सरकारी बैंकों का मर्जर बैंकिंग स्टॉक्स के लिए साबित होगा वरदान? इतिहास है गवाह… मिल रहे जोरदार रैली के संकेत

PSB Merger: ऐतिहासिक समानताएं भले ही समान न हों, लेकिन बाजारों में अक्सर उपयोगी मार्गदर्शक का काम करती हैं. यही वजह है कि कई निवेशक भारत के बैंकिंग सेक्टर में हाल ही में सुर्खियां बटोरने वाले कदमों पर कड़ी नजर रख रहे हैं. भारत का बैंकिंग सेक्टर अचानक प्रमुख ग्लोबल निवेशकों की विश लिस्ट में सबसे ऊपर आ गया है.

भारतीय बैंकिंग सेक्टर में बड़े बदलाव की तैयारी (सांकेतिक तस्वीर) Image Credit: (AI)

PSB Merger: भारत के शानदार और बेलगाम राजनीतिक विमर्श में उनका नाम अक्सर आता है, फिर भी यह भूलना आसान है कि जॉर्ज सोरोस सर्वकालिक महानतम निवेशकों में से एक हैं. उनका प्रमुख मल्टी-बिलियन डॉलर का हेज फंड, क्वांटम कभी दुनिया का सबसे बड़ा फंड था. साल 1970 के दशक से शुरू होकर इस फंड ने तीन दशकों तक लगभग 30 फीसदी का कंपाउंडिंग एनुअल रिटर्न दिया और वॉरेन बफेट जैसे वॉल स्ट्रीट के दिग्गजों से भी बेहतर प्रदर्शन किया.

अपनी बेस्टसेलिंग किताब ‘द अल्केमी ऑफ फाइनेंस’ में सोरोस निवेश से जुड़े एक ऐसे प्रसंग का वर्णन करते हैं जो उनकी मानसिकता और रणनीतिक सूझबूझ की झलक पेश करता है.

निवेशकों की पसंद नहीं थे बैंकिंग स्टॉक

1970 के दशक की शुरुआत में, बैंकिंग स्टॉक निवेशकों के बीच सबसे कम पसंदीदा थे. बैंकों को घिसे-पिटे, पुराने जमाने के संस्थानों के रूप में देखा जाता था, जो अभी भी महामंदी की दर्दनाक विफलताओं से उबर नहीं पाए थे. नियम कठोर थे और उद्योग में शायद ही कोई इनोवेशन या नई सोच थी.

लेकिन शांत जल के नीचे, सोरोस ने अवसरों के भंडार देखे. बिजनेस स्कूलों से पढ़े कुछ नए बैंकर वर्कफोर्स में प्रवेश कर रहे थे और इस सेक्टर में नई एनर्जी भरने की कोशिश कर रहे थे. बैंकिंग उद्योग में विलय और अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो रही थी, और नियामकीय हवाएं भी इसके पक्ष में बहने लगी थीं, जिसके नतीजे के रूप में कुछ नए प्रोडक्ट्स लॉन्च हुए.

यह समझते हुए कि यह सेक्टर परिवर्तन के कगार पर है, सोरोस ने लोहा गरम होने पर ही वार करने का फैसला किया और कुछ आक्रामक रूप से प्रबंधित बैंकों में निवेश किया. यह दांव अच्छा साबित हुआ और उन्होंने कम समय में ही अपने बैंक शेयरों के गुलदस्ते पर लगभग 50 फीसदी की कमाई कर ली.

सुर्खियों से दूर असली ड्रामा

ऐतिहासिक समानताएं भले ही समान न हों, लेकिन बाजारों में अक्सर उपयोगी मार्गदर्शक का काम करती हैं. यही वजह है कि कई निवेशक भारत के बैंकिंग सेक्टर में हाल ही में सुर्खियां बटोरने वाले कदमों पर कड़ी नजर रख रहे हैं. लेकिन जहां एक ओर सितारे अपनी चमक बिखेर रहे हैं, वहीं असली ड्रामा सुर्खियों से दूर कहीं और हो सकता है.

मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का बैंकिंग सेक्टर अचानक प्रमुख ग्लोबल निवेशकों की विश लिस्ट में सबसे ऊपर आ गया है. यह विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) के फ्लो अस्थिर ‘हॉट मनी’ नहीं है, बल्कि स्थिर लॉन्ग टर्म कैपिटल है, जिसमें विदेशी निवेशक कंट्रोलिंग हिस्सेदारी ले रहे हैं और बोर्ड में सीटें हासिल कर रहे हैं, जो इस सेक्टर की लॉन्ग टर्म क्षमता में स्मार्ट मनी के विश्वास का संकेत देता है.

एमिरेट्स एनबीडी और आरबीएल बैंक

पिछले महीने दुबई के सबसे बड़े बैंकों में से एक, एमिरेट्स एनबीडी ने 26,850 करोड़ रुपये (लगभग 3 अरब डॉलर) में आरबीएल बैंक में मेजॉरिटी हिस्सेदारी हासिल करने की घोषणा की, जो भारतीय बैंकिंग सेक्टर में अब तक का सबसे बड़ा फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) है, साथ ही किसी लिस्टेड कंपनी द्वारा प्रिफरेंशियल इश्यू के जरिए सबसे बड़ी फंड रेजिंग भी है. यह डील जापान की फाइनेंशियल सर्विस दिग्गज सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्प द्वारा यस बैंक में 16,333 करोड़ रुपये में दो किस्तों में 24.2 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण पूरा करने के कुछ ही हफ्ते बाद हुआ है.

ब्लैकस्टोन और फेडरल बैंक

अक्टूबर में दुनिया की सबसे बड़े अल्टरनेटिव एसेट्स मैनेजर ब्लैकस्टोन ने कहा था कि वह फेडरल बैंक में 9.9 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 6,196 करोड़ रुपये ($705 मिलियन) का निवेश करेगा. इस तरह वह इसका सबसे बड़ा शेयरधारक बन जाएगा. अप्रैल में वारबर्ग पिंकस और सॉवरेन वेल्थ फंड अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (ADIA) ने IDFC फर्स्ट बैंक में संयुक्त रूप से 15 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 7,500 करोड़ रुपये ($877 मिलियन) तक का निवेश करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.

क्या बदल रहा है?

तमाम डील पर नजर डालें, तो आपको ये फ्लैग सामान्य नहीं लगेंगे, क्योंकि विदेशी बैंकों द्वारा भारतीय लेंडर्स का अधिग्रहण करने के बहुत कम उदाहरण हैं. इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने नवंबर 2020 में सिंगापुर के सबसे बड़े बैंक DBS बैंक की स्थानीय यूनिट द्वारा संघर्षरत लक्ष्मी विलास बैंक के अधिग्रहण की अनुमति दी थी. 2018 में कनाडा के फेयरफैक्स की भारतीय ब्रॉन्च ने कैथोलिक सीरियन बैंक में मेजॉरिटी हिस्सेदारी हासिल की थी.

बैंकिंग में हाई एफडीआई से क्या बदलेगा?

जानकारों की मानें, तो व्यापक स्तर पर बैंकिंग में हाई एफडीआई फ्लो अर्थव्यवस्था के लिए एक फोर्स मल्टीपल के रूप में काम कर सकता है. यह बैंकों के कैपिटल बेस को गहरा कर सकता है, लिक्विडिटी में सुधार कर सकता है और मैन्युफैक्चरिंग, रेसिडेंशियल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर में तेजी से क्रेडिट ट्रांसमिशन से आसान बना सकता है. इसके अतिरिक्त ग्लोबल पार्टनरशिप बेस्ट प्रैक्टिस और रिस्क मैनेजमेंट में अधिक एफिशिएंसी ला सकती है. इससे भारतीय फाइनेंशियल सिस्टम की फ्लेक्सिबिलिटी और प्रतिस्पर्धात्मकता और बढ़ सकती है.

जहां भारत के एफडीआई नियम विदेशी निवेशकों को बैंकों में 74 फीसदी तक की हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति देते हैं, वहीं आरबीआई के नियम सिंगल इन्वेस्टर द्वारा स्वामित्व को 15 फीसदी तक सीमित करते हैं. नियामक ने कुछ मामलों में, उदाहरण के लिए रीस्ट्रक्चरिंग या रणनीतिक निवेश से जुड़े मामलों में, इन नियमों में ढील दी है, लेकिन वोटिंग अधिकार 26 फीसदी पर सीमित हैं.

बदलाव की बयार

अपनी सख्त रेगुलेटरी मॉनिटरिंग के कारण, बैंकिंग सेक्टर नीति और नियामक बदलावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है. यही कारण है कि समझदार निवेशक इन बदलावों पर कमाई की तरह ही बारीकी से नजर रखते हैं.

2024 के ज्यादातर समय में फाइनेंशियल लैंडस्केप में कठोर परिस्थितियों का असर रहा, जिसका लोन विस्तार पर असर पड़ा. आरबीआई ने नीतिगत दरों को 6.5 फीसदी पर स्थिर रखा, साथ ही 2023 के अंत में असुरक्षित कंज्यूमर लोन पर नियामकीय शिकंजा कसने की घोषणा की. इससे घरेलू लोन पर लगाम लगी और पर्सनल लोन में तेज ग्रोथ पर ब्रेक लग गया. बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की स्थिति लगातार तनावपूर्ण बनी रही और साल के अधिकांश समय में ओवरनाइट दरें रेपो रेट से ऊपर रहीं.

बदलाव के संकेत

हालांकि, यह दौर अब बदलता हुआ प्रतीत होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि प्राइवेट सेक्टर की लोन वृद्धि में मंदी का दबाव चरम पर पहुंच गया है और अब एक मजबूत मॉनिटरी और नियामकीय सहजता का एक सायकिल चल रहा है. रिजर्व बैंक ने 2025 में दरों में 100 बेसिस प्वाइंट की भारी कमी की है.

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने जून की नीति बैठक के बाद कहा था, ‘कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) में कटौती से नवंबर 2025 के अंत तक बैंकिंग सिस्टम में लगभग 2.5 ट्रिलियन रुपये की प्राथमिक लिक्विडिटी उपलब्ध होगी. इससे बैंकों के लिए फंडिंग की लागत भी कम होगी, जिससे लोन बाजार में मॉनिटरी पॉलिसी के प्रभाव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और इसमें तेजी आएगी.’

अक्टूबर की बैठक में मल्होत्रा ​​ने लोन ग्रोथ को बढ़ावा देने, फंड की लागत कम करने और इस क्षेत्र में व्यापार करने में आसानी बढ़ाने के लिए 22 अभूतपूर्व उपायों की घोषणा की.

यह भी पढ़ें: 2021 में जोमैटो से शुरू हुआ कारवां, अब तक 25 टेक स्टार्टअप ला चुके हैं IPO; 4 बने मल्टीबैगर… जानें- बाकी का हाल