डिप्रेशन, एंजाइटी के इलाज के लिए महिलाएं और युवा मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस पर तेजी से कर रहे हैं खर्च
भारत में अब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सोच बदल रही है। बीमा लेने से लेकर क्लेम करने तक में लोगों की भागीदारी बढ़ रही है. खासकर युवा और महिलाएं इस बदलाव के केंद्र में हैं. अब मेंटल हेल्थ सिर्फ बातों का विषय नहीं, बल्कि हेल्थ प्लानिंग का जरूरी हिस्सा बन चुका है.

मेंटल हेल्थ अब सिर्फ बातचीत का विषय नहीं रहा, बल्कि बढ़ते समय के साथ अब लोग इसे अपनी हेल्थ प्लानिंग का महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहे हैं. मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के मौके पॉलिसीबाजार द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में अब लोग मानसिक स्वास्थ्य को लेकर न केवल जागरूक हो रहे हैं बल्कि इसके लिए इंश्योरेंस विकल्पों की तलाश भी तेजी से कर रहे हैं.
मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस की तलाश में 41 फीसदी की वार्षिक वृद्धि
पॉलिसीबाजार के आंकड़ों के मुताबिक, 2024 की तुलना में 2025 में मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी खोजों में 41 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है. इसके पीछे कई सामाजिक और व्यवहारिक बदलाव जिम्मेदार हैं. कोरोना महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सोच में बदलाव आया है, ओपीडी लाभों की व्यापक उपलब्धता ने भी योगदान दिया है और शहरी पढ़े-लिखे समाज में मानसिक समस्याओं से जुड़ी झिझक अब टूट रही है.
थेरेपी और काउंसलिंग आम हो रही हैं
पिछले 2–3 वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े क्लेम में 30–50 फीसदी तक की वृद्धि हुई है. अब लोग थेरेपी सेशन, काउंसल्टेशन और दवाइयों के लिए क्लेम आसानी से कर पा रहे हैं. ओपीडी बेनिफिट्स के जरिए यह सेवाएं पहले से कहीं ज्यादा सुलभ हो चुकी हैं. खास बात यह है कि कैशलेस मेंटल हेल्थ सर्विस का भी लोग ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो इस बदलाव को और भी सशक्त बनाता है.
युवाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा
25 से 35 साल के युवा जिन्हें मिलेनियल्स और जेन Z कहा जाता है, मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस को समझने, लेने और क्लेम करने में सबसे आगे हैं. यह वर्ग करियर और निजी जीवन के तनाव, वित्तीय अस्थिरता और पेशेवर बदलावों का सामना करता है. यही कारण है कि यह समूह थेरेपी, स्ट्रेस मैनेजमेंट और एंजाइटी की दवाओं के लिए सबसे ज्यादा क्लेम कर रहा है. ये युवा डिजिटल मेंटल हेल्थ ऐप्स और ऑनलाइन काउंसलिंग प्लेटफॉर्म से भी अच्छी तरह जुड़े हैं.
किस स्थिति में कितने क्लेम हो रहे हैं?
डेटा के मुताबिक, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी क्लेम में 30–35 फीसदी हिस्सा एंजाइटी डिसऑर्डर का है, जबकि 25–30 फीसदी डिप्रेशन से जुड़े हैं. कार्यस्थल का तनाव और बर्नआउट 15–20 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. अन्य क्लेम्स में अनिद्रा, एडजेस्टमेंट डिसऑर्डर, OCD, PTSD और बाइपोलर डिसऑर्डर शामिल हैं. यह दर्शाता है कि लोग अब छोटी समस्याओं को भी गंभीरता से लेकर जल्द इलाज की ओर बढ़ रहे हैं.
स्थिति | क्लेम में हिस्सेदारी |
चिंता विकार (सामान्य चिंता, घबराहट के दौरे सहित) | 30–35% |
अवसाद (गंभीर अवसाद, डिस्टाइमिया सहित) | 25–30% |
कार्यस्थल का तनाव और बर्नआउट | 15–20% |
अनिद्रा, समायोजन विकार | 5–10% |
अन्य (ओसीडी, पीटीएसडी, बाइपोलर सहित) | <5% |
टियर 1 शहरों में मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस का प्रभाव सबसे अधिक
भारत के टियर 1 शहरों की हिस्सेदारी मेंटल हेल्थ इंश्योरेंस में 50–55 फीसदी के बीच है. इसका बड़ा कारण यह है कि यहां लोगों के पास उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं, ज्यादा डिस्पोजेबल इनकम और कॉर्पोरेट्स में हेल्थ फ्रेंडली माहौल मौजूद है. टॉप-अप कवरेज, ऐड-ऑन थेरेपी और मनोचिकित्सकीय नेटवर्क तक पहुंच इन्हें और आगे बढ़ाती है.
महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य पॉलिसी अपनाने में पुरुषों से आगे
मेंटल हेल्थ प्लान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में 27 फीसदी ज्यादा है. 65 फीसदी बीमित महिलाएं ऐसी योजनाएं चुनती हैं जो मानसिक स्वास्थ्य और हार्मोनल इम्बैलेंस से जुड़ी सेवाएं कवर करती हैं. इनमें सबसे ज्यादा क्लेम रिप्रोडक्टिव स्टेजेस, भावनात्मक जिम्मेदारियों और डिप्रेशन जैसी समस्याओं को लेकर किए जाते हैं.
बीमा क्लेम का ट्रिगर अक्सर जीवन की अहम घटनाएं होती हैं. शुरुआती करियर में लोग नौकरी और स्थानांतरण के तनाव से गुजरते हैं. 35–50 की उम्र में बर्नआउट, वित्तीय जिम्मेदारियां और पारिवारिक देखभाल के दबाव से जूझते हैं. वहीं रिटायरमेंट के बाद अकेलापन, समाज से जुड़ाव की कमी और सेहत की चिंता प्रमुख होती है. हालांकि इस वर्ग में क्लेम कम दर्ज होते हैं, शायद सामाजिक बदनामी के डर या इलाज तक सीमित पहुंच के कारण.
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मेंटल हेल्थ को लेकर नजरिया बदल रहा है
पॉलिसीबाजार के हेल्थ इंश्योरेंस हेड सिद्धार्थ सिंघल कहते हैं, “मेंटल हेल्थ अब प्राथमिकता बन चुका है. हमारी रिपोर्ट में 41 फीसदी की वार्षिक वृद्धि ने यह साबित कर दिया है कि युवा, महिलाएं और तनावग्रस्त पेशेवर वर्ग इस बदलाव के वाहक हैं. हमें इलाज को और सुलभ, बीमा को व्यापक और मानसिक बीमारियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को संवेदनशील बनाने की दिशा में काम करना होगा.”
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