आईपीओ में कैसे होता है शेयर अलॉटमेंट, जानें पूरी प्रक्रिया
कई कंपनियां जब आईपीओ जारी करती हैं तब कुछ निवेशक ऐसे होते हैं जिन्हें लॉट अलॉट नहीं होता है. ऐसा क्यों होता है और अलॉटमेंट की प्रक्रिया क्या है?
जब भी कोई बड़ी कंपनी अपना आईपीओ जारी करती है तब बाजार में दिलचस्पी रखने वाले लोग एक्टिव हो जाते हैं. सभी उसके आईपीओ में निवेश कर उसका हिस्सेदार बनने की कोशिश में लग जाते हैं. कई बार निवेशक सफल होते हैं तो कभी-कभी उन्हें रिक्वेस्टेड लॉट अलॉट नहीं हो पाती है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर अलॉटमेंट की प्रक्रिया होती क्या है. आज हम इसी सवाल का जवाब बताएंगे कि आखिर आईपीओ जारी होने के बाद निवेशक को शेयर्स कैसे अलॉट होते हैं.
शेयर अलॉट होने की प्रक्रिया
- आईपीओ को जारी करना
कंपनी अपने आईपीओ की जानकारी साझा करती है. उसमें कितने शेयर्स जारी होने हैं, उनका लॉट साइज कितना है, एक लॉट में कितने शेयर्स हैं, उनकी कीमत कितनी है और बाकि के टर्म और कंडीशन्स लिखे होते हैं.
- पब्लिक बिडिंग के लिए आईपीओ जारी
निवेशक या कंपनी के वर्तमान शेयरहोल्डर आईपीओ में निवेश कर सकते हैं. निवेशक को अपने ब्रोकरेज फर्म की मदद से एप्लिकेशन सबमिट करनी होती है और तय कीमत के अनुसार तय राशि का भुगतान करना होता है.
- बिंडिंग के बाद प्रक्रिया की शुरूआत
विंडो बंद होने के बाद कंपनी सभी निवेशकों के एप्लिकेशन को बारीकी से चेक करती है. आईपीओ के जरिए मांगे गए अलॉटमेंट लॉट को जांचती है. कंपनी सभी निवेशक की पात्रता भी देखती है. गलत तरीके के बिडिंग्स को सिस्टम अयोग्य करार देती है. गलत तरीके यानी वो बिडिंग्स जिसमें निवेशक का पैन नंबर या डीमैट अकाउंट नंबर गलत होता है या निवेशक ने जो जानकारी दी है उसमें गलती हो. सभी पहलूओं को देखने के बाद कंपनी उस निवेशक को लॉट की उपलब्धता के आधार पर शेयर्स अलॉट करती है.
- बिडिंग के बाद अलॉट नहीं होना
कई ऐसी कंपनियां हैं जिनके आईपीओ ओवरसब्सक्राइब हो जाते हैं. ओवरसब्सक्राइब यानी जारी आईपीओ से ज्यादा बिडिंग. ऐसा कई वजहों से होता है. कंपनी का आईपो रेट कम हो, कंपनी के फाइनेंसेस मजबूत हो या कंपनी का नाम बड़ा हो. ऐसे कुछ मामलों में आईपीओ ओवरसब्सक्राइब हो जाता है.
- ओवरसब्सक्राइब होने पर कैसे होता है अलॉटमेंट
जब किसी कंपनी का आईपीओ ओवरसब्सक्राइब हो जाता है तब मुमकिन है कि कई निवेशकों को लॉट अलॉट नहीं होते हों. दूसरी ओर कुछ निवेशकों को लॉट अलॉट तो होती है लेकिन अप्लाई किये गए लॉट की तुलना में कम होती है. ऐसा कम्प्यूटर एल्गोरिदम के कारण होता है. चूंकि पक्षतापूर्ण नहीं लगे, इसीलिए कम्प्यूटर रैंडमली किसी भी निवेशक का चुनाव कर लेता है और अप्लाई किए गए लाट्स से रैंडम अलॉटमेंट हो जाता है. वहीं कम ओवरसब्सक्राइब होेने वाले आईपीओ में न्यूनतम 1 लॉट सभी निवेशकों को अलॉट होता है.
क्या होता है लॉट?
कंपनी कभी भी शेयर्स सीधे नहीं जारी करती है. कंपनी जब आईपीओ जारी करती तब अपने शेयर्स को लॉट में रखती है. यहां पर लॉट को एक बॉक्स की तरह समझ सकते हैं. सभी बॉक्स में समान शेयर होते हैं. कंपनी दर कंपनी यह बाक्स या लॉट साइज भिन्न हो सकते हैं.
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