अब तुर्किए को मिलेगा जैसे को तैसा, भारत-साइप्रस की नजदीकी के समझे मायने, पाकिस्तान से सीधा कनेक्शन
आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में साथ देने वाले देशों का आभार जताने और वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिए समर्थन जुटाने के मकसद से पीएम नरेंद्र मोदी इन-दिनों साइप्रस के दौरे पर है. उनका यह दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि पाकिस्तान का साथ देने वाले तुर्की को यहां से घेरने की तैयारी है. तो क्या है भारत का कूटनीतिक प्लान, यहां जानें डिटेल.

PM Modi Cyprus Visit: आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान का साथ देने वाले तुर्की को वैश्विक स्तर पर घेरने की तैयारी में भारत जुट गया है. इसी के चलते पीएम नरेंद्र मोदी साइप्रस पहुंचे हैं. यहां भारत तुर्की के दुश्मन देश को साधने की कोशिश में है. इसके जरिए भारत तुर्की के खिलाफ वैसी ही कूटनीति का इस्तेमाल करेगा जैसे वो हमेशा भारत के खिलाफ आजमाता है. चूंकि सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में साइप्रस ने साथ दिया था, ऐसे में पीएम मोदी का यह दौरा कई मायनों में अहम है.
साइप्रस और तुर्की में तनातनी का भारत को फायदा
साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में एक द्वीप है, जो तुर्की और सीरिया के करीब स्थित है. भौगोलिक रूप से एशिया में होने के बावजूद यह यूरोपीय संघ का सदस्य है. इस आइलैंड को 1960 में ब्रिटिशों से स्वतंत्रता मिली. इसके दो प्रमुख समुदाय, ग्रीक साइप्रस और तुर्की साइप्रस ने एक पावर शेयरिंग में हिस्सा लिया था, जो तीन साल बाद ही हिंसा में बदल गया और संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को बुलाना पड़ा. 1974 में ग्रीक साइप्रियोट्स ने ग्रीस की सैन्य तानाशाही (ग्रीक जंटा) के साथ मिलकर साइप्रस में तख्तापलट कर दिया. उनका प्लान था साइप्रस को ग्रीस का हिस्सा बना देना. ये बात तुर्की को रास नहीं आई. तुर्की ने फौरन साइप्रस पर चढ़ाई कर दी. इस हमले के बाद निकोसिया में वैध सरकार तो बहाल हो गई, लेकिन तुर्की की फौज ने द्वीप का साथ नहीं छोड़ा. बल्कि, साइप्रस के उत्तर-पूर्वी हिस्से ने खुद को ‘तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस’ घोषित कर लिया. साइप्रस का ये बंटवारा आज भी एक अनसुलझी पहेली है. ग्रीक और तुर्की साइप्रियोट्स के बीच तनाव कभी-कभी उभर आता है. तुर्की से साइप्रस की तनातनी भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है, इससे तुर्की को घेरने में मदद मिल सकती है.
साइप्रस भारत का भरोसेमंद दोस्त
विदेश मंत्रालय के अनुसार, साइप्रस भारत का भरोसेमंद दोस्त है. यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है और भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में समर्थन देता है. यह भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों और आर्थिक विकास के लिए अहम है.
वैश्विक दौरे से तुर्की पर वार
पीएम मोदी ने अपनी यात्रा से पहले कहा कि यह दौरा सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में साथ देने वाले देशों का आभार जताने और वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिए समर्थन जुटाने का मौका है. चूंकि तुर्की ने कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का साथ दिया है. हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने भारत पर जिन ड्रोन्स से हमला किया, उनमें से कई तुर्की मूल के थे. यह भारत के लिए रेड लाइन पार करने जैसा था.
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साइप्रस क्यों खास?
साइप्रस भारत के लिए कई मायनों में अहम है. यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारत और यूरोप के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा. 2026 की पहली छमाही में साइप्रस EU काउंसिल की अध्यक्षता करेगा, जिससे भारत के लिए व्यापार और सुरक्षा के लिहाज से यह एक महत्वपूर्ण सहयोगी बन सकता है.
बता दें पीएम मोदी 15 जून को साइप्रस पहुंचे, जो उनकी तीन देशों की यात्रा का पहला पड़ाव है. ये 20 साल बाद ऐसा पहला मौका है जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री का साइप्रस दौरा न केवल एक कूटनीतिक कदम है, बल्कि तुर्की को साफ संदेश भी है. इस यात्रा में पीएम मोदी साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स के साथ निकोसिया में अहम बातचीत करेंगे और लिमासोल में बिजनेस लीडर्स को संबोधित करेंगे. इसके बाद वे कनाडा में G7 शिखर सम्मेलन और फिर क्रोएशिया की यात्रा करेंगे.
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