House Price Index में 2.2% की वार्षिक बढ़त, RBI ने जारी किया Q2 डाटा, जानें क्या होगा इसका असर?
RBI के ताजा आंकड़ों के मुताबिक ऑल इंडिया हाउस प्राइस इंडेक्स (HPI) ने Q2 2025-26 में सालाना आधार पर सिर्फ 2.2% की बढ़त दर्ज की, जो पिछले साल के 7% से काफी कम है. तिमाही आधार पर HPI 0.6% गिरा है. नागपुर, गाजियाबाद और चंडीगढ़ जैसे शहरों ने इंडेक्स को सपोर्ट किया जबकि कोलकाता, चेन्नई और लखनऊ से दबाव आया.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की तरफ से जारी Q2 2025-26 के आंकड़ों के मुताबिक ऑल इंडिया हाउस प्राइस इंडेक्स (HPI) में सिर्फ 2.2% की सालाना बढ़त दर्ज हुई है. पिछले साल इसी अवधि में यह ग्रोथ 7% थी. नए बेस ईयर 2022-23 के साथ जारी इस इंडेक्स में धीमी रफ्तार हाउसिंग मार्केट में स्थिरता और मांग की मिलीजुली तस्वीर दिखाती है.
नए बेस ईयर 2022-23 पर इंडेक्स जारी
RBI ने HPI की गणना ट्रांजैक्शन-लेवल डाटा के आधार पर की है जो 18 बड़े शहरों से लिया जाता है. इससे पहले बेस ईयर 2010-11 था, जिसे अब अपडेट कर दिया गया है, ताकि असल मार्केट ट्रेंड और कीमतों का रियलिस्टिक प्रतिनिधित्व मिले.
इन शहरों ने दिया पॉजिटिव पुश
RBI के मुताबिक नागपुर, गाजियाबाद और चंडीगढ़ जैसे शहरों ने सालाना आधार पर HPI की बढ़त में अहम योगदान दिया. इन शहरों में हाउसिंग डिमांड और प्रोजेक्ट ट्रांजैक्शंस में स्थिरता ने इंडेक्स को सपोर्ट किया.
तिमाही आधार पर 0.6% की गिरावट
Q1 की तुलना में HPI की वैल्यू 113.4 से घटकर 112.7 पर आ गई है. तिमाही आधार पर यह 0.6% की गिरावट है, जिसमें कोलकाता, चेन्नई और लखनऊ की सबसे बड़ी हिस्सेदारी रही. इन शहरों में रेसिडेंशियल प्राइसिंग पर प्रेशर देखने को मिला है.
किन 18 शहरों से मिलता है डेटा
HPI के लिए डेटा मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु, लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, कानपुर, कोच्चि, हैदराबाद, तिरुवनंतपुरम, पुणे, गाजियाबाद, ठाणे, गौतम बुद्ध नगर, चंडीगढ़ और नागपुर से लिया जाता है.
क्या होगा असर?
All-India HPI की ग्रोथ 7% से गिरकर 2.2% रह जाना आम आदमी के लिए राहत का संकेत है, क्योंकि इसका मतलब है कि घरों की कीमतें अब पहले जैसी तेज़ रफ्तार से नहीं बढ़ रहीं. कई शहरों में तो तिमाही आधार पर दाम नीचे भी आए हैं, जिससे पहली बार घर खरीदने वालों पर दबाव कम होगा.
प्रॉपर्टी निवेशकों के लिए रिटर्न भले धीमे हों, लेकिन आम खरीदार के नजरिए से यह बाजार का ठंडा पड़ना फायदेमंद है. कीमतें स्थिर रहने से EMI की प्लानिंग आसान होती है और घर खरीदने के फैसले में हड़बड़ी की जरूरत नहीं पड़ती.
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