न शोर न शराबा… ऑपरेशन सिंदूर के बीच चल रहा था ऑपरेशन कगार, जिससे दुश्मनों का ढह गया अभेद्य किला
Operation Kagar: ऑपरेशन सिंदूर के शोर में एक और महत्वपूर्ण ऑपरेशन - ऑपरेशन कगार मीडिया की नजरों से ओझल हो गया. लेकिन बुधवार 21 मई को जब सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली, तो इसकी शोर से पूरे देश में सुनाई दे रही है.

Operation Kagar: गूगल मैप्स पर तेलंगाना और छत्तीसगढ़ को बांटने वाली करने वाली एक एक खास पहाड़ी श्रृंखला का एक स्थान ‘कार्रेगुट्टा’ और ‘ब्लैक हिल्स’ आज सुर्खियों में है. हालांकि, स्थानीय आदिवासी इसे कई अन्य नामों से भी पुकारते हैं. मीडिया इसे कर्रेगुट्टा ही लिखती-पढ़ती और बोलती है. एक दूसरे से सटी 15-20 पहाड़ियों का समूह रातों-रात पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया. दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के शोर में एक और महत्वपूर्ण ऑपरेशन – ऑपरेशन कगार मीडिया की नजरों से ओझल हो गया. लेकिन बुधवार 21 मई को जब सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली, तो इसकी शोर से पूरे देश में सुनाई दे रही है. वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में सुरक्षा बलों बड़ी सफलता हासिल हुई है. उन्होंने शीर्ष माओवादी नेता नंबाला केशव राव को मार गिराया है, जिन्हें बसवा राजू के नाम से जाना जाता था. वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में मुठभेड़ में मारे गए 26 नक्सलियों में से एक है. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह अब तक का सबसे बड़ा अभियान रहा.शीर्ष अधिकारियों द्वारा पूरे समय इसकी मॉनिटरिंग की जा रही थी. यानी जिस दौरान भारतीय आर्म्ड फोर्सेज पाकिस्तान को सबक सीखा रही थीं, उसी दौरान दंडकारण्य के घने जंगलों में सुरक्षा बल नक्सलियों के खात्मे के लिए ऑपरेशन कगार को अंजाम देने में जुटे थे.
क्या है ऑपरेशन कगार?
ऑपरेशन कगार, 21 अप्रैल को तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में फैले कर्रेगुट्टालु पहाड़ी क्षेत्र के आसपास घने जंगलों में रहने वाले माओवादियों को बेअसर करने के लिए शुरू किया गया था. कगार, संकल्प, ब्लैक फॉरेस्ट और कर्रेगुट्टालु जैसे विभिन्न नामों से जाने जाने वाले इस ऑपरेशन में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन या कोबरा, छत्तीसगढ़ पुलिस के जिला रिजर्व गार्ड, तेलंगाना के ग्रेहाउंड और पुलिस कर्मियों के 10,000 जवान तैनात थे.
खुफिया जानकारी से मिली सफलता
सुरक्षाबलों को खुफिया जानकारी मिली थी कि शीर्ष नेताओं सहित लगभग 400 माओवादी कर्रेगुट्टालू में डेरा डाले हुए हैं. इसके बाद 288 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करते हुए अभियान शुरू किया गया. दरअसल, कुछ हफ्ते पहले, एक माओवादी नेता ने स्थानीय आदिवासी आबादी को कथित तौर पर चेतावनी दी थी कि वे कर्रेगुट्टा के आस-पास न जाएं, क्योंकि सुरक्षा बलों की आगे की गतिविधियों को रोकने के लिए इसके आस-पास IED लगाए गए हैं. तब से कर्रेगुट्टा फोकस में रहा क्योंकि सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के हजारों सुरक्षा बल दुर्गम इलाके में तलाशी अभियान चला रहे थे. उनका अनुमान था कि इस इलाके में सैकड़ों माओवादी छिपे हुए हैं.
भाग रहे हैं माओवादी
साल की शुरुआत से ही बड़े पैमाने पर नुकसान झेलने के बाद माओवादी भाग रहे हैं. एक-एक करोड़ रुपये के इनाम वाले शीर्ष नेता माड़वी हिड़मा, देवा बरसे और दामोदर के बारे में माना जाता है कि वे घने जंगलों में छिपे हुए हैं, जहां 216 गुफाएं हैं, जिनमें वे और अन्य माओवादी पनाह लेते हैं. कभी माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले अबूझमाड़ में उनके गांव के पास एक सीआरपीएफ चौकी ने उन्हें घने जंगलों में भागने पर मजबूर कर दिया था. अपने चारों ओर तीन सुरक्षा घेरों के साथ हिड़मा कई मौकों पर पकड़ से बचने में सफल रहा है. जबकि हिड़मा ने इस साल जनवरी तक पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की पहली बटालियन की कमान संभाली थी.
माओवादियों के पास थी बढ़त
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि, ऑपरेशन कगार जंगलों में माओवादियों शीर्ष नेतृत्व और वर्कर्स को पकड़ने या खत्म करने के लिए शुरू किया गया था. लेकिन माओवादियों के पास यह बढ़त थी कि वे पहाड़ियों के ऊपर सुविधाजनक स्थानों पर तैनात थे. 700 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर पहाड़ी पर खड़ी चढ़ाई, पूरे क्षेत्र में फैली हुई बारूदी सुरंगों के कारण सुरक्षा बलों की तेजी से आगे बढ़ने में बाधा उत्पन्न हुई. अधिक सावधानी बरतने के बावजूद, 18 सुरक्षा कर्मियों को गंभीर चोटें आईं.
21 दिनों तक चला ऑपरेशन
21 दिनों तक चले अभियान में 21 मुठभेड़ों में 15 महिलाओं समेत 31 माओवादी मारे गए. उनमें से 28 की पहचान कर ली गई. इनमें से कुछ पर कुल मिलाकर 1.72 करोड़ रुपये का इनाम था. बड़े इलाके की तलाशी के दौरान 400 से अधिक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (Id) बरामद किए गए.
जंगलों तक सीमित रहने के लिए माओवादियों द्वारा की गई तैयारी का अंदाजा उनके पास मौजूद राशन के विशाल भंडार से लगाया जा सकता है जिससे वे कई हफ्तों या महीनों तक जिंदा रह सकते थे. 818 अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर, 35 ऑटोमैटिक, सेमी ऑटोमैटिक और इंसास राइफलें और भारी मात्रा में कॉर्डटेक्स तार बरामद होने से माओवादियों को बड़ा झटका लगा है. कार्रेगुट्टा पहाड़ियों पर सुरक्षा बलों के प्रभुत्व ने माओवादियों उस जगह से खदेड़ दिया है, जिसे हाल तक उनका अभेद्य गढ़ माना जाता था.
अंत की शुरुआत
हालांकि, माओवादियों का टॉप लीडर हिडमा, देवा और दामोदर अन्य लोगों के साथ भागने में सफल रहे, लेकिन राहत की बात यह है कि माओवादियों के अपना किला छोड़कर भागना पड़ा है. 14 मई को बीजापुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीआरपीएफ के डीजी ने कहा था कि ऑपरेशन कगार नक्सलवाद के ‘अंत की शुरुआत’ है. सुरक्षा बलों को इसे तार्किक अंत तक ले जाना चाहिए और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा निर्धारित मार्च 2026 की समय सीमा से पहले नक्सलवाद को खत्म कर देना चाहिए.
लगातार मारे जा रहे हैं माओवादी
मंगलवार की मुठभेड़ के साथ ही इस साल छत्तीसगढ़ में मारे गए माओवादियों की संख्या 200 तक पहुंच गई है, जिसमें बस्तर क्षेत्र में 183 माओवादी शामिल हैं. पिछले साल 219 माओवादी मारे गए थे, जिनमें बस्तर में 217 माओवादी मारे गए थे. अबूझमाड़ गोवा राज्य से भी बड़ा एक क्षेत्र है, जिसका सर्वे भी नहीं किया जा सका है. इसका एक बड़ा हिस्सा नारायणपुर में है, लेकिन यह बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले तक भी फैला हुआ है.
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