अपने घर से ज्यादा भारत में इन विदेशी कंपनियों की हैसियत, न्यू इंडिया के भरोसे भर रहा खजाना
India Listed Subsidiaries vs Parents MNCs: किसी ऐसे वैश्विक ब्रांड को लीजिए जिसे आप जानते हों. अब उसकी भारत में लिस्टेड सब्सिडियरी को उसकी विदेशी पैरेंट कंपनी के बगल में रख दीजिए. ज्यादातर मामलों में भारतीय यूनिट की वैल्यूएशन अधिक नजर आएगा. पैरेंट कंपनी यूनाइटेड किंगडम, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, जापान, अमेरिका और नीदरलैंड में फैली हुई हैं, लेकिन सिर्फ जियोग्रॉफिकल स्थिति ही इस अंतर को स्पष्ट नहीं करती.

India Listed Subsidiaries vs Parents MNCs: एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया के आईपीओ वैल्यूएशन ने एक बार फिर उस आम ट्रेंड को उजागर कर दिया है, जहां किसी मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन (MNC) की भारतीय सब्सिडियरी कंपनी का वैल्यूएशन उसकी पैरेंट कंपनी की तुलना में अधिक है. किसी ऐसे वैश्विक ब्रांड को लीजिए जिसे आप जानते हों. अब उसकी भारत में लिस्टेड सब्सिडियरी को उसकी विदेशी पैरेंट कंपनी के बगल में रख दीजिए. ज्यादातर मामलों में भारतीय यूनिट की वैल्यूएशन अधिक नजर आएगा. ये नतीजा सिर्फ और सिर्फ इसलिए नजर आएगा, क्योंकि भारतीय निवेशक हर एक रुपये के मुनाफे और आगे आने वाली ग्रोथ के लिए अधिक कीमत चुकाने को तैयार हैं. पैरेंट कंपनी यूनाइटेड किंगडम, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, जापान, अमेरिका और नीदरलैंड में फैली हुई हैं, लेकिन सिर्फ जियोग्रॉफिकल स्थिति ही इस अंतर को स्पष्ट नहीं करती.
एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया की वैल्यूएशन
बात एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया से शुरू हुई थी, तो पहले इसकी वैल्यूएशन पर एक नजर डाल लेते हैं. एलजी की भारतीय सब्सिडियरी ने वित्त वर्ष 2025 में 24,367 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल किया था. कंपनी ऑफर फॉर सेल (OFS) के जरिए 11,607 करोड़ रुपये जुटाने के लिए लगभग 38 के प्राइस टू अर्निंग (P/E) की मांग कर रही है. इसकी कोरियाई पैरेंट कंपनी ने 2024 में लगभग 82,500 करोड़ रुपये के बराबर रेवेन्यू की जानकारी दी थी. यानी ये लगभग 14 के P/E पर कारोबार कर रही है. इसके अलावा, भारतीय ब्रॉन्च का मार्केट कैप 77,380 करोड़ रुपये है, जो पैरेंट कंपनी के 82,492 करोड़ के मार्केट कैप के करीब है.
ये तो रही एलजी की बात, जिसका पब्लिक ऑफर दलाल स्ट्रीट पर 7 अक्टूबर से खुल चुका है.
पैरेंट कंपनियों से अधिक सब्सिडियरी का P/E
अब ऐसी कुछ विदेशी कंपनियों पर नजर डाल लेते हैं, जिनकी भारतीय सब्सिडियरी का P/E उनकी पैरेंट कंपिनियों से अधिक है.
मार्केट कैप शेयर बाजार में कंपनी का साइज है. P/E वह कीमत है जो निवेशक पिछले साल के एक रुपये के मुनाफे के लिए चुकाते हैं. अधिक P/E का मतलब आमतौर पर यह होता है कि बाजार को ज्यादा ग्रोथ की उम्मीद है या व्यवसाय में बेहतर क्वालिटी और स्टैबिलिटी की उम्मीद है. इन दो बातों को ध्यान में रखते हुए, बाकी तस्वीर साफ हो जाती है.
भारतीय सब्सिडियरीज की MNCs का पीई
भारतीय लिस्टेड सब्सिडियरी | पैरेंट कंपनी | भारतीय सब्सिडियरी P/E (TTM) | पैरेंट कंपनी P/E (TTM) |
लिंडे इंडिया | लिंडे plc | 33.2 | 115 |
यूनाइटेड ब्रुअरीज | हेनेकेन N.V. | 20.5 | 85.9 |
सीमेंस इंडिया | सीमेंस AG | 24.4 | 75 |
नेस्ले इंडिया | नेस्ले S.A. | 18.7 | 72 |
पी&जी हाइजीन एंड हेल्थकेयर | प्रॉक्टर एंड गैम्बल Co. | 23.4 | 64.1 |
एबीबी इंडिया | एबीबी Ltd | 32.1 | 61.4 |
यूनाइटेड स्पिरिट्स | डियेजियो plc | 22.8 | 58.2 |
हिंदुस्तान यूनिलीवर | यूनिलीवर PLC | 22.4 | 55.2 |
कमिंस इंडिया | कमिंस Inc. | 19.3 | 49.8 |
जीएसके फार्मास्यूटिकल्स (इंडिया) | जीएसके plc | 19.7 | 47.6 |
एबॉट इंडिया | एबॉट लैबोरेटरीज़ | 16.7 | 43.6 |
कॉलगेट-पामोलिव (इंडिया) | कॉलगेट-पामोलिव Co. | 40.7 | 22 |
मारुति सुजुकी इंडिया | सुजुकी मोटर कॉर्प. | 33 | 12.4 |
मारुति सुजुकी इंडिया
मारुति सुजुकी इंडिया का वैल्यूएशन 57.73 अरब डॉलर है. जापान में सुजुकी मोटर का वैल्यूएशन 28.66 अरब डॉलर है. साइज के हिसाब से, भारतीय यूनिट, पैरेंट कंपनी से लगभग दोगुनी है. कमाई के मामले में भी, दोनों के बीच का अंतर बहुत अधिक है. मारुति पिछले साल के मुनाफे के 33 गुना पर कारोबार कर रही है. सुजुकी का मुनाफा 12.4 गुना है. जब सब्सिडियरी कंपनी पैरेंट कंपनी से बड़ी और अधिक महंगी हो, तो यह आपको बताता है कि भारतीय बाजार ‘सामान्य हेयारकी’ को उलट सकता है.
कंज्यूमर ब्रान्ड्स
कंज्यूमर ब्रॉन्ड्स इस तस्वीर को थोड़ा और आगे बढ़कर साफ करते हैं. भारत में हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) अपनी इनकम के 55.2 गुना पर कारोबार कर रही है, जबकि यूनाइटेड किंगडम में यूनिलीवर 22.4 गुना PE पर कारोबार कर रही है. HUL का आकार छोटा है, 66.55 अरब डॉलर जबकि 147.73 अरब डॉलर, जो पैरेंट कंपनी का लगभग 45 फीसदी है, फिर भी यह मल्टीपल बहुत अधिक है. नेस्ले इंडिया 72 का P/E गुना पर है जबकि स्विट्जरलैंड में नेस्ले 18.7 गुना पर है. भारतीय यूनिट की वैल्यूएशन 25.28 अरब डॉलर है, जबकि पैरेंट कंपनी की वैल्यू 228.22 अरब डॉलर है, जो मूल कंपनी का 11 फीसदी है.
कोलगेट-पामोलिव इंडिया का P/E 40.7 गुना है जबकि अमेरिकी पैरेंट कंपनी का 22.0 गुना है. पी एंड जी हाइजीन की वैल्यू 64.1 गुना है. कंपनियों के लेबल एक जैसे हैं, लेकिन बाजार में कीमतों में बहुत अंतर नजर आता है.
इंडस्ट्रियल कंपनियों का प्रीमियम
सीमेंस इंडिया का शेयर 75 गुना पर कारोबार कर रहा है, जबकि जर्मनी में सीमेंस एजी का शेयर 24.4 गुना पर है. भारतीय यूनिट का शेयर 12.43 अरब डॉलर पर है, जबकि स्विट्जरलैंड में एबीबी का शेयर 209.36 अरब डॉलर पर है, जो पैरेंट कंपनी का लगभग 6 फीसदी है. एबीबी इंडिया का शेयर 61.4 गुना पर है, जबकि स्विट्जरलैंड में एबीबी का शेयर 32.1 गुना पर है. भारतीय यूनिट का शेयर 12.36 अरब डॉलर पर है, जबकि स्विट्जरलैंड में एबीबी का शेयर 129.49 अरब डॉलर पर है, जो पैरेंट कंपनी का लगभग 10 फीसदी है.
लिंडे इंडिया के शेयर का वैल्यूएशन अलग है. इसका शेयर 115 गुना पर कारोबार कर रहा है, जबकि लिंडे पीएलसी का शेयर 33.2 गुना पर है, जिसका कारोबार आयरलैंड और अमेरिका में फैला हुआ है.
लिंडे इंडिया का शेयर 222.16 अरब डॉलर पर है, जो पैरेंट कंपनी का 2.7 फीसदी है, फिर भी इसके शेयर की कीमत कंपनी से कहीं अधिक है. कमिंस इंडिया भी इसी पैटर्न पर फिट बैठता है, जहां कमिंस इंक के लिए 49.8 गुना और 19.3 गुना है, जहां भारतीय यूनिट की वैल्यू 12.33 अरब डॉलर है, जबकि पैरेंट कंपनी का वैल्यूएशन 57.04 अरब डॉलर है, जो कि मूल कंपनी का 22 फीसदी है.
अल्कोहल और अन्य कंपनियां भी इसी ओर इशारा करती हैं
यूनाइटेड स्पिरिट्स का कारोबार 58.2 गुना पर है, जबकि यूनाइटेड किंगडम में डियाजियो का कारोबार 22.8 गुना पर है. भारतीय यूनिट पहले से ही पैरेंट कंपनी के साइज का लगभग 20 फीसदी है, यानी 53.25 अरब डॉलर के मुकाबले 10.64 अरब डॉलर. यूनाइटेड ब्रुअरीज का कारोबार 85.9 गुना पर है, जबकि नीदरलैंड में हेनेकेन का कारोबार 20.5 गुना पर है और भारतीय यूनिट का कारोबार 5.29 अरब डॉलर है, जबकि पैरेंट कंपनी का कारोबार 43.15 अरब डॉलर है, जो मूल कंपनी का 12 फीसदी है.
हेल्थ सर्विस में, एबॉट इंडिया का कारोबार 43.6 गुना पर है, जबकि अमेरिका में एबॉट लैबोरेटरीज का कारोबार 16.7 गुना पर है, हालांकि साइज के हिसाब से भारतीय यूनिट मूल कंपनी का केवल 3 फीसदी है. जीएसके फार्मा इंडिया का कारोबार यूनाइटेड किंगडम में जीएसके के 19.7 गुना के मुकाबले 47.6 गुना पर है और भारतीय यूनिट, पैरेंट कंपनी का 6 फीसदी है.
भारतीय सहायक कंपनियां बनाम पैरेंट कंपनियां: मार्केट कैप (अरब डॉलर में)
लिस्टेड भारतीय सब्सिडियरी कंपनी | पैरेंट कंपनी | मार्केट कैप (अरब डॉलर में) सब्सिडियरी | मार्केट कैप (अरब डॉलर में) पैरेंट कंपनी | सब्सिडियरी बनाम पैरेंट कंपनी मार्केट कैप (%) |
मारुति सुजुकी इंडिया | सुजुकी मोटर कॉर्प. | 57.73 | 28.66 | 201.43% |
हिंदुस्तान यूनिलीवर | यूनिलीवर पीएलसी | 66.55 | 147.73 | 45.05% |
कमिंस इंडिया | कमिंस इंक. | 12.33 | 57.04 | 21.62% |
यूनाइटेड स्पिरिट्स | डियाजियो पीएलसी | 10.64 | 53.25 | 19.98% |
यूनाइटेड ब्रुअरीज | हेनेकेन एन.वी. | 5.29 | 43.15 | 12.26% |
नेस्ले इंडिया | नेस्ले एस.ए. | 25.28 | 228.22 | 11.08% |
कोलगेट-पामोलिव (इंडिया) | कोलगेट-पामोलिव कंपनी | 6.82 | 64.41 | 10.59% |
एबीबी इंडिया | एबीबी लिमिटेड | 12.36 | 129.49 | 9.55% |
जीएसके फार्मास्यूटिकल्स (इंडिया) | जीएसके पीएलसी | 5.22 | 81.26 | 6.42% |
सीमेंस इंडिया | सीमेंस एजी | 12.43 | 209.36 | 5.94% |
एबॉट इंडिया | एबॉट लेबोरेट्रीज | 7.13 | 232.02 | 3.07% |
लिंडे इंडिया | लिंडे पीएलसी | 6.07 | 222.16 | 2.73% |
पी एंड जी हाइजीन एंड हेल्थ केयर | प्रॉक्टर एंड गैंबल कंपनी | 4.99 | 356.1 | 1.40% |
ऐसा क्यों है और इसका असर क्या होगा?
अब सवाल है कि पैरेंट कंपनियों के मुकाबले, भारत में लिस्टेड सब्सिडियरी कंपनियों का प्रीमियम अधिक क्यों है और इससे क्या बदल सकता है.
ग्रोथ इसका पहला उत्तर है. दफिनप्रिंट के अनुसार, ज्यादा परिवार शेयर मार्केट में प्रवेश कर रहे हैं और अलग-अलग कैटेगरीज में ट्रेडिंग कर रहे हैं. इनमें से कई सहायक कंपनियों का फ्री फ्लोट सीमित है, इसलिए जब हाई-क्वालिटी वाले शेयर खरीदना मुश्किल होता है, तो कीमतें बढ़ जाती हैं. व्यावसायिक मिश्रण इसमें मदद करता है. भारतीय ब्रॉन्च वैश्विक औसत की तुलना में तेज, हाई-मार्जिन वाले सेक्टर्स की ओर झुकी हुई हैं.
‘भरोसा’ भी एक बड़ा फैक्टर है. निवेशक इन यूनिट्स को स्थानीय एग्जीक्यूशन और गवर्नेंस के साथ ग्लोबल ब्रांड्स के मालिक बनने का एक आसान तरीका मानते हैं, जिससे वे सहज हैं. यह अंतर कम हो सकता है अरग पैरेंट कंपनियां अधिक शेयर बेचती हैं या पूंजी जुटाती हैं, सप्लाई बढ़ाती हैं या अगर कैटेगरी ग्रोथ स्लो हो जाता है और प्रतिस्पर्धा तेज आ जाती है. करेंसी की चाल, इनपुट लागत और मूल्य निर्धारण नियम भी आय और अपेक्षाओं को तेजी से बदल सकते हैं. इनमें से कोई भी लॉन्ग टर्म स्टोरी को मिटा नहीं सकता. यह हमें बस याद दिलाता है कि वैल्यूएशन एक झलक है.
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