टाटा की बोर्ड मीटिंग में क्या हुआ ऐसा… जिससे सड़क पर आ गया विवाद, रतन टाटा के बाद 1 साल में ऐसे बदला कल्चर
Tata Sons Rift: इस लड़ाई के केंद्र में होल्डिंग कंपनी में महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार है. 156 साल पुराना यह समूह, जिसका व्यावसायिक साम्राज्य लगभग 400 कंपनियों तक फैला है, जिनमें से दो दर्जन से अधिक बीएसई और एनएसई में लिस्टेड हैं. इन्हें टाटा परिवार के ट्रस्टों के एक समूह के जरिए कंट्रोल किया जाता है.
Tata Sons Rift: भारत का सबसे वैल्यूएबल समूह टाटा संस, एक बार फिर खुद को एक नाज़ुक मोड़ पर पा रहा है. कंपनी को लिस्ट होना होगा या नहीं इस रेगुलेटरी अनिश्चितता के बीच, टाटा संस अपनी गवर्निंग बॉडी, टाटा ट्रस्ट के भीतर एक आंतरिक कलह का सामना कर रहा है. 156 साल पुराना यह समूह, जिसका व्यावसायिक साम्राज्य लगभग 400 कंपनियों तक फैला है, जिनमें से दो दर्जन से अधिक बीएसई और एनएसई में लिस्टेड हैं. इन्हें टाटा परिवार के ट्रस्टों के एक समूह के जरिए कंट्रोल किया जाता है. इसके ट्रस्टी अब टाटा संस के बोर्ड में सीटों को लेकर खींचतान में उलझे हुए प्रतीत होते हैं. इस लड़ाई के केंद्र में होल्डिंग कंपनी में महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार है. 31 मार्च 2025 तक, 26 सार्वजनिक रूप से लिस्टेड टाटा कंपनियों का कुल मार्केट कैपिटलाइजेशन 328 अरब डॉलर (करीब 30 लाख करोड़) से अधिक है.
10 अक्टूबर की मीटिंग पर टिकी नजरें
टाटा ट्रस्ट्स के भीतर पनपे विवाद के चलते भारत के पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को बोर्ड से इस्तीफा देना पड़ा है और रिपोर्ट्स की मानें तो कथित तौर पर सरकार को भी हस्तक्षेप करना पड़ा. मंगलवार की शाम टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और टाटा सन्स के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिले हैं. अब सभी की निगाहें 10 अक्टूबर को होने वाली टाटा ट्रस्ट की अगली बैठक पर टिक गई हैं.
टाटा ट्रस्ट की बैठक में क्या-क्या हुआ?
मौजूदा विवाद की जड़ टाटा ट्रस्ट्स के छह ट्रस्टियों की एक बैठक में है. यह ट्रस्ट सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट सहित कई धर्मार्थ ट्रस्टों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक प्रमुख समूह है, जिनका संयुक्त रूप से टाटा संस में लगभग 65 फीसदी नियंत्रण है. 11 सितंबर को हुई यह बैठक विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड में नामित निदेशक के रूप में पुनर्नियुक्ति पर विचार करने के लिए बुलाई गई थी. सिंह सहित टाटा ट्रस्ट्स में कुल सात ट्रस्टी हैं. हालांकि, सिंह बैठक में शामिल नहीं हुए, क्योंकि उनका नामांकन एजेंडे में था.
9 अक्टूबर, 2024 को दिवंगत संरक्षक रतन टाटा के निधन के बाद, ट्रस्ट ने निर्णय लिया था कि टाटा संस के बोर्ड में नामित निदेशकों की 75 वर्ष की आयु पूरी होने पर हर साल दोबारा से उन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए. विजय सिंह 2012 से इस पद पर थे और 2018 से टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी थे.
पुनर्नियुक्ति का प्रस्ताव कथित तौर पर ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन (टीवीएस समूह के मानद चेयरमैन) द्वारा प्रस्तावित किया गया था. दोनों टाटा संस के बोर्ड में नामित निदेशक भी हैं. हालांकि, शेष चार सदस्यों, मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एच.सी. जहांगीर और डेरियस खंबाटा ने इस कदम का विरोध किया. चूंकि वे बहुमत में थे, इसलिए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया.
खुलकर सामने आ गए विवाद
इसके बाद, कथित तौर पर चारों ट्रस्टियों ने मेहली मिस्त्री को टाटा संस के बोर्ड में नामित सदस्य के रूप में नामित करने का प्रस्ताव रखने की कोशिश की. टाटा और श्रीनिवासन ने इस कदम का विरोध किया और कथित तौर पर कहा कि ऐसी नियुक्तियां टाटा के मूल्यों और संस्थागत प्रतिष्ठा के अनुरूप एक पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करते हुए होनी चाहिए. बैठक के बाद, विजय सिंह ने स्वेच्छा से टाटा संस के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया. रिपोर्ट के अनुसार, विवाद खुलकर यहीं से सामने आ गए.
10 अक्टूबर को होने वाली बोर्ड मीटिंग से ठीक पहले टाटा ट्रस्ट्स के 7 एक्टिव ट्रस्टियों के बीच दरार बढ़ती जा रही है. ये ट्रस्ट देश के सबसे बड़े कॉर्पोरेट घराने टाटा समूह को नियंत्रित करते हैं, जिसकी वार्षिक सेल्स 170 अरब डॉलर से अधिक है और जिसके पास समूह का 66.4 फीसदी हिस्सा है.
विवाद के सेंटर में नोएल टाटा और तीन मुद्दे
कुछ ट्रस्टी अब चेयरमैन नोएल टाटा के अधिकार पर खुलेआम सवाल उठा रहे हैं. यह तब हो रहा है जब समूह की नॉन-बैंकिंग ब्रांच, टाटा कैपिटल ने सोमवार को 15,512 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा सेगमेंटल आईपीओ लॉन्च किया है. उच्च स्तरीय एनबीएफसी (सितंबर 2025 के लिए निर्धारित) के लिए लिस्टिंग की समय सीमा चूक जाना, ट्रस्टियों के बीच हाल ही में नामांकन को लेकर विवाद और शापूरजी पलोनजी समूह द्वारा अपनी 18.6 फीसदी समूह हिस्सेदारी को मॉनिटाइज करने का प्रयास.
रतन टाटा के बाद समूह में क्या बदला
ट्रस्टियों को एकजुट करने, ट्रस्टों और टाटा समूह पर अपना अधिकार स्थापित करने (दिवंगत रतन टाटा की तरह) और पारिवारिक संबंधों में संतुलन बनाने की नोएल की क्षमता उनके नेतृत्व को परिभाषित करेगी. यह परिणाम इस व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण समूह के भविष्य के ऑपरेशन के लिए महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट्स के अनुसार, टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन के रूप में अपनी नियुक्ति के बाद से नोएल टाटा ने कथित तौर पर समूह और ट्रस्टों पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश की है, जो कुछ ट्रस्टियों को रास नहीं आया है.
इस्तीफे का तरीका परंपरा से अलग
नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने विजय सिंह को तीसरे कार्यकाल के लिए टाटा संस के बोर्ड में फिर से नामित करने के पक्ष में मतदान किया. इस अस्वीकृति के परिणामस्वरूप 77 वर्षीय सेवानिवृत्त सिविल सर्वेंट विजय सिंह ने टाटा संस के बोर्ड से नामित निदेशक के रूप में अचानक इस्तीफा दे दिया. सिंह के इस्तीफे का तरीका परंपरा से बिल्कुल अलग था. दिवंगत रतन टाटा के कार्यकाल में, सभी निर्णय सर्वसम्मति से होते थे, जबकि सभी ट्रस्टियों के पास समान शक्तियां थीं और चेयरमैन के पास कोई वीटो नहीं था. रतन टाटा के प्रभाव ने सर्वसम्मति सुनिश्चित की. हालाँकि, सिंह का जबरन इस्तीफा 4:2 के मतों के एकमत न होने के कारण हुआ.
मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनके सौतेले भाई रतन टाटा अपने ‘व्यापक अधिकार’ का इस्तेमाल करने के लिए जाने जाते थे और उन्हें शायद ही कभी चुनौतियों का सामना करना पड़ा हो. लेकिन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नोएल ‘अब तक इसी तरह के अधिकार को मजबूत नहीं कर पाए हैं.’ हालांकि वह परिवार के नाम से जाने जाते हैं और रतन टाटा के उत्तराधिकारी के रूप में सर्वसम्मति से चुने गए थे, लेकिन ट्रस्टों की इंटरनल डायानामिक बदल गई है. रतन टाटा के विपरीत, नोएल को अब अपने साथी ट्रस्टियों की कड़ी निगरानी का सामना करना पड़ रहा है.
रतन टाटा के छोटे भाई जिमी नवल टाटा भी ट्रस्टी हैं, लेकिन वे बैठक में शामिल नहीं हुए. सूत्रों का कहना है कि नोएल गुट का मानना है कि चारों असहमत ट्रस्टी स्थापित ‘टाटा पद्धति’ का पालन नहीं कर रहे हैं, जो दशकों से चली आ रही सहमति और सर्वसम्मत निर्णयों पर आधारित है.
सूत्रों का दावा है कि उस दिन चारों ट्रस्टियों के व्यवहार से नोएल और श्रीनिवासन नाराज हो गए. उन्होंने इस कार्रवाई को ‘गुप्त’ बताया, न कि ‘टाटा पद्धति’ और ट्रस्टों और परिणामस्वरूप, टाटा संस की शक्तियों को हड़पने का प्रयास बताया. ट्रस्टों ने रतन टाटा के निधन और नोएल टाटा (69) के चेयरमैन बनने के तुरंत बाद, 17 अक्टूबर,2024 को टाटा संस बोर्ड में नामित निदेशकों की नियुक्ति के नियमों में बदलाव किया था.
प्रमुख प्लेयर
प्रमुख ट्रस्टियों में चेयरमैन नोएल टाटा और वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन (72 वर्ष, टीवीएस मोटर के, जो टाटा संस के भी नामित सदस्य हैं) शामिल हैं. अन्य ट्रस्टी हैं – विजय सिंह (अब इस्तीफा दे दिया है); मेहली मिस्त्री (दिवंगत साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई और रतन टाटा के विश्वासपात्र), वकील डेरियस खंबाटा (55 वर्ष), प्रमित झावेरी (65 वर्ष, सिटी इंडिया के पूर्व सीईओ, 2010-19) और जहांगीर एच.सी. जहांगीर (परोपकार के लिए जाने जाते हैं).
कौन किया नोएल टाटा के फैसले का विरोध?
सूत्रों का कहना है कि यह मतभेद तब और गहरा गया जब खंबाटा, झावेरी और जहांगीर ने सिंह की पुनर्नियुक्ति का विरोध किया और साथ ही मेहली मिस्त्री को टाटा संस के बोर्ड में शामिल करने पर जोर दिया. नोएल और श्रीनिवासन ने इस कदम को रोक दिया, जिससे कोई समाधान नहीं निकल सका. परंपरा के अनुसार, ट्रस्टों को बोर्ड में एक-तिहाई सदस्यों की नियुक्ति करने की अनुमति है.
ट्रस्टों के पास टाटा संस पर व्यापक अधिकार हैं, जिसमें वीटो अधिकार भी शामिल हैं, जैसा कि टाटा संस के एसोसिएशन के अनुच्छेद 21 में दर्ज है. टाटा संस के बोर्ड में वर्तमान में छह सदस्य हैं. हाल ही में तीन पद खाली हुए हैं. राल्फ स्पेथ (पूर्व जेएलआर प्रमुख) की रिटायरमेंट, उद्योगपति अजय पीरामल का कार्यकाल समाप्त होना, तथा पूर्व यूटीआई प्रमुख लियो पुरी की रिटायरमेंट.
टाटा परिवार के लिए बोर्ड की सीटें क्यों महत्वपूर्ण हैं?
टाटा ट्रस्ट्स (विजय सिंह के इस्तीफे से पहले) के टाटा संस के बोर्ड में तीन नामित निदेशक थे. ये निदेशक टाटा समूह की कंपनियों, जिनमें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, इंडियन होटल्स कंपनी और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स आदि शामिल हैं, के हर बड़े फैसले के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसके लिए मानदंड टाटा संस लिमिटेड के एसोसिएशन के नियमों में दिए गए हैं.
हालांकि, समूह के एसोसिएशन के नियम सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड बनाम साइरस इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड मामले में 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में नामित निदेशकों को प्राप्त कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं.
टाटा संस के एसोसिएशन के नियमों के अनुच्छेद 104बी(बी) के तहत, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट को कंपनी के एक-तिहाई निदेशकों को नामित करने का स्थायी अधिकार है, जिसका प्रयोग बोर्ड के गठन या किसी पद की रिक्ति होने पर किया जाता है.
इसके अलावा, अनुच्छेद 121 में कई ‘रिजर्व मामले’ लिस्टेड हैं, जैसे शेयरहोल्डिंग में परिवर्तन, अनुच्छेदों में परिवर्तन, चेयरमैन की नियुक्ति या निष्कासन, प्रमुख परिसंपत्तियों की बिक्री, या नए व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रवेश, जिनके लिए ट्रस्ट के नामित निदेशकों की पॉजिटिव सहमति आवश्यक है.
इनमें एक प्रमुख वित्तीय सुरक्षा उपाय भी शामिल है, जो टाटा संस को उनकी मंजूरी के बिना 100 करोड़ रुपये से अधिक का कोई भी निवेश करने से रोकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों को विवेकपूर्ण शासन और निगरानी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सुरक्षात्मक अधिकार बताया है.
विवाद के अन्य कारण
हाल की रिपोर्टों के अनुसार, विवाद का एक अन्य बिंदु टाटा संस बोर्ड से टाटा ट्रस्ट्स तक सूचना का फ्लो है. चार ट्रस्टी, जो टाटा संस बोर्ड में नहीं हैं, ने आरोप लगाया है कि नामित निदेशक, जो दोनों बॉडी के बीच प्राथमिक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं, पूरी जानकारी साझा नहीं कर रहे हैं. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हाल के महीनों में यह चिंता बढ़ गई है और कम से कम एक ट्रस्टी ने आरोप लगाया है कि सूचना के फ्लो को जानबूझकर रोका गया है.