ट्रंप के 100% फार्मा टैरिफ का भारतीय कंपनियों पर तुरंत असर नहीं, एक्सपर्ट्स ने बताई ये वजह
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेटेंटेड और ब्रांडेड दवाओं के आयात पर 100% टैरिफ लगान का ऐलान किया है. उनके इस ऐलान की वजह से शुक्रवार को भारतीय फार्मा कंपनियों के स्टॉक्स में भारी गिरावट देखने को मिली. निफ्टी फार्मा इंडेक्स 2 फीसदी से ज्यादा टूटकर बंद हुआ. बहरहाल, एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रंप के टैरिफ का भारत के निर्यात पर तुरंत कोई खास असर नहीं होने वाला है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अक्टूबर, 2025 से अमेरिका में ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं के आयात पर 100% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के इस फैसले का भारतीय दवा उद्योग पर तत्काल असर पड़ने की संभावना नहीं है. PTI की रिपोर्ट के मुताबिक उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इस टैरिफ का असर केवल पेटेंटेड और ब्रांडेड उत्पादों पर होगा. जबकि, भारतीय निर्यात जेनरिक दवाओं से जुड़ा है.
IPA ने जताई राहत की सांस
देश की 23 प्रमुख फार्मा कंपनियों के समूह इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (IPA) ने ट्रंप के फैसले को भारतीय दवा उद्योग के लिए राहत भरा बताया है. डॉ रेड्डीज, सन फार्मा, लुपिन और जाइडस लाइफसाइंसेज जैसी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले इस समूह का कहना है कि ट्रंप के टैरिफ का जेनरिक दवाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा. IPA के सचिव जनरल सुदर्शन जैन ने बताया, “यह केवल पेटेंटेड और ब्रांडेड उत्पादों के लिए लागू है. जबकि, ज्यादातर भारतीय कंपनियां अमेरिकी बाजार में जेनरिक दवाएं ही बेचती हैं.”
अमेरिकी भारतीय दवाओं का दबदबा
फार्मेक्सिल के अध्यक्ष नमित जोशी का कहना है कि भारत लंबे समय से किफायती और हाई क्वालिटी वाली दवाओं की आपूर्ति में अहम भूमिका निभा रहा है. अमेरिका की करीब 47% दवाओं की जरूरतें भारत से पूरी होती हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बड़े भारतीय फार्मा निर्माता पहले से ही अमेरिका में निर्माण या री-पैकेजिंग यूनिट चला रहे हैं, इसलिए 100% टैरिफ से तत्काल असर नहीं पड़ेगा.
क्या है उद्योग की रणनीति?
जोशी ने आगे कहा कि भारत को अपने बल्क ड्रग्स और API में कॉस्ट-एफिशिएंसी बढ़ानी होगी और साथ ही कॉप्लेक्स जेनरिक, पेप्टाइड्स, बायोसिमिलर्स और CAR-T थेरपी जैसे सेग्मेंट में निवेश करना होगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जेनरिक दवाएं अब भी अहम हैं. लेकिन, उभरते क्षेत्रों में लागत और क्षमता में सामंजस्य बनाना अगले विकास चरण को तय करेगा.
उद्योग और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
एमक्योर फार्मास्यूटिकल्स ने कहा कि अमेरिकी बाजार में उसका एक्सपोजर 5% से कम है और ब्रांडेड/पेटेंटेड दवाओं में कोई एक्सपोजर नहीं है, इसलिए टैरिफ का असर नहीं होगा.
- ICRA के उपाध्यक्ष दीपक जोतवानी के मुताबिक ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं के आयात का भारतीय उद्योग पर कोई तत्काल बड़ा असर नहीं पड़ेगा. हमारी ताकत जेनरिक दवाओं के निर्यात में है.
- इसी तरह फाउंडेशन फॉर इकॉनॉमिक डेवलपमेंट के राहुल अहलुवालिया ने कहा कि भारतीय मुख्य निर्यात जेनरिक दवाएं हैं, इसलिए तत्काल प्रभाव कम होगा. लेकिन यह भविष्य के विकास के लिए चिंता का संकेत है. हमें अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के साथ व्यापार समझौते की दिशा में और प्रयास बढ़ाने चाहिए.
- ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एशिया इकोनॉमिक्स हेड लुईस लू का कहना है कि एशिया अमेरिकी दवा आयात का केवल 20% मूल्य में योगदान करता है. इसलिए अमेरिकी उपभोक्ताओं पर इसका प्रभाव सीमित होगा.
अमेरिका को क्या फायदा?
भारतीय कंपनियां अमेरिकी नागरिकों को किफायती दवाओं की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता हैं. अमेरिका में हर 10 में से 4 प्रिस्क्रिप्शन ऐसे होते हैं, जिनमें भारतीय कंपनियों की दवाएं शामिल होती हैं. भारतीय दवाओं से अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम को सालाना 200 अरब डॉलर की बचत होती है.
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