KGF के पास 30000 करोड़ का सोना, 24 साल बाद होने जा रही नीलामी; हर साल निकलेगा 100 टन गोल्ड
24 साल बाद कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) से फिर खजाना मिल सकता है . केंद्र सरकार ने 30,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के सोना, पैलेडियम और रोडियम युक्त डम्प की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर करने वाली है. सालाना 100 टन सोना उत्पादन की संभावना जताई गई है. हालांकि साइनाइड युक्त पानी, पुरानी मशीनें और सुरंगों की हालत के कारण भारी निवेश की जरूरत होगी. KGF सोने की खान से भारत की काफी उम्मीदें जुड़ी हैं.

KGF gold auction: एक फिल्म आई थी KGF, जिसने खूब चर्चा बटोरी थी. हालांकि फिल्म से इतर, सरकार को अब कर्नाटक के कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) से बड़ा फायदा मिल सकता है. खदान बंद होने के 24 साल बाद, मिनिस्ट्री ऑफ माइंस ने यहां के नौ बड़े गोल्ड रिच मलबे की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की है. इनमें सोने के साथ-साथ पैलेडियम और रोडियम जैसी दुर्लभ धातुएं भी मौजूद हैं. द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इनकी कीमत 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा आंकी गई है. नीलामी की जिम्मेदारी SBI कैप्स को दी गई है और इसे पूरा होने में 18-24 महीने लग सकते हैं. रिपोर्ट में मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि सोने की कीमत 9,000 रुपये प्रति ग्राम होने के चलते प्रति टन 1 ग्राम सोना निकालना भी मुनाफे का सौदा होगा.
प्रति टन इतना निकल सकता है सोना
कोलार गोल्ड फील्ड्स में पड़े 3 करोड़ टन खनन मलबे से सोना और अन्य कीमती धातुएं निकालने की योजना है. एक सरकारी अध्ययन के मुताबिक, इस कचरे से प्रति टन कम से कम 2 ग्राम सोना और पैलेडियम निकाला जा सकता है, जिसकी कुल कीमत 36,000 करोड़ रुपये आंकी गई है. रोडियम जैसी और भी कीमती धातुएं मिलने से यह रकम और बढ़ सकती है. खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में साइनाइड का इस्तेमाल नहीं होगा, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा.
राज्य सरकार ने दी थी मंजूरी
कर्नाटक कैबिनेट ने जून 2024 में कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) के टेलिंग्स की नीलामी को मंजूरी दे दी. यह मलबे भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड (BGML) की जमीन पर पड़ा है, जो केंद्र सरकार की कंपनी है और जिसने 2001 तक KGF का संचालन किया था. हालांकि, खनन शुरू करने से पहले राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी थी.
BGML के पूर्व मुख्य अभियंता KM दिवाकरन के नेतृत्व में एक कर्मचारी समूह लंबे समय से खनन फिर से शुरू करने की मांग कर रहा है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर एक विस्तृत योजना भी सौंपी है. दिवाकरन का कहना है कि KGF से सालाना 100 टन सोना निकाला जा सकता है, जो भारत की मौजूदा 1 टन वार्षिक उत्पादन क्षमता से कहीं ज्यादा है.
भारी निवेश की पड़ेगी जरूरत
कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) में खनन फिर से शुरू करना बेहद चुनौतीपूर्ण और महंगा साबित होगा. KGF के एडवोकेट पी. राघवन ने भास्कर को बताया कि पिछले 24 सालों में 1,400 किमी लंबी भूमिगत सुरंगों में जहरीला साइनाइड युक्त पानी भर गया है. साथ ही, ज्यादातर मशीनें जंग खा चुकी हैं और पुरानी हो गई हैं. इन हालात में खनन फिर से शुरू करने के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी.
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कभी ‘मिनी इंग्लैंड’ के नाम से था चर्चित
कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) को एक जमाने में ‘मिनी इंग्लैंड’ कहा जाता था. यहां का ठंडा मौसम, यूरोपियन स्टाइल की इमारतें और एंग्लो-इंडियन समुदाय की भीड़-भाड़ एक अलग ही दुनिया बनाती थीं. यह दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खान और एशिया की पहली बिजली से चलने वाली खनन परियोजना थी. 1902 में अंग्रेजों ने KGF को बिजली देने के लिए 220 किमी दूर शिवनसमुद्रा में हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट बनाया, जिससे यह दुनिया का पहला बिजली से चलने वाला खनन शहर बना.
यहां तमिल, तेलुगु मजदूर, एंग्लो-इंडियन सुपरवाइजर, पंजाबी गार्ड और ब्रिटिश इंजीनियर आकर बस गए थे. 1903 में वर्कर्स के लिए रॉबर्टसनपेट नाम की प्लांड कॉलोनी बनी, और 1930 तक यहां 30,000 से ज्यादा लोग काम करते थे.
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