ऑल टाइम लो पर रुपया! भारत-अमेरिकी ट्रेड डील में देरी से सेंटिमेंट कमजोर; एशियन करंसी में भी बिगड़ी पोजिशन

भारतीय रुपया शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले गिरकर 89.45 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गया. आरबीआई के सीमित हस्तक्षेप और फेड की अनिश्चित नीति का असर भी गिरावट में स्पष्ट दिखा. जानें और किन वजहों ने किया ट्रिगर.

रिकॉर्ड लो तक फिसला रुपया Image Credit: Money9 Live

Indian rupee all-time low: भारतीय रुपया शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. बाजार में जोखिम उठाने की इच्छा कम होने और अमेरिका-भारत ट्रेड विवाद को लेकर अनिश्चितता बढ़ने से भारतीय मुद्रा पर भारी दबाव दिखाई दिया. फेडरल रिजर्व द्वारा निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती न होने की उम्मीदों ने भी रुपये की कमजोरी को और तेज कर दिया.

ऑल-टाइम लो पर पहुंचा रुपया

शुक्रवार के कारोबार में रुपया 89.45 के स्तर तक फिसल गया, जो इसका नया रिकॉर्ड लो है. इससे पहले रुपए ने 88.80 का स्तर सितंबर में छुआ था. दिन के दौरान रुपया 0.1% कमजोर रहा. बाजार विशेषज्ञ कहते हैं कि रुपये पर यह दबाव लगातार बना हुआ है, खासकर तब से जब अगस्त के अंत में अमेरिकी टैरिफ भारतीय निर्यात पर लागू हुए.

क्यों हुआ रुपया कमजोर, क्या हैं बड़ी वजहें?

सबसे बड़ी वजह रही अमेरिका के तरफ से भारतीय निर्यात पर ऊंचे आयात शुल्क लागू करना, जिसके बाद से विदेशी निवेशकों की धारणा पर असर पड़ा है, भारत में अपने निवेश को लेकर वह काफी सतर्क हो गए. इस वर्ष अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 16.5 अरब डॉलर की भारी निकासी की है, जिससे रुपया एशिया की सबसे कमजोर मुद्राओं में शामिल हो गया है.

इसके अलावा फेड की ब्याज दरों को लेकर अनिश्चितता और अमेरिकी डेटा की प्रतीक्षा में बना दबाव भी रुपये के लिए नकारात्मक साबित हुआ.

केंद्रीय बैंक की हस्तक्षेप में कमी भी बनी ट्रिगर

रॉयटर्स ने ट्रेडर्स के हवाले से रिपोर्ट किया है कि भारतीय रिजर्व बैंक हाल के सेशन में 88.80 के स्तर को बचाने की काफी मसक्कत कर रहा था, लेकिन शुक्रवार को उसका हस्तक्षेप काफी कम दिखाई दिया. जैसे ही रुपये ने यह स्तर तोड़ा, बाजार में अचानक बड़ी मात्रा में ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ गया, जिससे गिरावट और तेज हो गई.

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वैश्विक संकेत भी कमजोर, डॉलर में उतार-चढ़ाव जारी

अधिकतर एशियाई मुद्राओं में कमजोरी ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया. डॉलर इंडेक्स प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले कभी बढ़त और कभी गिरावट के बीच घूमता रहा, क्योंकि निवेशक अमेरिका के महत्वपूर्ण आर्थिक डेटा और फेड अधिकारियों की टिप्पणियों का इंतजार कर रहे हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर विदेशी पूंजी की निकासी जारी रहती है और ट्रेड विवाद का समाधान जल्दी नहीं होता, तो रुपये पर दबाव आगे भी बना रह सकता है.