RBI State of the Economy Report: टैरिफ से डिमांड को खतरा, S&P अपग्रेड ने दिया बॉन्ड मार्केट को सहारा
रिजर्व बैंक ने अपनी State of the Economy रिपोर्ट में कहा है कि US टैरिफ से देश की कुल मांग को खतरा है. इसके साथ ही रिपोर्ट में S&P रेटिंग अपग्रेड को राहत की बात बताते हुए कहा है कि इससे बॉन्ड यील्ड्स को सहारा मिला है. महंगाई को लेकर अनुमान लगाया गया है कि यह लक्ष्य से नीचे ही बनी रह सकती है.

भारत–अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बनी हुई अनिश्चितता और टैरिफ की वजह से घरेलू मांग की रफ्तार पर डाउनसाइड रिस्क बन गया है. गुरुवार को जारी RBI की State of the Economy Report में बताया गया है कि फिलहाल मांग को सहारा मिल रहा है. खासतौर पर रेट कट का असर धीरे-धीरे ट्रांसमिट हो रहा है. इसके अलावा फिस्कल सपोर्ट भी मौजूद है और ग्रामीण इलाकों में मानसून ने उम्मीदें जगाई हैं. लेकिन, अगर टैरिफ दबाव बढ़ता है, तो निर्यात पर चोट लगेगी और इसका असर कुल मांग पर देखने को मिल सकता है.
महंगाई के मोर्चे पर राहत
रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई के मोर्चे पर फिलहाल राहत नजर आ रही है. इसके साथ ही अनुमान लगाया गया है कि दूसरी तिमाही (Q2) में CPI महंगाई 4% लक्ष्य से नीचे बनी रह सकती है. हालांकि, साल की आखिरी तिमाही में महंगाई थोड़ी बढ़ सकती है. लेकिन, औसतन पूरे साल महंगाई टारगेट से काफी कम रहने का अनुमान है.
कटौती संभव, पर डाटा का सपोर्ट जरूरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सिग्नल बाजार के लिए अहम है. क्योंकि, कम महंगाई RBI को पॉलिसी रेट्स को घटाने के लिए हेडरूम देती है. हालांकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पॉलिसी पाथ डाटा-ड्रिवन रहेगा और ग्रोथ–इंफ्लेशन डायनामिक्स को देखते हुए तय होगा.
बॉन्ड यील्ड्स पर दबाव कम
S&P Global Ratings ने भारत की रेटिंग ‘BBB-’ से बढ़ाकर ‘BBB’ कर दी है. रिपोर्ट के मुताबिक यह अपग्रेड भारत की मानी जाने वाली आर्थिक मजबूती, फिस्कल कंसोलिडेशन और पॉलिसी क्रेडिबिलिटी को रिफ्लेक्ट करता है. इसका सीधा फायदा बॉन्ड मार्केट को हुआ. इसके अलावा सरकार की तरफ से GST दरों को दुरुस्त करने के ऐलान ने भी बॉन्ड यील्ड को सपोर्ट किया. लेकिन, अमेरिका से जुड़ी टैरिफ अनिश्चितता ने बॉन्ड यील्ड्स को फिर ऊपर धकेल दिया. साफ है कि ग्लोबल और डोमेस्टिक पॉलिसी मूव्स, बॉन्ड मार्केट सेंटीमेंट पर सीधा असर डाल रहे हैं.
ग्रामीण मांग से मिले-जुले संकेत
रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई के हाई-फ्रीक्वेंसी डेटा का ट्रेंड मिश्रित रहा. GST e-way bills और कलेक्शन रिकॉर्ड स्तर पर रहे, लेकिन बिजली की मांग सुस्त रही. जून में माइनिंग और इलेक्ट्रिसिटी ने इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन को दबाया, हालांकि सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग PMI विस्तार दिखा रहे हैं. वहीं ग्रामीण मांग की पिक्चर थोड़ी बेहतर है. समय पर मानसून ने खरीफ बोवाई को सहारा दिया है. अगर रियल रूरल वेजेज बढ़ते हैं, तो दूसरी छमाही में खपत की तस्वीर और मजबूत हो सकती है.
बाहरी सेक्टर में मजबूती, पर FDI फ्लो चुनौती
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत का एक्सटर्नल सेक्टर लचीला बना हुआ है. करंट अकाउंट डेफिसिट सीमित है और फॉरेक्स रिजर्व 11 महीने की इम्पोर्ट कवरिंग क्षमता रखते हैं. हालांकि, FDI इनफ्लो का नेट बैलेंस कमजोर है, क्योंकि ग्रॉस इनवर्ड फ्लो चार साल के हाई पर होने के बावजूद आउटफ्लो और रिपैट्रिएशन ने नेट इनफ्लो दबा दिया. इसका मतलब यह है कि भारत को कैपिटल इनफ्लो बढ़ाने के लिए सिर्फ फिस्कल कंसोलिडेशन और रेटिंग अपग्रेड पर निर्भर नहीं रहना होगा, बल्कि निवेश माहौल को और आकर्षक बनाना होगा.
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