ट्रंप का ‘टैरिफ हथियार’ फेल! अमेरिका से ऑर्डर गिरा… पर पूरी दुनिया में छा गया चीन; 1.08 ट्रिलियन डॉलर पहुंचा गुड्स ट्रेड सरप्लस
अमेरिका ने टैरिफ लगाकर चीन को रोकने की कोशिश की, लेकिन चीन ने अपनी चतुर रणनीति से खेल बदल दिया. नए बाजार, कमजोर मुद्रा, और सप्लाई चेन की चालों के जरिए चीन न सिर्फ बचा, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में और मजबूत होकर उभरा.
China Trade surplus: चीन ने दुनिया को चौंकाते हुए इस साल अपना गुड्स ट्रेड सरप्लस 1.08 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया है. यह अब तक का सबसे बड़ा ग्लोबल सरप्लस है. हैरानी की बात यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ के बावजूद चीन का निर्यात इंजन और तेज हो गया है. चीन का यह स्तर पिछले साल दिसंबर में छुआ था, लेकिन इस बार यह रिकॉर्ड नवंबर में ही टूट गया.
ट्रंप प्रशासन ने सोचा था कि ऊंचे टैरिफ से चीन की फैक्ट्रियों को झटका लगेगा और अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़त मिलेगी. लेकिन चीन ने रणनीति बदलकर टैरिफ के असर को कम कर दिया. उसने अपने सामान के लिए नए बाजार ढूंढे, अपनी प्रोडक्शन बढ़ाई और सप्लाई चेन को ऐसे देशों में भेज दिया जहां से अमेरिका को सामान भेजने पर टैरिफ नहीं लगता.
चीन के निर्यात कहां बढ़े
अफ्रीका में चीन का निर्यात 42 फीसदी बढ़ा, यूरोप में 15 फीसदी बढ़ोतरी हुई और लैटिन अमेरिका में डबल-डिजिट ग्रोथ दर्ज हुई. इसके उलट अमेरिका को भेजा जाने वाला सामान 29 फीसदी घटा, लेकिन दुनिया के दूसरे बाजारों से चीन को इतनी ज्यादा मांग मिली कि कुल निर्यात पहले से भी अधिक बढ़ गया. फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे यूरोपीय देशों में चीन से आयात तेजी से बढ़ा.
टैरिफ से बचने के तरीके
चीन की कंपनियों ने रणनीतिक रूप से अपनी प्रोडक्शन प्रक्रिया का एक हिस्सा वियतनाम, मेक्सिको, इंडोनेशिया और अफ्रीकी देशों में शिफ्ट करना शुरू कर दिया. इन देशों से अमेरिका को सामान भेजने पर भारी टैरिफ का बोझ नहीं पड़ता. इस तरह चीन का माल अमेरिकी रिटेलरों तक पहुंचता रहा बस ‘मेड इन चाइना’ की जगह नए देश का लेबल लग गया.
चीनी सामान सस्ता क्यों हुआ
चीन की मुद्रा युआन कमजोर होने से उसके प्रोडक्ट और सस्ते हो गए, खासकर यूरोपीय बाजारों में. चीन में घरेलू कीमतें गिर रही हैं, जबकि अमेरिका और यूरोप में महंगाई बढ़ रही है. चीन उभरते देशों में अपने प्रोडक्ट बहुत कम मुनाफे पर बेच रहा है. उसका मकसद इन देशों के बाजारों में लंबे समय तक पकड़ बनाना है. इसी वजह से अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों में चीनी इलेक्ट्रिक वाहन, मोबाइल, सोलर पैनल और टेक प्रोडक्ट तेजी से लोकप्रिय हो गए हैं.
अमेरिका को क्या मिला
टैरिफ से चीन की सप्लाई चेन जरूर बदली, लेकिन अमेरिकी फैक्ट्रियों में बड़ी वापसी नहीं हुई. अमेरिका भारत, वियतनाम और ताइवान से आयात बढ़ा रहा है, लेकिन कई प्रोडक्ट की शुरुआत अब भी चीन की फैक्ट्रियों से होती है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष इस सप्ताह चीन की मुद्रा नीति की जांच कर रहा है. चीन के भीतर भी आवाजें उठ रही हैं कि घरेलू मांग बढ़ाने के लिए युआन को मजबूत करना चाहिए, हालांकि इससे निर्यातकों को कीमत चुकानी पड़ेगी.
डेटा सोर्स: TOI, PTI
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