मौसम हो जाए कितना भी बेइमाई, लेकिन किसानों को नहीं होगा नुकसान; अपनाएं ये समाधान

बे-मौसम बरसात से फसलों को काफी नुकसान होता है. इसी बीच कुछ ऐसे टूल्स हैं जिससे किसान अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं. इसके साथ ही बरसात, धूप, आंधी और कीटों से भी फसलों को बचाया जा सकता है. अगर किसान पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, वॉक-इन-टनल, लो टनल जैसे उपकरण का इस्तेमाल करते हैं, तो कैसे वे अपनी फसलों को होने वाले नुकसान से बचा पाएंगे.

पॉलीहाउस में खेती करने के फायदे. Image Credit: tv9

Multi Cropping : आजकल मौसम में होते तेजी से बदलाव के कारण सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना किसानों को करना पड़ता है. इसमें बे-मौसम बरसात से किसानों की फसलों को काफी नुकसान होता है. ऐसे में कुछ ऐसे टूल्स हैं जिससे किसान अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं. इसके साथ ही बरसात, धूप, आंधी और कीटों से भी फसलों को बचाया जा सकता है. इससे ना सिर्फ फसलों की पैदावार बढ़ेगी बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी. आज हम आपको बताएंगे कि अगर किसान पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, वॉक-इन-टनल, लो टनल जैसे उपकरण का इस्तेमाल करते हैं, तो कैसे वे अपनी फसलों को हर नुकसान से सुरक्षित रख सकते हैं.

पॉली हाउस (Poly House)

पॉली हाउस की कीमत 450 से 4000 रुपये प्रति वर्ग मीटर तक हो सकती है. इसकी कीमत पॉली हाउस के प्रकार, सामान की क्वालिटी, उपजाऊ मिट्टी और तकनीकी स्तर पर निर्भर करती है. पॉली हाउस का इस्तेमाल नर्सरी तैयार करने के लिए भी किया जाता है. इसमें बेमौसमी फूलगोभी, बंदगोभी, शिमला मिर्च, खीरा, ककड़ी, भिण्डी, टमाटर, परवल आदि सब्जियों की खेती की जा सकती है. इसके अलावा फूलों की भी बेमौसमी खेती की जा सकती है.

ग्रीनहाउस (Greenhouse)

शीशे या पॉलीथीन से बनी एक झोपड़ीनुमा संरचना होती है, जिसका उपयोग पौधों को उगाने के लिए किया जाता है. खासकर उन जगहों पर जहां बाहरी वातावरण अत्यधिक ठंडा होता है. इसके अंदर तापमान, नमी और प्रकाश को नियंत्रित करके पौधों के बढ़ने के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाया जाता है. ग्रीनहाउस में कई तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं, जैसे टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, पालक, गोभी, फूलगोभी, स्ट्रॉबेरी, विभिन्न प्रकार के फूल और जड़ी-बूटियां. ग्रीनहाउस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मौसम की परवाह किए बिना साल भर विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने में मदद करता है.

वॉक-इन-टनल (Walk-in Tunnel)

खेती करने के लिए सबसे पहले मिट्टी को तैयार की जाती है और उसमें ऊंची क्यारियां बनाई जाती हैं. इसके बाद इन क्यारियों पर बांस या लोहे के पाइप से एक आधे-गोलाकार ढांचा तैयार किया जाता है, जिसकी ऊंचाई इतनी होती है कि किसान उसमें चलकर काम कर सकें. इसके ढांचे को पारदर्शी पॉलीथीन की चादर से पूरी तरह ढक दिया जाता है, जिससे एक बंद वातावरण बनता है. इस तकनीक से फसल को ओले, पाला और कीटों से बचाया जाता है. जिससे सर्दी के मौसम में भी सब्जियों की अच्छी पैदावार होती है.

लो टोनल-(Low Tonal)

एक प्रकार की कम ऊंचाई वाली प्लास्टिक की सुरंग होती है, जो किसानों को बे-मौसमी फसलें उगाने में मदद करती है. खासकर पौधों को ठंड और पाले से बचाती है. लो टनल किसानों के लिए लागत-प्रभावी और कम पैसे में ग्रीनहाउस जैसा प्रभाव पैदा करती है. यह तकनीक पौधों को कीटों, रोगों और मौसम के नुकसान से बचाती है, जिससे बीजों का बेहतर अंकुरण होता है और फसल की गुणवत्ता बढ़ती है.

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