जब गिरता है तेल बाजार, तो बंपर कमाई के लिए ये स्ट्रैटजी आती है काम! इन ट्रेडर्स ने 1 घंटे में कमाए ₹5900 करोड़

जब बाजार बिखरता है, तब हर कोई नुकसान नहीं उठाता. कभी-कभी गिरावट ही कमाई का रास्ता खोल देती है. एक ऐतिहासिक दिन पर अपनाई गई एक खास ट्रेडिंग रणनीति ने दिखाया कि संकट के बीच समझ और समय कैसे खेल पलट सकते हैं.

निगेटिव हुआ तेल, पॉजिटिव निकली कमाई Image Credit: Money9 Live

Oil market crash strategy: साल था 2020, अमूमन हर कोई आर्थिक और मानसिक तंगी से जूझ रहा था. कोरोना महामारी ने अचानक पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार रोक दी थी. उड़ानें बंद थीं, फैक्ट्रियां ठप थीं, सड़कें खाली थीं और तेल की मांग तेजी से गिर रही थी. लेकिन इसी अफरातफरी के बीच, 20 अप्रैल 2020 को तेल बाजार में ऐसा कुछ हुआ, जिसने लोगों को हैरान कर दिया. जिस दिन कच्चे तेल की कीमत शून्य से नीचे चली गई, उसी दिन कुछ चुनिंदा निवेशकों ने ऐसी रणनीति अपनाई कि कुछ ही घंटों में उन्होंने करीब 660 मिलियन डॉलर यानी लगभग 5,900 करोड़ रुपये कमा लिए.

20 अप्रैल 2020, जब तेल ने सारे नियम तोड़ दिए

20 अप्रैल 2020 को अमेरिकी कच्चा तेल, जिसे West Texas Intermediate (WTI) कहा जाता है, सुबह करीब 18 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा था. यह पहले से ही काफी कम कीमत थी. लेकिन जैसे-जैसे दिन बढ़ा, बिकवाली तेज होती गई. दोपहर होते-होते बाजार में डर फैल गया और फिर ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

न्यूयॉर्क समय के मुताबिक 2:08 बजे, WTI की कीमत शून्य से नीचे चली गई. यानी अब तेल बेचने वाला खरीदार को पैसे दे रहा था, ताकि वह तेल ले जाए. अगले सिर्फ 20 मिनट में कीमत करीब 40 डॉलर और गिर गई, और दिन का सेटलमेंट माइनस 37.63 डॉलर प्रति बैरल पर हुआ. यह न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज के 138 साल के इतिहास का सबसे निचला स्तर था.

तेल इतना सस्ता क्यों हो गया?

इस गिरावट के पीछे सिर्फ डर नहीं, बल्कि ठोस वजहें थीं. कोरोना महामारी के कारण दुनियाभर में तेल की मांग अचानक गिर गई थी. विमान उड़ नहीं रहे थे, गाड़ियां नहीं चल रही थीं और फैक्ट्रियों की खपत ठप थी. लेकिन उत्पादन तुरंत नहीं रुका. तेल लगातार निकलता रहा. मार्च 2020 तक WTI की कीमतें पहले ही 20 डॉलर के आसपास आ चुकी थीं. बड़े तेल उत्पादक देशों- अमेरिका, रूस और सऊदी अरब ने प्रोडक्शन में करीब 10 प्रतिशत कटौती पर सहमति बनाई, लेकिन यह काफी नहीं था. बाजार में तेल की भरमार हो चुकी थी.

WTI और दूसरे अंतरराष्ट्रीय तेल बेंचमार्क में एक बड़ा फर्क है. WTI फ्यूचर्स में फिजिकल डिलीवरी अनिवार्य होती है. यानी अगर आपके पास एक्सपायरी तक कॉन्ट्रैक्ट है, तो आपको तेल लेना ही होगा. यह तेल अमेरिका के कुशिंग, ओक्लाहोमा में डिलीवर किया जाता है. समस्या यह थी कि कुशिंग के स्टोरेज टैंक लगभग भर चुके थे. तेल रखने की जगह नहीं थी और स्टोरेज का खर्च तेल की कीमत से ज्यादा हो चुका था. ऐसे में ट्रेडर्स तेल लेने से डर रहे थे.

तेल फ्यूचर्स बाजार में आम तौर पर ट्रेडर्स एक्सपायरी से पहले अपनी पोजीशन “रोल ओवर” कर लेते हैं. यानी पुराने महीने का कॉन्ट्रैक्ट बेचकर अगले महीने का खरीद लेते हैं. लेकिन अप्रैल 2020 में यह आसान नहीं था.

इस दौरान दुनियाभर के रिटेल और संस्थागत निवेशक तेल से जुड़े फंड्स में घुस चुके थे. चीन का एक बड़ा फंड, जो खुद को “तेल पानी से भी सस्ता” कहकर बेच रहा था, उसमें भारी पैसा लगा हुआ था. जैसे-जैसे एक्सपायरी नजदीक आई, करोड़ों बैरल के कॉन्ट्रैक्ट्स बेचने थे, लेकिन खरीददार नहीं थे.

TAS ट्रेड: वही रास्ता, जिससे बनी बंपर कमाई

अब बात करते हैं, उस स्ट्रैटजी की जिसने मार्केट एक्सपर्ट्स को बंपर कमाई कराई. इस कहानी का सबसे अहम हिस्सा है Trade at Settlement (TAS). मान लीजिए बाजार में यह तय होता है कि दिन के आखिर में तेल की जो कीमत बनेगी, उसी पर सौदा फाइनल होगा. इसी को TAS यानी Trade at Settlement कहते हैं. अब आम निवेशक ऐसा सोचता है कि आखिरी कीमत क्या होगी, लेकिन कुछ ट्रेडर्स एक कदम आगे सोच रहे थे.

जिन ट्रेडर्स को मुनाफा हुई उन्होंने पहले ही दिन की शुरुआत में ऐसे कॉन्ट्रैक्ट खरीद लिए, जिनकी कीमत सीधे दिन के आखिरी भाव पर तय होनी थी. यानी वे यह मानकर बैठे थे कि जो भी अंतिम कीमत बनेगी, उसी पर हमें फायदा या नुकसान होगा.

रणनीति कुछ ऐसी थी:

  • पहले TAS के जरिए तेल खरीदा
  • फिर दिनभर फ्यूचर्स बाजार में जोरदार बिकवाली की
  • नीचे जाती कीमतों को देख कर दूसरे निवेशकों ने बेचना शुरू किया
  • सेटलमेंट से पहले कीमत को स्ट्रैटजी के तहत बहुत नीचे धकेल दिया
  • जितनी कीमत नीचे गई, TAS से खरीदे गए कॉन्ट्रैक्ट्स पर ट्रेडर्स को उतना ज्यादा फायदा हुआ

Essex के नौ ट्रेडर्स और ऐतिहासिक कमाई

जब बाद में जांच हुई, तो सामने आया कि उस दिन सबसे ज्यादा असर लंदन के पास Essex इलाके में बैठे नौ ट्रेडर्स का था. ये कोई बड़े बैंक या तेल कंपनी नहीं थे, बल्कि अपने घरों से ट्रेडिंग करने वाले इंडिपेंडेंट ट्रेडर्स थे, जो Vega Capital London से जुड़े थे.

इस समूह का नेतृत्व कर रहे थे पॉल कॉमिन्स, जो पहले लंदन के तेल ट्रेडिंग पिट में काम कर चुके थे. उनके साथ कई अनुभवी और कुछ युवा ट्रेडर्स भी थे. ये सभी सोशल तौर पर भी करीब थे और अहम मौकों पर एक ही दिशा में ट्रेड करते दिखे.

आखिरी 30 मिनट में पलटा खेल

अब यहां, सेटलमेंट का आंकड़ा पड़ाव-दर-पड़ाव समझें. सेटलमेंट से करीब दो घंटे पहले बिकवाली तेज हो चुकी थी. जैसे-जैसे कीमत 10 डॉलर, 5 डॉलर और फिर शून्य की ओर बढ़ी, बाजार में घबराहट फैल गई. आखिरी 22 मिनट में कीमतें तेजी से नीचे गिर गईं. सेटलमेंट विंडो के दौरान, ये नौ ट्रेडर्स फ्यूचर्स और स्प्रेड्स में सबसे बड़े सेलर्स बन गए. आमतौर पर जहां BP, Glencore और JPMorgan जैसे दिग्गज हावी रहते हैं, वहां इस बार तस्वीर उलटी थी.

क्योंकि इन ट्रेडर्स ने पहले से ही TAS के जरिए यह तय कर लिया था कि वे आखिरी कीमत पर तेल खरीदेंगे, और वह आखिरी कीमत बहुत नीचे आ गई. जितनी ज्यादा कीमत गिरी, उतना ज्यादा उनका फायदा बढ़ता गया. यानी उन्होंने कीमत गिरने पर दांव लगाया, और फिर अपनी ट्रेडिंग से उस गिरावट को और तेज कर दिया. ऐसे:

  • कुछ ट्रेडर्स ने 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा कमाए
  • एक ट्रेडर ने करीब 90 मिलियन डॉलर
  • पॉल कॉमिन्स ने करीब 30 मिलियन डॉलर
  • उनके बेटे ने भी 8 मिलियन डॉलर

कुल मिलाकर, इन नौ लोगों ने कुछ ही घंटों में करीब 660 मिलियन डॉलर यानी 5,900 करोड़ रुपये कमा लिए.

हालांकि, इस कमाई की कीमत दूसरों ने चुकाई. चीन का बड़ा फंड पूरी तरह तबाह हो गया. कनाडा का एक ट्रेडर 9 मिलियन डॉलर के कर्ज में फंस गया. Interactive Brokers को 104 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ क्योंकि उनके सिस्टम निगेटिव प्राइस के लिए तैयार नहीं थे.

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क्या यह चालाकी थी या बाजार से खेल?

इतनी बड़ी कमाई के बाद नियामकों की नजर पड़ी. जांच हुई कि क्या इन ट्रेडर्स ने मिलकर कीमत गिराई. लेकिन Vega Capital ने आरोपों से इनकार किया. उनका कहना था कि उन्होंने बाजार के साफ संकेतों पर ट्रेड किया और एक्सचेंज पहले ही निगेटिव कीमत की चेतावनी दे चुका था. अब तक किसी नियामक ने इन्हें दोषी नहीं ठहराया है.