F&O ट्रेडर्स के लिए अलर्ट: 31 दिसंबर से बदलेंगे निफ्टी, बैंक निफ्टी समेत चार इंडेक्स के लॉट साइज, देखें लिस्ट

F&O ट्रेडर्स के लिए जरूरी खबर है. NSE 31 दिसंबर से निफ्टी 50, बैंक निफ्टी, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज और निफ्टी मिडकैप सेलेक्ट के लॉट साइज घटाने जा रहा है. नए लॉट जनवरी 2026 सीरीज से लागू होंगे, जिससे मार्जिन और पोजीशन साइज पर असर पड़ेगा.

लॉट साइज Image Credit: canva

डेरिवेटिव मार्केट में कारोबार करने वाले ट्रेडर्स के लिए बड़ी खबर है. दिसंबर सीरीज की मंथली F&O एक्सपायरी के साथ ही National Stock Exchange (NSE) अपने प्रमुख इंडेक्स डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के लॉट साइज में बदलाव लागू करने जा रहा है. ये नए लॉट साइज 31 दिसंबर से शुरू होने वाले अगले ट्रेडिंग साइकिल से प्रभावी होंगे. आइये जानते है कि नए लॉट साइज कैसे होंगे.

क्या बदलाव हुआ

एनएसई ने अक्टूबर में ही लॉट साइज में संशोधन का ऐलान कर दिया था, जिसे दिसंबर 2025 की एक्सपायरी के बाद लागू किया जाना था. एक्सचेंज के सर्कुलर के मुताबिक, निफ्टी 50, निफ्टी बैंक, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज और निफ्टी मिडकैप सेलेक्ट के लॉट साइज घटाए जा रहे हैं. अब निफ्टी 50 का लॉट साइज 75 से घटकर 65, निफ्टी बैंक का 35 से 30, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज का 65 से 60 और निफ्टी मिडकैप सेलेक्ट का 140 से घटकर 120 हो जाएगा. हालांकि, निफ्टी नेक्स्ट 50 के लॉट साइज में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

क्रम संख्याइंडेक्ससिंबलवर्तमान लॉट साइजसंशोधित लॉट साइज
1Nifty 50NIFTY7565
2Nifty BankBANKNIFTY3530
3Nifty Financial ServicesFINNIFTY6560
4Nifty Midcap SelectMIDCPNIFTY140120

एनएसई ने स्पष्ट किया था कि 30 दिसंबर 2025 की एक्सपायरी तक सभी वीकली और मंथली कॉन्ट्रैक्ट्स मौजूदा लॉट साइज पर ही ट्रेड होंगे. इसके बाद जनवरी 2026 सीरीज से संशोधित लॉट साइज लागू होंगे. वीकली कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए पुराने लॉट साइज की आखिरी एक्सपायरी 23 दिसंबर 2025 थी, जबकि नए लॉट साइज के साथ पहली वीकली एक्सपायरी 6 जनवरी 2026 को होगी. वहीं, मंथली कॉन्ट्रैक्ट्स में नया स्ट्रक्चर 27 जनवरी 2026 की एक्सपायरी से दिखेगा.

इंडेक्सटाइपपहली संशोधित एक्सपायरी डेट
NIFTYवीकली6 जनवरी 2026
NIFTYमंथली27 जनवरी 2026
BANKNIFTYमंथली27 जनवरी 2026
FINNIFTYमंथली27 जनवरी 2026
MIDCPNIFTYमंथली27 जनवरी 2026

क्यों किया गया बदलाव

एनएसई का कहना है कि लॉट साइज में बदलाव का मकसद कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू को एक तय दायरे में रखना, डेरिवेटिव्स को ज्यादा किफायती और स्टैंडर्ड बनाना है. इससे जहां ट्रेडर्स को अपनी पोजीशन साइज और मार्जिन में बदलाव करना होगा, वहीं रिटेल निवेशकों के लिए F&O कॉन्ट्रैक्ट्स में एंट्री आसान हो सकती है, क्योंकि कम कैपिटल की जरूरत पड़ेगी.

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