दिवाली की रौशनी से बाजार की चमक तक, मुहूर्त ट्रेडिंग की दशकों पुरानी यात्रा; जानिए क्यों खास है ये परंपरा
मुहूर्त ट्रेडिंग की यात्रा 1950 के दशक की छोटी-सी शुरुआत से लेकर 2025 की डिजिटल दुनिया तक पहुंची है. पहले यह कुछ ब्रोकरों की परंपरा थी, लेकिन आज यह लाखों निवेशकों का उत्सव है. यह सत्र हमें याद दिलाता है कि बाजार में सिर्फ पैसे ही नहीं, बल्कि भावनाएं और आस्था भी मायने रखती हैं.
Muhurat Trading: दिवाली का त्योहार आते ही घरों में दीये जलते हैं. उसी तरह, दलाल स्ट्रीट पर भी ट्रेडिंग स्क्रीन की रौशनी चमकती है. एक खास घंटे के लिए शेयर बाजार एक पवित्र जगह बन जाता है, जहां आस्था, व्यापार और समृद्धि एक साथ मिलते हैं. इसे कहते हैं मुहूर्त ट्रेडिंग. यह भारतीय निवेशकों के लिए सिर्फ एक ट्रेडिंग सत्र नहीं, बल्कि एक खास परंपरा है. आइए, जानते हैं कि मुहूर्त ट्रेडिंग क्या है और यह समय के साथ कैसे बदली.
आस्था से जन्मी परंपरा
चाहे दीये जलें या स्क्रीन चमके, मुहूर्त ट्रेडिंग का जादू हर साल हमें एक नई उम्मीद देता है. यह भारत की संस्कृति और आधुनिक व्यापार का सुंदर मेल है. मुहूर्त ट्रेडिंग की शुरुआत बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के शुरुआती दिनों से हुई. उस समय कंप्यूटर या ऑनलाइन ट्रेडिंग नहीं थी. 1950 और 1960 के दशक में BSE के फ्लोर पर ब्रोकर पारंपरिक कपड़ों में इकट्ठा होते थे. वे लक्ष्मी पूजा करते और फिर ट्रेडिंग शुरू करते. उनका विश्वास था कि जैसे किसान फसल बोने से पहले आशीर्वाद मांगते हैं, वैसे ही व्यापारी धन की देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद मांगते हैं. मुहूर्त के समय की गई पहली खरीद-बिक्री को बहुत शुभ माना जाता था. यह धन को अपने पास बुलाने का तरीका था.
1980-1990 बदलाव का दौर
1980 के दशक तक भारत का शेयर बाजार बढ़ने लगा था. मुहूर्त ट्रेडिंग का उत्साह भी बढ़ रहा था. यह सत्र अब सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि एक उत्सव बन गया था. BSE के फ्लोर पर मिठाइयां बंटती थीं, दीये जलते थे और ब्रोकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते थे. 1990 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग शुरू हुई और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) बना. इसके साथ ही मुहूर्त ट्रेडिंग भी डिजिटल हो गई. पहले जहां ब्रोकर चिल्लाकर सौदे करते थे, अब ट्रेडिंग टर्मिनल्स पर होने लगी. लेकिन उत्साह वही था. यह अब सिर्फ कुछ लोगों का जमावड़ा नहीं रहा, बल्कि पूरे देश के निवेशकों के लिए एक बड़ा मौका बन गया. हर कोई, जिसके पास ट्रेडिंग खाता था, इसमें हिस्सा ले सकता था.
आम लोग भी खास मौके की तरह देखने लगे
अब निवेश सिर्फ ब्रोकरों या बड़े व्यापारी परिवारों तक सीमित नहीं रहा. आम लोग भी मुहूर्त ट्रेडिंग को एक खास मौके की तरह देखने लगे. कई लोगों के लिए इस दिन एक भी शेयर खरीदना दिवाली की परंपरा बन गया. ज्यादातर समय बाजार भी इस उत्साह का जवाब देता था. मुहूर्त ट्रेडिंग के दिन बाजार अक्सर पॉजिटिव नोट पर बंद होता था. लोग इसे शुभ संकेत मानते थे.
इस वजह से मुहूर्त ट्रेडिंग हो गई और लोकप्रिय
साल 2010 के दशक में ऑनलाइन और मोबाइल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स की वजह से मुहूर्त ट्रेडिंग और लोकप्रिय हो गई. अब लोग दलाल स्ट्रीट से मीलों दूर बैठकर भी एक बटन दबाकर इसमें हिस्सा ले सकते थे. ब्रोकरेज फर्म्स ने “दिवाली पिक्स” और “संवत आउटलुक” शुरू किए. ये निवेशकों को बताते थे कि आने वाले साल में कौन से शेयर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. इस तरह, मुहूर्त ट्रेडिंग अब और बड़े पैमाने पर होने लगी.
आस्था और टेक्नोलॉजी का मेल
अब 2025 में मुहूर्त ट्रेडिंग का रूप बहुत बदल गया है. अब घंटियां डिजिटल हैं, पूजा ऑनलाइन हो रही है और ट्रेडिंग में कंप्यूटर प्रोग्राम्स (एल्गोरिदम) का इस्तेमाल होता है. लेकिन भावना आज भी वही है. आज के समय में, जब ग्लोबल मार्केट्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ट्रेडिंग को चला रहे हैं, मुहूर्त ट्रेडिंग हमें याद दिलाती है कि बाजार सिर्फ नंबरों का खेल नहीं है. यह भावनाओं, विश्वास और परंपराओं का भी हिस्सा है.
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