वर्क-लाइफ बैलेंस के मामले में भारत कितना पीछे, न्यूजीलैंड बना नंबर वन; अमेरिका भी फेल; जानें डिटेल्स

वर्क-लाइफ बैलेंस को लेकर रिमोट की ग्लोबल लाइफ-वर्क बैलेंस इंडेक्स ने एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूजीलैंड लगातार तीसरे साल पहले नंबर पर रहा है. वहीं, रिपोर्ट में भारत की स्थिति चिंताजनक बताई गई है. ऐसे में आइए जानते हैं कि किन देशों ने टॉप 10 में जगह बनाई और भारत की हालत क्या रही है.

क्या है वर्क लाइफ बैलेंस की रिपोर्ट में भारत का हाल Image Credit:

Work-life Balance Report 2025: आज के समय में सिर्फ मोटी सैलरी ही किसी नौकरी को बेहतर नहीं बनाती, बल्कि काम और जिंदगी के बीच संतुलन यानी लाइफ-वर्क बैलेंस सबसे अहम जरूरत बन चुका है. ऑफिस की थकान अगर घर की शांति को निगलने लगे तो मानसिक और शारीरिक थकावट का बोझ बढ़ता चला जाता है. ऐसे में Remote की Global Life-Work Balance Index 2025 रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के किन देशों में लोग सबसे सुकूनभरी और संतुलित प्रोफेशनल लाइफ जी रहे हैं. रिपोर्ट में भारत की स्थिति निराशाजनक है, जबकि न्यूजीलैंड ने लगातार तीसरे साल बाजी मार ली है. आइए जानते हैं किन देशों ने टॉप 10 में जगह बनाई और भारत की हालत क्या रही है.

न्यूजीलैंड

रिपोर्ट में न्यूजीलैंड को 86.87 स्कोर के साथ पहले स्थान पर रखा गया है. यहां की सरकार और कंपनियां अपने कर्मचारियों को काम के साथ-साथ आराम और परिवार के साथ समय बिताने के पूरे मौके देती हैं. यहां 32 दिन की स्टेचुटरी हॉलिडे हर कर्मचारी को मिलती हैं. बीमार होने पर 80 फीसदी से 100 फीसदी तक वेतन मिलता है. वहीं 26 हफ्तों की मैटरनिटी लीव, वो भी 100 फीसदी सैलरी के साथ मिलता है. यहां की हेल्थकेयर सरकारी है और सभी को कवर करती है. काम के घंटे केवल 33 प्रति सप्ताह हैं. न्यूजीलैंड सुरक्षा और हैप्पीनेस स्कोर भी बहुत अच्छा है. ऐसे में इन सुविधाओं के कारण न्यूजीलैंड को दुनिया का सबसे बेहतर देश माना गया है.

यूरोपीय देशों का दबदबा

इस रिपोर्ट में टॉप 10 में 7 देश यूरोप से हैं, जिससे साफ है कि यूरोपीय देश अपने नागरिकों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और व्यक्तिगत जीवन को सम्मान देने वाली नीतियां देते हैं. जिसमें आयरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, नॉर्वे, डेनमार्क, स्पेन और फिनलैंड जैसे देशों ने वर्क-लाइफ बैलेंस में बेहतरीन प्रदर्शन किया है. इनमें से कई देश ऐसे हैं जहां,

कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन का हाल

रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा में भले ही मातृत्व अवकाश के दौरान केवल 55% वेतन के साथ 18 हफ्तों की छुट्टी मिलती हो, लेकिन वहां की यूनिवर्सल हेल्थकेयर व्यवस्था उसे टॉप 10 देशों में बनाए रखती है. वहीं, ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वहां दुनिया में सबसे अधिक 18.12 डॉलर प्रति घंटे का न्यूनतम वेतन निर्धारित है. स्पेन ने भी 36 दिनों की छुट्टियों और 100% मातृत्व वेतन के आधार पर इस सूची में जगह बनाई है, हालांकि सिक लीव के दौरान वहां केवल 60% से कम वेतन ही दिया जाता है.

भारत का हाल

भारत इस रिपोर्ट में 42वें स्थान पर है, जिससे साफ है कि देश को इस दिशा में अभी मेहनत करनी बाकी है. भारत में औसतन 35 दिन की वार्षिक छुट्टियां तो हैं, लेकिन बीमार होने पर वेतन कवरेज सिर्फ 60 फीसदी से भी कम होता है. यहां मैटरनिटी लीव केवल 12 हफ्तों की है, हालांकि 100 फीसदी वेतन दिया जाता है. भारत का हेल्थकेयर सिस्टम अब भी पब्लिक इंश्योरेंस पर निर्भर है जो कई बार अपर्याप्त साबित होता है. यानी अधिक छुट्टियों के बावजूद हेल्थ, वेतन और मैटरनिटी के मोर्चे पर भारत पीछे है.

अमेरिका का हाल

रिपोर्ट में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि अमेरिका जैसे विकसित देश को 59वां स्थान मिला है. इसका कारण है, कर्मचारियों को बहुत कम पेड लीव मिलती है. काम के घंटे बहुत अधिक हैं. हेल्थकेयर पूरी तरह प्राइवेट है और महंगी है. मैटरनिटी और सिक लीव की नीतियां सख्त और सीमित हैं.

वर्क-लाइफ बैलेंस क्यों बन गया है सबसे जरूरी जरूरत

Randstad Work Survey 2025 के मुताबिक 83 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि अब उनके लिए वर्क-लाइफ बैलेंस ही सबसे जरूरी प्राथमिकता है, वो भी सैलरी और भत्तों से ऊपर हैं. कोविड-19 के बाद वर्क फ्रॉम होम और हमेशा ऑन (Always On) कल्चर के चलते निजी और प्रोफेशनल जिंदगी की सीमाएं धुंधली हो गई हैं. लोग घर पर भी काम से जुड़ी कॉल और ईमेल में उलझे रहते हैं, जिससे मानसिक तनाव, थकावट और बर्नआउट की समस्या बढ़ी है.

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