ब्याज दर से लेकर डिफॉल्ट तक… डेट फंड में इन 3 जगहों पर होता है सबसे ज्यादा रिस्क, एक्सपर्ट से समझें हर पहलू

डेट फंड में निवेश को अक्सर सुरक्षित माना जाता है, लेकिन इसमें ब्याज दर जोखिम, क्रेडिट जोखिम और कॉन्सन्ट्रेशन जोखिम जैसे बड़े खतरे छिपे होते हैं. सही फंड चुनने, पोर्टफोलियो की निगरानी, रेटिंग देखने और ऊंचे रिटर्न के पीछे न भागने जैसी सावधानियां निवेशक को बड़े नुकसान से बचा सकती हैं.

Mutual Fund Image Credit: FreePik

डेट फंड में निवेश को आमतौर पर आसान माना जाता है, लेकिन वास्तव में यह इतना सरल नहीं है. डेट फंड में निवेश करना काफी जटिल है और उतना ही जोखिम भरा भी हो सकता है. इस लेख में मैं डेट फंड में निवेश से जुड़े विभिन्न प्रकार के जोखिमों और निवेश करते समय बरती जाने वाली सावधानियों पर चर्चा करूंगा.

डेट म्यूचुअल फंड से जुड़े प्रमुख जोखिम

किसी भी निवेश में कुछ न कुछ जोखिम होता ही है. कोई भी निवेश पूरी तरह सुरक्षित नहीं होता. जैसे, अगर आप जोखिम से बचने के लिए पैसा घर पर ही रख लेते हैं, तो महंगाई उस पैसे की कीमत घटा देती है. इसी तरह अगर आप बहुत सुरक्षित प्रोडक्ट में निवेश करते हैं, तो “महंगाई और टैक्स” दोनों आपके रिटर्न को कम कर देते हैं. डेट फंड में निवेश करते समय मुख्य रूप से तीन तरह के जोखिम सामने आते हैं.

a) ब्याज दर जोखिम: ब्याज दरें अपने चक्र के अनुसार ऊपर-नीचे होती रहती हैं. जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो पहले से किए गए निवेशों की यील्ड कम हो जाती है. इससे आधारभूत सिक्योरिटी की कीमत गिरती है और स्कीम का NAV भी नीचे आता है. इसके उलट, जब ब्याज दरें घटती हैं, तो सिक्योरिटी की कीमत और NAV दोनों बढ़ते हैं. NAV में कितना बदलाव होगा, यह उस डेट फंड की औसत मैच्योरिटी पर निर्भर करता है. औसत मैच्योरिटी जितनी ज्यादा होगी, उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा. अगर आपका निवेश समय एक साल का है, लेकिन आप लंबी मैच्योरिटी वाले इनकम फंड में निवेश कर देते हैं, तो ब्याज दरों में थोड़ी सी बढ़ोतरी भी आपके रिटर्न को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है और कभी-कभी नुकसान भी हो सकता है. क्योंकि ब्याज दरों की दिशा समझना आम निवेशक के लिए मुश्किल होता है, इसलिए बेहतर है कि कम औसत मैच्योरिटी वाले फंड ही चुनें, जब तक कि आपका लक्ष्य अवधि फंड की मैच्योरिटी से बिल्कुल मेल न खाती हो.

b) क्रेडिट जोखिम /डिफॉल्ट जोखिम: हाल तक आम निवेशक डेट फंड में ब्याज दर जोखिम के अलावा किसी और बड़े जोखिम की कल्पना भी नहीं करते थे. लेकिन हाल की घटनाओं ने यह धारणा बदल दी है. यह जोखिम तब पैदा हुआ जब कई कंपनियां अपने कर्ज की किश्तें या मैच्योरिटी पेमेंट चुकाने में असफल रहीं. इसी को क्रेडिट या डिफॉल्ट जोखिम कहा जाता है. ब्याज दर जोखिम की तुलना में यह जोखिम अधिक गंभीर और कई बार अपरिवर्तनीय होता है, यानी नुकसान की भरपाई मुश्किल हो जाती है. गिल्ट फंड में यह जोखिम नहीं होता. लिक्विड फंड में यह बहुत कम होता है. लेकिन क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड, डायनामिक बॉन्ड फंड और इनकम फंड जैसे डेट फंड में यह जोखिम काफी अधिक होता है.

c) कॉन्सन्ट्रेशन जोखिम: किसी भी कंपनी की कितनी भी अच्छी प्रतिष्ठा हो, लेकिन अगर फंड हाउस कुछ ही कंपनियों में अधिक राशि निवेश करता है, तो उनमें से किसी एक के डिफॉल्ट करने पर आपके निवेश का बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए डूब सकता है. इसलिए निवेश से पहले यह जरूर देखें कि कहीं फंड का पैसा कुछ ही कंपनियों में तो केंद्रित नहीं है.

डेट स्कीम चुनते समय ध्यान रखने योग्य बातें

डेट फंड में निवेश करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

a) अपनी वित्तीय जरूरत और जोखिम प्रोफाइल के अनुसार स्कीम चुनें: जैसा कि ऊपर समझाया गया, आपकी निवेश अवधि फंड की औसत मैच्योरिटी से मेल खानी चाहिए. नहीं तो ब्याज दरों के बदलाव से जोखिम पैदा होगा. अगर आपका लक्ष्य मात्र छह महीने दूर है, तो इनकम फंड में निवेश करना गलत होगा. इसलिए अपनी आवश्यकता, जोखिम क्षमता और लक्ष्य के लचीलापन को देखते हुए डेट स्कीम का चुनाव करें.

b) पोर्टफोलियो की संरचना जानें और लगातार निगरानी रखें: कॉन्सन्ट्रेशन जोखिम से बचने के लिए निवेश से पहले फंड के पोर्टफोलियो को देखें. साथ ही निवेश करने के बाद भी इसकी नियमित निगरानी करें.

c) इंस्ट्रूमेंट की रेटिंग देखें: आपको यह देखना चाहिए कि फंड किन सिक्योरिटीज में निवेश कर रहा है और उनकी रेटिंग क्या है. बेहतर है कि AAA या AA रेटेड सिक्योरिटीज वाले फंड में निवेश किया जाए. अगर आपने यह भी सुनिश्चित कर लिया कि किसी एक कंपनी में अत्यधिक निवेश नहीं है, तो डिफॉल्ट होने पर नुकसान सीमित रहेगा.

d) ऊंचे रिटर्न के पीछे न भागें: अधिक रिटर्न हमेशा अधिक जोखिम के साथ आते हैं. डेट फंड से बहुत ऊंची उम्मीदें रखना ठीक नहीं है. रिटर्न को लेकर वास्तविक अपेक्षाएं रखें.

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e) पिछले रिटर्न देखकर निर्णय न लें: डेट फंड के पिछले रिटर्न भविष्य के रिटर्न का संकेत नहीं होते. पिछले साल जो रिटर्न मिले, वे शायद उस समय की ब्याज दरों की स्थिति के कारण मिले हों, जो आज बदल चुकी है. इसलिए पहले यह समझें कि फंड ने अतीत में अच्छा प्रदर्शन क्यों किया था, क्या वे परिस्थितियां आज भी मौजूद हैं, और क्या आगे भी रहने वाली हैं, इन्हीं आधारों पर निवेश निर्णय लें.

लेखक एक टैक्स और इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं. आप उन्हें jainbalwant@gmail.com पर या ट्विटर हैंडल @jainbalwant पर संपर्क कर सकते हैं.