LPG सब्सिडी का बदलेगा फॉर्मूला! सरकार ले सकती है बड़ा फैसला, US इंपोर्ट से पलटेगा खेल
भारत सरकार LPG सब्सिडी के मौजूदा फॉर्मूले में बदलाव कर सकती है. क्योंकि इस पर यूएस से एलपीजी के इंपोर्ट बढ़ने का असर देखने को मिल सकता है. अभी तक सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस के हिसाब से इसका कैलकुलेशन होता था. तो क्या है पूरा मामला समझिए पूरी डिटेल.
LPG Subsidy: भारत में रसोई गैस सब्सिडी सिस्टम में बड़ा बदलाव आने वाला है. सरकार LPG सब्सिडी के मौजूदा फॉर्मूले को बदलने को लेकर विचार कर रही है. जल्द ही इस पर बड़ा फैसला हो सकता है. ईटी की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि बीते महीने सरकारी तेल कंपनियों ने अमेरिकी निर्यातकों के साथ सालाना सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट साइन किए हैं. अब भारत सिर्फ वेस्ट एशिया यानी सऊदी अरब से ही नहीं, बल्कि अमेरिका से भी बड़े स्तर पर LPG खरीदने की तैयारी में है. ऐसे में एलपीजी गैस पर मिलने वाली सब्सिडी में इसका असर देखने को मिल सकता है.
अभी क्या है कैलकुलेशन का फंडा?
फिलहाल सब्सिडी की गणना सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस (CP) के आधार पर होती है. यह वेस्ट एशिया से आने वाली LPG का बेंचमार्क है. हांलाकि, कंपनी अधिकारियों के अनुसार अब सरकारी तेल कंपनियां चाहती हैं कि सब्सिडी के इस फॉर्मूले में अमेरिकी बेंचमार्क कीमतों और अमेरिका से आने वाले एलपीजी पर लगने वाले भारी फ्रेट खर्च को भी शामिल किया जाए, क्योंकि ट्रांस-अटलांटिक शिपमेंट की लागत काफी ज्यादा होती है. भारत के लिए अमेरिका से एलपीजी तभी सस्ती पड़ती है, जब उसकी कीमत सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस के मुकाबले पर्याप्त डिस्काउंट पर मिले ताकि अधिक फ्रेट चार्ज का अंतर निकल सके.
US से तय सालाना कॉन्ट्रैक्ट
पिछले महीने IOC, BPCL और HPCL ने मिलकर 2.2 MMTPA LPG के लिए US कंपनियों के साथ एक साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है. यह भारत की कुल वार्षिक LPG इंपोर्ट का करीब 10% है. पहले भी भारत ने अमेरिका से स्पॉट मार्केट में LPG ली है, लेकिन टर्म कॉन्ट्रैक्ट पहली बार है. यही वजह है कि तेल कंपनियां अब लॉन्ग-टर्म प्राइसिंग फॉर्मूला बदलने की मांग कर रही हैं.
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क्यों जरूरी है फॉर्मूला चेंज?
US से LPG तभी सस्ती पड़ती है जब सऊदी CP से भारी डिस्काउंट मिले जिससे महंगे फ्रेट का अंतर निकल जाए. अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकारी कंपनियों को नुकसान झेलना पड़ता है क्योंकि घरेलू LPG की कीमत सरकार नियंत्रित करती है और घाटा होने पर सरकार को मुआवजा देना पड़ता है.
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