सरकार ने गैर-यूरिया फर्टिलाइजर पर बढ़ाई सब्सिडी, किसानों को मिलेगी राहत
केंद्र सरकार ने पहली छमाही के लिए ₹37,216 करोड़ की गैर-यूरिया उर्वरक सब्सिडी को मंजूरी दी, जिसमें फॉस्फोरस पर 41% की वृद्धि शामिल है. हालांकि, DAP के आयात पर कंपनियों को 1,000 रुपये प्रति टन का नुकसान होगा. FY25 में संशोधित फर्टिलाइजर सब्सिडी 1.91 लाख करोड़ रुपये हो गई, जबकि FY26 के लिए गैर-यूरिया सब्सिडी 49,000 करोड़ रुपये तय की गई.

Fertilizer Subsidy: केंद्र सरकार ने शुक्रवार को वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों के लिए न्यूट्रिएंट-बेस्ड सब्सिडी (NBS) को मंजूरी देते हुए 37,216 करोड़ रुपये का अलॉटमेंट किया है. इस फैसले से फॉस्फोरस पर प्रति किलोग्राम सब्सिडी में 41 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी की गई है, जो कि वित्त वर्ष 2025 के रबी सीजन की तुलना में बड़ा उछाल है. सरकार ने संसद में बताया कि FY25 के संशोधित अनुमान के तहत फर्टिलाइजर सब्सिडी 1.91 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, जो बजट अनुमान 1.68 लाख करोड़ रुपये से 14 फीसदी अधिक है.
खर्च 1.91 लाख करोड़ पहुंचा
गैर-यूरिया फर्टिलाइजर पर सब्सिडी FY25 में 9,310 करोड़ रुपये बढ़ी, जिससे कुल सब्सिडी खर्च में इजाफा हुआ. FY26 के लिए गैर-यूरिया फर्टिलाइजर पर कुल सब्सिडी 49,000 करोड़ रुपये तय की गई है, जिसमें से 37,216 करोड़ रुपये सिर्फ खरीफ सीजन के लिए अलॉट किए गए हैं.
किसानों को मिलेगी राहत
DAP भारत में यूरिया के बाद दूसरा सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला फर्टिलाइजर है. केंद्र सरकार ने साफ किया कि 2010-11 से 2012-13 के बीच UPA सरकार ने DAP की कीमत प्रति बैग 800 रुपये तक बढ़ाई थी, लेकिन 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में DAP की खुदरा कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है.
अब, फॉस्फोरस पर सब्सिडी बढ़ने से सरकार द्वारा अप्रैल 2024 से दिया जा रहा विशेष प्रोत्साहन जो कि 3,500 प्रति टन है. अब NBS के तहत मर्ज कर दिया जाएगा. इससे DAP के साथ-साथ अन्य फॉस्फोरस वाले उत्पाद जैसे NP और NPK फर्टिलाइजर्स को भी फायदा होगा.
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कंपनियों के नुकसान होगा कम
सरकार के इस कदम से किसानों को राहत मिलेगी और फर्टिलाइजर कंपनियों को हो रहे नुकसान में कमी आएगी. हालांकि, फॉस्फोरस पर बढ़ी सब्सिडी के बावजूद, यह अब भी कंपनियों को हुए पूरे नुकसान की भरपाई नहीं कर पा रही है. कंपनियों को Di-Ammonium Phosphate (DAP) के आयात पर प्रति टन 1,000 रुपये तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है, जबकि यह नुकसान तभी कम होगा अगर वैश्विक कीमतों में गिरावट आती है.
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