सोयाबीन तेल का हुआ रिकॉर्ड इंपोर्ट; कीमत बढ़ने से लागत में आई 22 फीसदी की बढ़ोतरी
SEA के आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 मार्केटिंग ईयर में भारत ने 16 मिलियन टन खाने का तेल इंपोर्ट किया. पिछले साल यह आंकड़ा 15.96 मिलियन टन था, यानी वॉल्यूम में बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ. लेकिन कीमत 2023-24 के 1.32 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 1.61 लाख करोड़ रुपये हो गई है. इंपोर्ट का खर्च बढ़ने की वजह सिर्फ एक हैग्लोबल मार्केट में तेल की कीमतें बढ़ना.
देश में खाने के तेल की खपत लगातार बढ़ रही है, लेकिन घरेलू उत्पादन उतना नहीं बढ़ पा रहा है. नतीजा यह है कि देश हर साल भारी मात्रा में तेल बाहर से मंगवाता है. इस बार दिलचस्प बात यह रही कि तेल की मात्रा यानी वॉल्यूम लगभग वही रहा, लेकिन इसका बिल 22 फीसदी बढ़कर 1.61 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया. यानी जेब से ज्यादा पैसे गए, लेकिन तेल उतना ही आया है. Solvent Extractors’ Association of India (SEA) के आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 मार्केटिंग ईयर (नवंबर-अक्टूबर) में भारत ने 16 मिलियन टन खाने का तेल इंपोर्ट किया. पिछले साल यह आंकड़ा 15.96 मिलियन टन था, यानी वॉल्यूम में बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ. लेकिन कीमत 2023-24 के 1.32 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 1.61 लाख करोड़ रुपये हो गई है. इंपोर्ट का खर्च बढ़ने की वजह सिर्फ एक है, ग्लोबल मार्केट में तेल की कीमतें बढ़ना.
22 साल में तेल इंपोर्ट की तस्वीर कैसे बदली
SEA का कहना है कि भारत 1990 के दशक से ही तेल आयात पर निर्भर है. लेकिन पिछले 20 साल में तस्वीर काफी बदल गई है क्योंकि इंपोर्ट वॉल्यूम 2.2 गुना बढ़ गया है और इंपोर्ट लागत करीब 15 गुना बढ़ी है. यानी जरूरत ज्यादा बढ़ी नहीं, लेकिन दुनिया में कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि बिल लगातार भारी होता गया है.
किस देश से कौन सा तेल आता है
अगर पाम ऑयल की बात की जाए तो भारत ज्यादातर यह तेल इंडोनेशिया और मलेशिया से मंगाता है. वहीं सोयाबीन ऑयल के लिए भारत अर्जेंटीना और ब्राजील जैसे देशों पर निर्भर है. ये चारों देश भारत की कुल आवश्यकता का बड़ा हिस्सा पूरा करते हैं.
इस बार क्या नया हुआ?
सोयाबीन ऑयल ने इस बार नया रिकॉर्ड बनाया है. 2024-25 में 5.47 मिलियन टन सोयाबीन ऑयल आया, जो अब तक का सबसे बड़ा इंपोर्ट है. इससे पहले 2015-16 में 4.23 मिलियन टन का रिकॉर्ड था. वहीं पाम ऑयल का इंपोर्ट 9 मिलियन टन से घटकर 7.58 मिलियन टन रह गया है यानी इसकी हिस्सेदारी कम होती दिख रही है. खाने के तेल की मांग भारत में लगातार बनी हुई है और जब तक घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ेगा, आयात बढ़ता ही रहेगा. इस साल की सबसे बड़ी हाइलाइट यह रही कि वॉल्यूम लगभग समान रहा, लेकिन कीमतों की वजह से बिल 22 फीसदी ऊपर उछल गया है.
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