COD ऑर्डर्स पर दे रहे एक्स्ट्रा चार्ज? ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर सरकार ने दिखाई सख्ती, डार्क पैटर्न के तहत जांच शुरू
केंद्र सरकार ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स द्वारा कैश-ऑन-डिलीवरी (COD) ऑर्डर्स पर अतिरिक्त शुल्क वसूलने की प्रैक्टिस की जांच शुरू की है. उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसे डार्क पैटर्न बताते हुए कहा कि यह उपभोक्ताओं को गुमराह और शोषित करता है. अगर प्लेटफॉर्म्स दोषी पाए गए तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी.

E-Commerce and COD Charges Dark Pattern: केंद्र सरकार ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की ओर से कैश-ऑन-डिलीवरी (COD) ऑर्डर्स पर अतिरिक्त शुल्क वसूलने को लेकर औपचारिक जांच शुरू कर दी है. उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि यह काम एक डार्क पैटर्न है, जो उपभोक्ताओं को गुमराह और शोषित करता है. सरकार ने स्पष्ट किया कि उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए दोषी पाए जाने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.
उपभोक्ता शिकायतों के बाद जांच
यह कदम तब उठाया गया जब उपभोक्ताओं ने शिकायत की कि कुछ प्लेटफॉर्म्स COD ऑर्डर्स पर ‘कैश हैंडलिंग फीस’ ले रहे हैं. जुलाई 2024 में Zepto के कुछ यूजर्स ने सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को उजागर किया था और आरोप लगाया कि चेकआउट के समय बिना स्पष्ट जानकारी के अतिरिक्त शुल्क जोड़े जा रहे हैं. बात केवल जेप्टो की नहीं है, कई ऑनलाइन पोर्टल्स ग्राहकों से इस तरह के शुल्क वसूल रहे हैं. इन्हीं तमाम शिकायतों के बाद सरकार ने इस ओर ध्यान देने के साथ-साथ जांच के आदेश दिए हैं.
डार्क पैटर्न क्या होते हैं?
डार्क पैटर्न दरअसल भ्रामक डिजिटल डिजाइन होते हैं, जिनका मकसद उपभोक्ताओं को अनजाने में ऐसे फैसले लेने पर मजबूर करना होता है जिससे कंपनी को फायदा मिले. इस पैटर्न के तहत छिपे हुए शुल्क, पहले से टिक किए गए सहमति बॉक्स, फर्जी “जल्दी करें” जैसे संदेश, जटिल भाषा या भ्रमित करने वाला इंटरफेस शामिल किए जाते हैं. नवंबर 2023 में कंज्यूमर अफेयर्स विभाग ने ऐसे 13 डार्क पैटर्न्स की पहचान की और उन्हें अनुचित बिजनेस प्रैक्टिस घोषित किया. इनमें ड्रिप प्राइसिंग, फॉल्स अर्जेंसी, ट्रिक क्वेश्चन, सब्सक्रिप्शन ट्रैप और कन्फर्म शेमिंग जैसे पैटर्न शामिल हैं.
भारत में डार्क पैटर्न्स की स्थिति
विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) की 2024 रिपोर्ट में सामने आया कि भारत के 53 सबसे ज्यादा डाउनलोड किए गए ऐप्स में से 52 में कम से कम एक तरह का डार्क पैटर्न इस्तेमाल किया गया. इनमें ई-कॉमर्स, फिनटेक और ऑनलाइन गेमिंग सेक्टर सबसे आगे हैं. उपभोक्ता संगठनों का कहना है कि ये रणनीतियां इतनी चुपचाप लागू की जाती हैं कि उपभोक्ताओं को अक्सर पता ही नहीं चलता कि उनसे छिपे हुए शुल्क वसूले गए हैं या उन्हें गुमराह किया गया है.
सरकार की कार्रवाई और दिशा-निर्देश
28 मई 2024 को सरकार ने प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ बैठक की थी. बैठक में कंपनियों को निर्देश दिए गए कि अपने डिजिटल इंटरफेस और डार्क पैटर्न्स की आंतरिक जांच करें, नतीजे सार्वजनिक करें, 2023 के दिशा-निर्देशों का पालन करें और उद्योग और सरकार का संयुक्त कार्य समूह बनाया जाए. COD शुल्क मामले की जांच में यह देखा जाएगा कि क्या कंपनियों ने शुल्क की जानकारी समय रहते दी थी या फिर चेकआउट के अंत में गैर-पारदर्शी तरीके से जोड़ा गया था.
अब आगे क्या
अगर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स दोषी पाए गए तो उनके खिलाफ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी. इसमें जुर्माना, इंटरफेस डिजाइन में बदलाव और डिस्क्लोजर नियमों को और सख्त करना शामिल हो सकता है. यह कदम बेहद अहम है क्योंकि भारत में कैश-ऑन-डिलीवरी अभी भी सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला भुगतान तरीका है, खासकर मेट्रो शहरों से बाहर. यह जांच आने वाले समय में ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए पारदर्शिता और उपभोक्ता अधिकारों से जुड़े नए मानक तय कर सकती है.
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