. इसके बाद घटनाओं की एक ऐसी श्रृंखला शुरू हुई, जिसने भारत के सबसे हाई-प्रोफाइल सार्वजनिक ट्रस्टों की अंदरूनी कलह की ओर देश भर का ध्यान आकर्षित किया.
यह भी पढ़ें: क्या चांदी गिरवी रखकर लोन ले सकते हैं? RBI ने जारी की है नई गाइडलाइंस, आप भी जान लीजिए
Latest Stories
Union Bank और Bank of India के मर्जर से बनेगा दूसरा सबसे बड़ा पब्लिक सेक्टर बैंक : रिपोर्ट
स्टॉक ट्रेडिंग के सेक्टर में उतरेगी Dream11, लाइसेंस के लिए किया आवेदन, इस नाम से आएगा नया ऐप
एक दिन में ₹4100 सस्ता हुआ गोल्ड, चांदी का भाव भी ₹6000 से ज्यादा टूटा; जानें कहां पहुंची कीमत
