Union Bank और Bank of India के मर्जर से बनेगा दूसरा सबसे बड़ा पब्लिक सेक्टर बैंक : रिपोर्ट
सरकार फिर से बैंकों के बड़े मर्जर की तैयारी में है. Union Bank और Bank of India के विलय से 25.67 लाख करोड़ रुपये के एसेट वाला दूसरा सबसे बड़ा पब्लिक बैंक बन सकता है. वहीं IOB और Indian Bank के मर्जर और Punjab & Sind Bank व BoM के प्राइवेटाइजेशन की योजना पर भी काम जारी है.
सरकार एक बार फिर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के बड़े पुनर्गठन की तैयारी में है. नई कंसॉलिडेशन योजना के तहत Union Bank of India (UBI) और Bank of India (BoI) को मिलाने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है. मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर यह मर्जर लागू हुआ, तो करीब 25.67 लाख करोड़ रुपये के एसेट्स वाला यह नया बैंक SBI के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक बैंक बन जाएगा.
क्या है सरकार की रणनीति
रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने चुनिंदा बैंकों के विलय और निजीकरण पर एक नया प्लान तैयार किया है. इसका मकसद है ऐसे पब्लिक सेक्टर बैंक बनाना, जो स्केल के साथ काम कर सकें, पूंजी का बेहतर इस्तेमाल करें और तकनीक व ग्राहक सेवा में निजी बैंकों से टक्कर लें.
क्या है मेगा प्लान?
रिपोर्ट में बताया गया है कि Union Bank of India (UBI) और Bank of India (BoI) के मर्जर के अलावा इस मेगा कंसोलिडेशन प्लान के तहत प्लान के तहत Indian Overseas Bank (IOB) और Indian Bank का भी मर्जर किया जा सकता है. ये दोनों चेन्नई आधारित बैंक हैं, जिनकी शाखाएं और ऑपरेशंस एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं. वहीं, Punjab & Sind Bank और Bank of Maharashtra जैसे छोटे बैंकों को आगे चलकर प्राइवेट सेक्टर में डिसइन्वेस्टमेंट करने के लिहाज से तैयार करने की योजना चल रही है.
कब से लागू हो सकती है योजना
फिलहाल यह ब्लूप्रिंट ड्यू-डिलिजेंस और कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस के चरण में है. सरकार का कहना है कि यह कदम “इवॉल्यूशनरी” होगा, यानी अचानक कोई फैसला नहीं लिया जाएगा. बल्कि, चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक, वास्तविक क्रियान्वयन की शुरुआत वित्त वर्ष 2026-27 (FY27) के आसपास हो सकती है.
मर्जर के फायदे और चुनौतियां
अगर UBI और BoI का मर्जर होता है, तो यह नई इकाई स्केल, कैपिटल एफिशिएंसी और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को फाइनेंस करने की क्षमता में निजी बैंकों से मुकाबले में मजबूत होगी. वहीं IOB-Indian Bank मर्जर से ऑपरेशनल सिनर्जीज, टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन और कॉस्ट कटिंग के अवसर मिल सकते हैं.
हालांकि, ऐसे मर्जर में कई चुनौतियां भी हैं. मसलन, बैंकिंग कल्चर का इंटीग्रेशन, ओवरलैपिंग ब्रांच नेटवर्क, यूनियन से जुड़ी दिक्कतें और ग्राहकों के लिए असुविधाएं. इसलिए सरकार इस प्रक्रिया को धीरे-धीरे आगे बढ़ाने के मूड में है.
निवेशकों और कर्मचारियों पर असर
बाजार के नजरिए से बड़े मर्जर बेहतर प्रॉफिटेबिलिटी और वैल्यूएशन ला सकते हैं. लंबे समय में ये नई इकाइयां प्रतिस्पर्धी और कैपिटल एफिशिएंट साबित हो सकती हैं. ग्राहकों के लिए यह बदलाव बेहतर तकनीक और सेवाओं के रूप में फायदेमंद हो सकता है, हालांकि ब्रांच रेशनलाइजेशन से स्थानीय स्तर पर कुछ असर भी पड़ सकता है. कर्मचारियों के लिए यह मर्जर संरचनात्मक बदलाव और ट्रांसफर की संभावना लेकर आ सकता है.
नीतिगत संकेत और आगे की दिशा
इस कदम से साफ है कि सरकार PSBs को पूरी तरह घटाने नहीं, बल्कि मजबूत करने की दिशा में बढ़ रही है. 2017 और 2019 की तरह यह एक और बड़ा राउंड होगा, लेकिन, अंजाम ज्यादा रणनीतिक ढंग से देने की तैयारी है. ऐसे में अब नजर आने वाले बजट रहेगी, जिसमें इस प्लान की आधिकारिक घोषणा संभव है.